मैं आतंकवादी नहीं, सिर्फ एक राजनीतिक नेता हूं, सुप्रीम कोर्ट में यासीन मलिक का बयान
जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) प्रमुख यासीन मलिक ने सुप्रीम कोर्ट में खुद को आतंकवादी मानने से इनकार किया और दावा किया कि सात पूर्व प्रधानमंत्रियों ने उनसे बातचीत की थी. उन्होंने संघर्ष विराम का हवाला देते हुए 35 साल पुराने केस दोबारा खोलने पर आपत्ति जताई. CBI ने उन्हें 'खतरनाक आतंकवादी' बताया और जम्मू से दिल्ली ट्रायल ट्रांसफर करने की मांग की. कोर्ट ने उनकी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से गवाहों से जिरह की अनुमति दी.

जेल में बंद जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के प्रमुख यासीन मलिक ने सुप्रीम कोर्ट में खुद को आतंकवादी मानने से इनकार किया और दावा किया कि देश के सात पूर्व प्रधानमंत्री उनके साथ बातचीत कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि उनके संगठन को केंद्र सरकार ने कभी भी आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया और 1994 में एकतरफा संघर्ष विराम के बाद उनके खिलाफ दर्ज 32 मामलों में उन्हें जमानत दी गई थी, लेकिन अब अचानक से 35 साल पुराने केस खोले जा रहे हैं.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए यासीन मलिक ने कहा कि सरकार उनके खिलाफ एक "जनमत" बनाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के उस बयान पर आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया था कि उनके हाफिज सईद के साथ फोटो कई मीडिया रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुई थी. उन्होंने कहा कि यह गलत नैरेटिव गढ़ने का प्रयास है.
यासीन मलिक ने किन प्रधानमंत्रियों का लिया नाम?
सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान यासीन मलिक ने कहा, पी. वी. नरसिम्हा राव, एच. डी. देवेगौड़ा, इंदर कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में भी संघर्ष विराम का पालन किया गया था. लेकिन अब, मौजूदा सरकार के दूसरे कार्यकाल में 35 साल पुराने उग्रवादी मामलों की जांच शुरू कर दी गई है. यह संघर्ष विराम समझौते के खिलाफ है."इस पर सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संघर्ष विराम का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है.
CBI ने किया यासीन मलिक के खिलाफ अपील?
CBI ने यासीन मलिक के खिलाफ 1989 के रुबैया सईद अपहरण केस और 1990 के श्रीनगर शूटआउट केस की सुनवाई जम्मू से दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग की है. सितंबर 2022 में जम्मू की एक निचली अदालत ने आदेश दिया था कि मलिक को शारीरिक रूप से कोर्ट में पेश किया जाए, लेकिन CBI ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. CBI के वकील ने कहा, यासीन मलिक एक 'ड्रेडेड टेररिस्ट' (खतरनाक आतंकवादी) है और उसकी जेल से बाहर उपस्थिति एक बड़ा सुरक्षा खतरा पैदा कर सकती है.
यासीन मलिक ने खुद को बताया निर्दोष
यासीन मलिक ने खुद को आतंकवादी मानने से इनकार करते हुए कहा, CBI का कहना है कि मुझे जम्मू कोर्ट में पेश नहीं किया जा सकता क्योंकि मैं एक खतरनाक आतंकवादी हूं. मैं इसका जवाब दे रहा हूं . मैं आतंकवादी नहीं, बल्कि सिर्फ एक राजनीतिक नेता हूं. सात प्रधानमंत्रियों ने मेरे साथ बातचीत की है. मेरे और मेरे संगठन के खिलाफ ऐसा कोई भी केस नहीं है, जिसमें हमने किसी आतंकी को शरण दी हो. मेरे खिलाफ जो भी केस दर्ज हैं, वे सिर्फ गैर-हिंसक राजनीतिक प्रदर्शनों से जुड़े हैं."
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने मलिक को जम्मू कोर्ट में फिजिकली पेश होने की अनुमति नहीं दी, लेकिन उन्हें तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाहों से जिरह करने की अनुमति दी. कोर्ट ने कहा कि वह इस केस के मेरिट्स (मूल तथ्यों) पर फैसला नहीं कर रही, बल्कि सिर्फ इस बात पर विचार कर रही है कि मलिक को गवाहों से आमने-सामने सवाल करने की अनुमति दी जाए या नहीं.
यासीन मलिक का मामला
यासीन मलिक का मामला न सिर्फ जम्मू-कश्मीर की राजनीति बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है. सरकार और जांच एजेंसियां उनके खिलाफ आतंकी मामलों की जांच को आगे बढ़ा रही हैं, जबकि मलिक खुद को एक राजनीतिक नेता और संघर्ष विराम के समर्थक के रूप में पेश कर रहे हैं. अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला इस केस में क्या रहता है.