महाराष्ट्र और तमिलनाडु में वर्षों से सांड पर काबू करने वाले पारंपरिक 'जल्लीकट्टू' खेल को पर बैन लगेगा या नहीं इसको लेकर गुरुवार 18 मई को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। इसस खेल को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि इस तहर के खेल में बैलों और सांडों के साथ क्रूरता का की जाती है। आज पांच जजों की पीठ इस मामले पर अपना फैसला सुनाएगी।
'जल्लीकट्टू' खेल रोक लगाई जाएगी या इसे जारी रखा जाएगा इस पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जज निर्णय लेंगे। इनमें अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश रॉय जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, और सीटी रविकुमार की पांच जजों की संविधान पीठ शामिल हैं। इस खेल में सांडों या बैलों को भीड़ के बीच छोड़ दिया जाता है। फिर एक खिलाड़ी सांड को अपने वश में करने का प्रयास करता है।
इस खेल का आयोजन पोंगल पर्व के अवसर पर किया जाता है। इसको लेकर कोर्ट में यचिका दायर करके कहा गया कि इसमें सांडों के साथ हिंसा की जाती है।
तमिलनाडु सरकार ने जल्लीकट्टू पर बैन लगाने का बचाव किया था। सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि इस खेल का आयोजन मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के लिए किया जाता है। अपनी बात रखने के लिए तमिलनाडु सरकार ने तर्क दिया कि पेरू, कोलंबिया और स्पेन जैसे देश बुल फाइटिंग को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं। साथ ही 'जल्लीकट्टू' में शामिल बैल शामिल होने वाले सांड/बैंल साल भर किसानों के पास रहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से सवाल किया था कि क्या जल्लीकट्टू जैसे खेल में सांडों को वश में करने के लिए व इंसानों के मनोरंजन के लिए जानवर का उपयोग किया जाता है। यह सांडों की देशी नस्ल के संरक्षण के लिए लिए कैसे जरूरी है। First Updated : Thursday, 18 May 2023