बहुत सारे ऐसे लोगों को सुबह जल्दी जगने में तकलीफ होती है या फिर उनको नींद बहुत आती है, जिसके चलते वो सुबह जल्दी नहीं उठ पाते. इस बात को लेकर हमारे घर के बड़े बुजुर्ग अक्सर जल्दी जगने के लिए डांटते भी हैं. डांट सुनकर हमें लगता है कि कल से जल्दी उठेंगे, लेकिन हम ऐसा कर नहीं पाते. तो मैं आपको बता दूं कि इसके केवल हमारी आदते हीं जिम्मेदार नहीं हैं. एक शोध में पता चला है कि अगर आप की सुबह देर से नींद से जगते हैं तो इसके लिए आप नहीं बल्कि आपके पूर्वज जिम्मेदार हैं. जीनोम बायोलॉजी एंड इवोल्यूशन के एक शोध में कुछ ऐसी चीजें निकलकर सामने आई हैं, जिसमें पता चलता है कि आज इंसानों के पुरातन संबंधी निएंडरथॉल के डीएनए और जीन की वजह से कई इंसानों में सुबह जल्दी उठने की आदत आई होगी और ऐसा सबके साथ नहीं है.
शोध में पता चला है कि आधुनिक मानव के दो पुरातन संबंधी निएंडरथॉल और डेनिसोवन से ऐसे जीन आज के इंसानों तक आते रहे हैं जो कुछ लोगों में सुबह जल्दी उठने की आदत के लिए जिम्मेदार हैं. अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के टोनी कैप्रा के नेतृत्व में यह शोध पूर्ण किया गया है. कैप्रा का कहना है कि शोध में जो नतीजे आए हैं उसको देखकर वह दंग रह गये हैं.
न्यू साइंसटिस्ट की रिपोर्ट में सामने आया कि वैज्ञानिकों को लगता है कि यूरोप और एशिया के कई लोगों के जीनोम का 2 फीसदी हिस्सा निएंडरथॉल का है और 5 फीसदी डेनिसोवन का है. ये दोनों ही प्रजातियां अफ्रीका में रहती हैं. कहीं न कहीं ये हमारे सीधे पूर्वजों से लाखों साल पहले से जुड़े हैं. पश्चिमी और उत्तरी यूरेशिया के ठंडे और अंधरे वाले वातवरण में लंबे समय तक रहने के कारण उनके जीन में प्रभाव पड़ता रहा.
हमारे हालिया पूर्वजों ने इस तहर के मौसम को 50 से 60 हजार साल पहले झेलना शुरू किया था, जब यूरोप में बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ था. ऐसे में यह तार्किक बात लगती है कि निएंडरथॉल और डेनिसोवन से मिले जीन म्यूटेशन ने हमारे अंदर यूरोपीय सर्दियों में जल्दी उठने की आदत डालने में योगदान दिया हो. शोधकर्ताओं ने यही जानने का प्रयास किया कि क्या ऐसी कुछ डीएनए विविधताएं हैं जिनकी वजह से हम जल्दी उठने की आदत के लिए जिम्मेदार हैं, जिससे हमें छोटी सर्दियों से निपटने में मदद मिल सके.
शोध में सामने आए नजीतों के बाद कुछ वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इसके बारे में अधिक पुष्टि के लिए और शोध की जरूरत है. फिर भी यह अध्ययन अपने आप में काफी कुछ संकेत देता है. बायोबैंक के अध्ययन केवल लक्षणों या बर्ताव का जीन से संबंध बताते हैं. लेकिन खास जीन से संबंध के लिए बेशक वैज्ञानिकों और गहन कार्य करना होगा. शोधकर्ताओं का भी यही कहना है. वे मानते हैं कि इस मामले में और भी कई कारक योगदान देते हैं. First Updated : Sunday, 17 December 2023