Heart Attack: आज के समय में सोशल मीडिया पर युवाओं के हार्ट अटैक आने के कई वीडियो वायरल हो रहे हैं. इसके साथ ही कोरोना टीकाकरण पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, जबकि आईसीएमआर अलग-अलग अध्ययनों में इन चर्चाओं का खंडन करते हुए लोगों की बदलती लाइफस्टाइल में आए बदलावों को मुख्य कारण बता रहा है. लोगों का ठीक से खानपान न होना, घर की वजह बाहर खाना खाया जाता, एक्ससाइज न करना, रात में लेट सोना ये सभी कारणों की वजह से अटैक का सामना करना पड़ रहा है.
रिपोर्ट में बताया गया कि कामकाज करने वालों की तुलना में बेरोजगारों में हार्ट अटैक का जोखिम ज्यादा है. अगले 10 साल में ये लोग हृदय संबंधी बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं. महिलाओं की तुलना में पुरुष को हार्ट से संबंधी बीमारी को लेकर ज्यादा असुरक्षित हैं. क्योंकि जो पुरुष बेरोजगारी या किसी में कारण मानसिक तनाव लेते हैं उनके हार्ट पर सीधा असर पड़ता है.
ये जानकारी आईसीएमआर और दिल्ली एम्स के संयुक्त चिकित्सा अध्ययन में सामने आई है, जो इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित किया गया है. देश में पहली बार गैर प्रयोगशाला जोखिम चार्ट का इस्तेमाल करते हुए आईसीएमआर के शोधकर्ताओं ने युवा आबादी में हृदय संबंधी बीमारियों (सीवीडी) का सटीक जोखिम पता लगाया है. इसमें पता चला है कि देश की करीब 15 फीसदी आबादी अगले 10 साल यानी 2034 तक सीवीडी की चपेट में आ सकती है. हालांकि राहत की बात ये है कि करीब 85 फीसदी आबादी इस जोखिम से बाहर है.
बंगलूरू स्थित आईसीएमआर के राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान व अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. प्रशांत माथुर ने बताया कि हृदय संबंधी बीमारियां भारत में आम हैं और ज्यादा जोखिम वाले लोगों का जल्दी पता लगाना बहुत जरूरी है. पहली बार भारत में 40 से 69 साल के करीब 4,480 लोगों पर अध्ययन हुआ. इनमें से 50 फीसदी 40 से 49 साल की आयु वाले हैं. शोधकर्ताओं के अनुसार, 4,480 लोगों में पुरुष 2328 (52%) और 2152 महिलाएं शामिल हैं. अध्ययन के अनुसार जिन लोगों में फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज का स्तर बेकाबू रहता है उनमें से करीब 25% यानी हर चौथे रोगी में सीवीडी का खतरा है. मोटापा ग्रस्त 18% लोगों में ये खतरा हो सकता है.
अध्ययन में हार्ट संबंधी बीमारियों का अगले 10 साल में बहुत कम, मध्यम और उच्च जोखिम का अनुपात क्रमशः 84.9, 14.4 और 0.7 फीसदी पाया गया. इनमें 348 बेरोजगार भी शामिल हैं, जिनमें से 4.5 फीसदी में अगले 10 साल के भीतर दिल का दौरा पड़ने का जोखिम काफी गंभीर पाया गया, जबकि कामकाज करने वाले करीब 12 फीसदी लोगों में यह जोखिम मध्यम श्रेणी का पाया गया.
दिल्ली एम्स के सामुदायिक चिकित्सा विभाग व आईसीएमआर ने बताया कि अगले 10 साल में हार्ट अटैक के जोखिमों का आकलन किया है. इसके मुताबिक, शहरी आबादी में गंभीर जोखिम सबसे ज्यादा मिला है. करीब 17.5% शहरी आबादी में सीवीडी का जोखिम मध्यम से गंभीर श्रेणी तक मिला, जो ग्रामीण आबादी में करीब 13.8% है. गांव या छोटे कस्बों में करीब 86.2% लोग हृदय से जुड़ी बीमारियों के जोखिम से दूर हैं.
First Updated : Thursday, 22 August 2024