क्या मैरिटल रेप सिर्फ एक सामाजिक मुद्दा है? जानें केंद्र का विवादित तर्क!
सुप्रीम कोर्ट में वैवाहिक बलात्कार के मामले पर सुनवाई जारी है, जिसमें केंद्र सरकार ने कहा है कि यह कानूनी नहीं, बल्कि एक सामाजिक मुद्दा है. उनका तर्क है कि विवाह एक पारस्परिक दायित्व है और मौजूदा कानूनों में महिलाओं के लिए पर्याप्त सुरक्षा है. याचिकाकर्ताओं ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह प्रावधान महिलाओं की गरिमा का उल्लंघन करता है. क्या सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर बड़ा फैसला देगा? जानिए पूरी कहानी में!
Supereme Court About Marital Rape: भारत के सुप्रीम कोर्ट में वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर बहस जारी है. यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता को लेकर है. हाल ही में केंद्र सरकार ने इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को कानूनी अपराध मानना एक सामाजिक मुद्दा है, न कि कानूनी.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने जवाब में तर्क दिया कि विवाह एक पारस्परिक दायित्वों की संस्था है, जहां पति-पत्नी के बीच की सहमति को वैधानिक रूप से संरक्षित किया गया है. केंद्र ने यह भी कहा कि मौजूदा कानूनों में महिलाओं के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं और यदि धारा 375 के अपवाद 2 को खत्म कर दिया जाता है तो यह विवाह की संस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.
वैवाहिक बलात्कार पर बहस
सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई से कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार के इस तर्क को चुनौती दी है. याचिकाकर्ता रूथ मनोरमा समेत कई अन्य ने कहा कि अपवाद 2 महिलाओं की शारीरिक अखंडता और गरिमा का उल्लंघन करता है. उन्होंने यह भी कहा कि इससे महिलाओं के संबंध बनाने के लिए सहमति को कमजोर किया जा रहा है.
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने इस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया था, जबकि न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने इसे बरकरार रखा था. इस विभाजित फैसले के खिलाफ केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है जो वर्तमान में विचाराधीन है.
समाज पर प्रभाव
केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि वैवाहिक बलात्कार को कानूनी अपराध घोषित करने का निर्णय समाज पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सिर्फ सरकार ही इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय ले सकती है, न कि सुप्रीम कोर्ट.
यह मामला भारतीय समाज में गहरे सामाजिक मुद्दों को उजागर करता है, जहां विवाह के भीतर अधिकारों और सहमति के प्रति दृष्टिकोण पर पुनर्विचार की आवश्यकता है. सुप्रीम कोर्ट में चल रही बहस न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय है. इस मामले में आगे क्या निर्णय होगा यह देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि यह न केवल कानून बल्कि भारतीय समाज की संरचना को भी प्रभावित करेगा.