'क्या सच में कृष्ण जन्मभूमि पर बनी है मथुरा की शाही ईदगाह? जानिए पूरा मामला!'
मथुरा का एक पुराना विवाद फिर से गरमा गया है. हिंदू पक्ष का दावा है कि जिस जगह शाही ईदगाह मस्जिद बनी है, वहीं कभी भव्य कृष्ण मंदिर हुआ करता था, जिसे औरंगजेब ने गिरवा दिया था. वहीं, मुस्लिम पक्ष इस दावे को नकार रहा है. अब मामला कोर्ट में है और बड़ी बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है. आखिर सच क्या है? किसका दावा सही है? और अब आगे क्या होगा? जानिए पूरी खबर…

Mathura: मथुरा, जिसे भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि माना जाता है, यहां सदियों से एक विवाद चला आ रहा है. यह विवाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर है. हिंदू पक्ष का मानना है कि जिस स्थान पर मस्जिद खड़ी है, वहीं कभी एक भव्य मंदिर हुआ करता था, जिसे मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त कर दिया गया था. इस मामले ने हाल ही में एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं, क्योंकि अदालतों में इसे लेकर सुनवाई तेज हो गई है.
शाही ईदगाह मस्जिद मामला क्या है?
इस विवाद का मुख्य मुद्दा यह है कि 13.37 एकड़ की जिस जमीन पर शाही ईदगाह मस्जिद बनी हुई है, वह असल में श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जमीन है. हिंदू पक्ष चाहता है कि इस मस्जिद को वहां से हटाया जाए और इस स्थान को पूरी तरह मंदिर क्षेत्र घोषित किया जाए. हालांकि, मस्जिद समिति और सुन्नी वक्फ बोर्ड इस दावे को खारिज करते हैं और कहते हैं कि यह जमीन कानूनी रूप से उनके अधिकार में है.
इतिहास के पन्नों में विवाद की जड़ें
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1618 में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने कटरा केशवदेव मंदिर का निर्माण कराया.
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1670 में मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को गिरवा दिया और यहां शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई.
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1803 में अंग्रेजों ने मथुरा पर नियंत्रण कर लिया.
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1815 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मंदिर की पूरी जमीन नीलाम कर दी, जिसे राजा पटनीमल ने खरीदा.
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1944 में प्रसिद्ध उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने इस जमीन को खरीदकर श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम कर दिया.
- 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह मस्जिद समिति के बीच समझौता हुआ, जिसके तहत मस्जिद का प्रबंधन ईदगाह समिति को सौंप दिया गया.
कोर्ट में क्या चल रहा है मामला?
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2020 में हिंदू पक्ष ने अदालत में समझौते को चुनौती देते हुए दावा किया कि यह जमीन पूरी तरह से मंदिर क्षेत्र का हिस्सा है.
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मई 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में 18 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की.
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14 दिसंबर 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण किया जाए.
- 16 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस सर्वे को रोक दिया और कहा कि 23 जनवरी को इस मामले की आगे सुनवाई होगी.
क्या कहता है कानून?
मस्जिद समिति का कहना है कि 1991 का पूजा स्थल अधिनियम इस मामले पर रोक लगाता है. यह कानून कहता है कि किसी भी धार्मिक स्थल का स्वरूप वही रहेगा, जो 15 अगस्त 1947 को था. इसलिए, वे इस विवाद को गैरकानूनी बताते हैं.
अब आगे क्या?
यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है और आगे की सुनवाई के बाद ही यह तय होगा कि यह विवाद किस दिशा में जाएगा. हिंदू पक्ष जहां मंदिर की मांग कर रहा है, वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह कानूनी रूप से मस्जिद की जमीन है.


