दिल्ली हाईकोर्ट के जज के यहां से भारी मात्रा में कैश बरामद, सीजेआई संजीव खन्ना ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में किया ट्रांसफर
दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर आग लगने के बाद बड़ा खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में कैश बरामद हुआ है. आनन-फानन में सुप्रीम कोर्ट के कॉलिजियम ने उनका ट्रांसफर इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया है. हाईकोर्ट के जज के घर से कैश मिलना न्यायिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है.

दिल्ली हाईकोर्ट के जज के बंगले में आग लगने के दौरान भारी मात्रा में कैश बरामद हुआ है, इस घटना के बाद न्यायिक गलियारों में हड़कंप मच गया है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के नेतृत्व वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, जब आग लगी तो जस्टिस वर्मा शहर से बाहर थे, जिसके कारण उनके परिवार ने फायर ब्रिगेड और पुलिस को फोन किया. आग बुझने के बाद अधिकारियों को एक कमरे के अंदर बड़ी मात्रा में कैश मिला. स्थानीय पुलिस ने बरामदगी का डॉक्युमेंटेशन किया गया और सीनियर अधिकारियों को इस बारे में जानकारी दी गई. अंततः सरकार में उच्च अधिकारियों को सूचित किया. जैसे ही मामले की जानकारी सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना को हुई, उन्होंने तत्काल इस मुद्दे पर चर्चा के लिए कॉलेजियम की बैठक बुलाई.
2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में हुआ था ट्रांसफर
कॉलेजियम ने एकमत होकर जस्टिस वर्मा के तबादले का फैसला किया और उन्हें इलाहाबाद में उनके पैतृक हाईकोर्ट में वापस भेज दिया, जहां वे 2021 से पहले सेवाएं दे रहे थे. 2021 में कॉलिजियम ने उनका ट्रांसफर दिल्ली हाईकोर्ट में कर दिया. हालांकि, पांच जजों वाले कॉलेजियम के कुछ सदस्यों ने चिंता जताई कि इस तरह के बड़े मामले में केवल जज का तबादला करना पर्याप्त नहीं होगा. उन्होंने चेतावनी दी कि सख्त कार्रवाई न करने से न्यायपालिका की विश्वसनीयता धूमिल हो सकती है और संस्था में जनता का भरोसा खत्म हो सकता है.
जस्टिस वर्मा से इस्तीफा मांग सकता है कॉलिजियम!
जस्टिस वर्मा से स्वेच्छा से इस्तीफा देने की मांग की जा सकती है. यदि उन्होंने इनकार कर दिया, तो कुछ सदस्यों ने आंतरिक जांच शुरू करने का सुझाव दिया कि संसद द्वारा संभावित महाभियोग कार्यवाही की दिशा में एक आवश्यक कदम. जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार या कदाचार के आरोपों से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट की 1999 की आंतरिक प्रक्रिया के अनुसार, CJI पहले जज से स्पष्टीकरण मांगता है. यदि असंतुष्ट हैं, तो वे गहन जांच करने के लिए एक सुप्रीम कोर्ट जज और दो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से मिलकर एक जांच पैनल गठित कर सकते हैं.
2008 का 'कैश-एट-डोर' घोटाला
जस्टिस वर्मा से जुड़ा विवाद 2008 के 'कैश-एट-डोर' मामले से मिलता-जुलता है, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पर गलती से 15 लाख रुपये का पैकेट पहुंचा दिया गया था. बाद में हुई जांच में पता चला कि यह नकदी दरअसल जस्टिस निर्मल यादव के लिए थी, जिन्हें बाद में आरोपों का सामना करना पड़ा.