इंडिया का पहला इलेक्शन: इन चुनौतियों को पार कर हुआ था भारत का पहला आम चुनाव, पढ़ें उसकी पूरी कहानी

Lok Sabha Election 1952: एक पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा कि आने पीढ़ियां जब इस चुनाव के बारे में पढ़ेंगी तो वह हैरान हो जाएगी कि इतनी बड़ी संख्या में अशिक्षित लोगों के बीच लोकतंत्र की नींव रखी गई.

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Edited By: Sachin

हाइलाइट

  • अशिक्षित लोगों के बीच पला-बढ़ा भारतीय लोकतंत्र
  • द्वीपों पर पहुंचने के लिए लेना पड़ा नेवी का सहारा

Lok Sabha Election 1952: भारत की आजादी से पहले ही कांग्रेस का हर गांव और शहर में एक कार्यकर्ता और मजबूत संगठन था, इस कारण उसे देश के पहले आम चुनाव में काफी मदद मिली. भारत ने आजादी के बाद वयस्क मताधिकार के आधार इलेक्शन लड़ने का अधिकार दिया था. इसके विपरित पश्चिम के देशों ने सबसे पहले संपत्ति रखने वाले लोगों को वोट देने का अधिकार दिया. जिसमें महिलाओ और मजदूरों को अधिकार देने का अधिकार नहीं था. लेकिन भारत ने आजादी के बाद सभी मत देने का अधिकार दिया था. 

आजादी के दो साल बाद की गई थी चुनाव आयोग की स्थापना

देश आजाद होने होने के दो साल के भीतर चुनाव आयोग की स्थापना कर दी गई थी और मार्च 1950 में मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में सुकुमार सेन को चुना गया था. सुकुमार सेन ने सिविल अधिकारी थे और बंगाल के मुख्य सचिव पद पर भी अपनी सेवा दे चुके थे. आजादी मिलने के बाद उन्हें दिल्ली बुला लिया गया था और चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त पद पर विराजमान कर दिया गया. भारत में चुनाव करवाने के लिए सबसे मुश्किल भरा कार्य मतदाताओं की सूची बनाना था. पहले आम चुनाव में देश के 17 करोड़ मतदाता थे जिसमें करीब 85 फीसदी लोग निरीक्षर थे. इस दौरान देश में करीब 4500 सीटों पर चुनाव करवाया गया जिसमें करीब 499 सीटें लोकसभा की थीं. 

pandit jawaharlal nehru
Pandit Jawaharlal Nehru

पहले चुनाव में 20 लाख पेटियों का इस्तेमाल किया गया 

रामचंद्र गुहा अपनी किताब 'किताब गांधी के बाद का भारत' में लिखते हैं कि पूरे देश में 2 लाख 24 मतदान केंद्र बनाए गए थे, इसके साथ ही 20 लाख मतपेटियाँ बनाई गईं थी. जिसके लिए 8200 टन इस्पात का इस्तेमाल किया गया था. 16500 लोगों को वोटर्स की लिस्ट बनाने में करीब छह महीने का समय लगा था. इसमें सबसे बड़ी दिक्कत आई थी जब महिलाओं को मतदाता की सूची डालना, एक तो महिलाओं की बड़ी आबादी निरीक्षर थी और दूसरा उन्हें अपना नाम बताने में काफी झिझक होती थी. वह अपने आपको किसी की बेटी और पत्नी कहलवाना काफी पसंद करती थीं. इसका परिणाम यह निकला कि 80 लाख महिलाओं को मतदाता की सूची में शामिल नहीं किया जा सका. 

द्वीपों पर पहुंचने के लिए लेना पड़ा नेवी का सहारा

भारत में चुनाव करवाने के दौरान कई दुर्गम गांवों में मतपेटियों को पहुंचाने के लिए पुलों का निर्माण किया गया था और वहीं, हिंद महासागर के द्वीपों पर पहुंचने के लिए नेवी का सहारा लिया गया था. देश में उस वक्त देश की बड़ी आबादी निरक्षर होने के कारण चुनाव चिन्ह भी छापा गया था. ताकि आम लोग उसे पहचान अपना मत दें. हर मतदान केंद्र पर मत पेटियां रखी थीं और जहां वोटर अपना मत उसमें डाल दिया करते थे. नकली मतदाताओं से बचने के लिए चुनाव आयोग ने एक ऐसी स्याही बनाई जो वोट डालने के बाद उनकी उंगली पर लगाई जाती थी, जो परंपरा आज भी मौजूद है. 

Lok Sabha Election 1952
 

नेहरू को मिला चुनाव प्रचार के लिए जहाज 

आम चुनाव के दौरान नेहरू जब अपनी पार्टी का प्रचार करने के लिए लोगों के बीच जा रहे थे, तब उन्हें एक जहाज की आवश्यकता थी. लेकिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री ने सोचा कि जहाज सिर्फ प्रधानमंत्री के लिए यूज हो सकता है एक आम नागरिक नहीं कर सकता. उस दौरान ऑडिटर जनरल ने नेहरू की मदद के लिए एक फॉर्मूला सुझाया गया कि देश के प्रधानमंत्री की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उस दुनिया में तीन बड़े लीडरों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. तब जॉर्डन के बादशाह, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ाँ और ईरान के प्रधानमंत्री की हत्या कर दी गई थी, जिसके कारण नेहरू की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जहाज की अनुमति दे दी गई थी. लेकिन पंडित नेहरू और सुरक्षाकर्मियों का किराया सरकार ने वहन किया और कांग्रेस के अन्य नेता का किराया खुद नेहरू को खर्च करना पड़ा था.

सभी नेताओं ने दिखाया अपना वर्चस्व

चुनाव से पहले राजनीतिक विश्लेषक रिचर्ड पार्क ने कहा कि भारत के प्रमुख दलों के नेता चुनाव प्रचार की बारीकियों, राजनीतिक भाषणों, मुद्दों के नाटकीय प्रस्तुतिकरण और  राजनीतिक मनोविज्ञान को दूसरे देश के नेताओं से कम नहीं है. हालांकि ये भारत का आम चुनाव है आगे देखना पड़ेगा की भारत कितना आगे जाता है. भारत के पहले चुनाव के दौरान इलेक्शन कमीशन के मुख्य आयुक्त सुकुमार सेन कहा था कि चुनाव के इतिहास में यह प्रजातंत्र का सबसे बड़ा प्रयोग है. मद्रास के एक संपादक सी आर श्रीनिवासन ने कहा कि देश में अधिकतर मतदाता ऐसे हैं जो पहली बार अपना वोट डालने जा रहे हैं. उन्हें ये तक नहीं पता होगा कि वोट कैसे डाला जाता है. इसको अगर इतिहास का सबसे बड़ा जुआ कहा जाए तो गलत नहीं होगा. 

Lok Sabha Election 1952
 

अशिक्षित लोगों के बीच पला-बढ़ा भारतीय लोकतंत्र

एक पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा कि आने पीढ़ियां जब इस चुनाव के बारे में पढ़ेंगी तो वह हैरान हो जाएगी कि इतनी बड़ी संख्या में अशिक्षित लोगों के बीच लोकतंत्र की नींव रखी गई. यहां तक पंडित नेहरू को भी इस चुनाव को सफलता को लेकर उन्हें भी संशय था. नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में अपने एक संबोधन में कहा था कि निसंदेह प्रजातंत्र दुनिया के बेहतरीन शासन में से एक हैं. लेकिन लोकतांत्रिक चुनाव इस बात पर भी निर्भर करेगा कि सदन में नेता कैसे चुने जाते हैं. 

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25 January 2024, 12:40 PM IST

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