Abolition of article 370 : केंद्र की बीजेपी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 के को संसद में प्रस्ताव लाकर खत्म कर दिया. इसके पहले यहां की स्थिति अजीबो-गरीब थी. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद यहां बहुत सारी चीजें एक झटके में ही बदल गईं. भारत सरकार के इस फैसले पर सोमवार यानी 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी है. अब जम्मू-कश्मीर भी भारत के अन्य राज्यों की तरह हो गया है. इस राज्य को अब कोई विशेष दर्जा नहीं है.
जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने से सबसे ज्यादा बदलाव वहां राज्य में रहने वाले करीब 20 हजार परिवारों की जिंदगी में आया है. ये परिवार बीते 75 साल से दोयम दर्जे की जिंदगी जी रहे थे. इनके साथ सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि ये लोग भारत सरकार के नागरिक थे, लेकिन 5 अगस्त 2019 से पहले के जम्मू-कश्मीर की सरकार इन्हें अपना नागरिक नहीं मानती थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सबसे ज्यादा सकारात्मक असर इनकी जिदंगी में ही आया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किनको क्या लाभ हुए हैं इसके बारे में हम जानते हैं.
दरअसल बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से आए हिंदू परिवार जम्मू क्षेत्र के कठुआ और संबा जिलों में बस गए थे. भारत सरकार के गृह मंत्रालय के मुताबिक ये कुल 5746 परिवार थे. लेकिन, समुदाय के नेताओं का दावा है कि वे करीब 20 हजार परिवार हैं. इन परिवारों के साथ विडंबना यह है कि भारत सरकार ने इन्हें भारत का नागरिक स्वीकार करती है, लेकिन अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर सरकार इन्हें राज्य का नागरिक नहीं मानती है. इके कारण यह 20 हजार परिवार के लोग विधानसभा चुनाव में मतदान नहीं कर पाते हैं, जबकि लोकसभा चुनाव में इनको वोट देने का अधिकार है.
अब अनुच्छेद 370 हर तरह से अप्रभावी होने के कारण जम्मू-कश्मीर देश के अन्य राज्यों की तरह हो गया है और पाकिस्तान से आए इन परिवर भी अन्य भारतीयों की तरह हो गए हैं. उन्हें भारत के साथ ही जम्मू कश्मीर की स्वत: नागरिकता मिल गई है. इनको अब राज्य सरकार की हर तरह कीयोजना ओं का लाभ और सुविधाएं मिलेंगी.
अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद भारत सरकार ने संसद में एक विधेयक पेश किया है, जिसमें आतंकवाद की वजह से घाटी से विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए दो विधानसभा सीटें आरक्षित की गई हैं. इसके अलावा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से विस्थापित हुए लोगों के लिए एक सीट रिजर्व रखने की बात कही गई है.
अनुच्छेद 370 खत्म करने के साथ ही भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. लद्दाख को बिना सदन वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में सदन की व्यवस्था की गई थी. हालांकि अभी तक राज्य में चुनाव नहीं हुए हैं. केंद्र सरकार ने कहा था कि वह आने वाले दिनों में फिर से जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कर देगी.
जम्मू-कश्मीर में इस समय डिलिमिटेशन की प्रक्रिया चल रही है. इसके लिए जस्टिस (रिटायर) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में मार्च 2020 में एक आयोग बनाया गया था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जम्मू क्षेत्र में विधानसभा की छह और कश्मीर क्षेत्र में एक विस सीट बढ़ाने की सिफारिश की है. इसके साथ ही राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए नौ और अनुसूचित जाति के लिए सात सीटें आरक्षित करने की बात कही गई है. अनुच्छेद 370 के प्रभावी रहते राज्य में कोई आरक्षण लागू नहीं था.
अनुच्छेद 370 के साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य में अनुच्छेद 35ए में प्रभावी था. अब अनुच्छेद 370 के अप्रभावी हो गया है और इसके साथ ही यह अनुच्छेद भी खत्म हो गया है. अनुच्छेद 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के पास स्थायी निवासियों और उनके अधिकारों व विशेषाधिकारों को परिभाषित करने का अधिकार था. इन दोनों अनुच्छेदों के अप्रभावी होने के बाद भारत का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में स्थायी तौर पर जमीन और गर खरीद सकता है और वहां का नागरिक बन सकता है. First Updated : Tuesday, 12 December 2023