जगदीप धनखड़ बोले- संविधान में संशोधन संसद का अधिकार, कोर्ट नहीं कर सकता हस्तक्षेप
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट पर दिए बयान की आलोचना के बाद दोबारा स्पष्ट किया कि लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च है और उससे ऊपर कोई भी अथॉरिटी नहीं हो सकती. उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन करने और उसका स्वरूप तय करने का अधिकार केवल संसद के पास है.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट को लेकर अपनी बेबाक राय रखी है. मंगलवार को दिए गए एक बयान में उन्होंने साफ कहा कि लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च है और उससे ऊपर कोई भी संस्था या अथॉरिटी नहीं हो सकती. उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि संविधान कैसा होगा, उसमें क्या संशोधन किए जाएंगे, यह पूरी तरह से संसद का अधिकार क्षेत्र है. उन्होंने कहा कि सांसद ही जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि होते हैं और उन्हें ही यह अधिकार है कि वे संविधान में संशोधन करें या किसी कानून को लागू करें.
धनखड़ का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब उन्होंने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की कुछ टिप्पणियों की आलोचना की थी, जिसके बाद उनके बयान को लेकर विभिन्न वर्गों में चर्चा और आलोचना शुरू हो गई थी. उन्होंने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित कई विधेयकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर सवाल उठाया था. इस मामले में राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबित रखने और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को आदेश देने की बात पर उन्होंने नाराजगी जताई थी.
धनखड़ का तीखा वार
धनखड़ ने कहा, “आज हम ऐसा समय देख रहे हैं जब सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश दे रहा है. यह कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति को तय समयसीमा में निर्णय लेना होगा, और अगर फैसला नहीं हुआ तो मान लिया जाएगा कि विधेयक पारित हो गया. क्या अब अदालत ही संसद और कार्यपालिका को चलाएगी?” उन्होंने आगे कहा कि यह स्थिति लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध है और इससे सत्ता के तीनों स्तंभों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – के बीच संतुलन प्रभावित हो सकता है.
अदालत अब राष्ट्रपति को दे रही आदेश!
इस संदर्भ में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 142 (Article 142) का भी उल्लेख किया. इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति दी गई है कि वह “पूरे देश में लागू होने वाला निर्णय” ले सकता है, जिससे जनहित में प्रभावी न्याय हो सके. लेकिन उपराष्ट्रपति ने इस पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि, “कोर्ट के हाथ में अनुच्छेद 142 एक परमाणु जैसा हथियार बन गया है.” उन्होंने इस शक्तिशाली अनुच्छेद के इस्तेमाल को लेकर सावधानी बरतने की बात कही.
सांसद ही तय करेंगे कानून का रूप
उपराष्ट्रपति की यह राय देश के संवैधानिक ढांचे और लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को लेकर चल रही बहस के बीच एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप मानी जा रही है. उनकी इस टिप्पणी ने एक बार फिर संसद बनाम न्यायपालिका की बहस को नई हवा दे दी है.


