घाटी की नई उम्मीद किश्तवाड़ की 'शगुन', हिंसा से अगल बनी इलाके की पहचान

Jammu Kashmir Assembly Election: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं. ऐसे में यहां से कई कहानियां और क्षेत्र में हुए बदलाव की बाते सामने आना लाजमी है. कुछ ऐसे ही कहानी है सालों तक हिंसा से ग्रस्त किश्तवाड़ और चिनाब घाटी की कहानी जो अब विकास की राह पर आगे बढ़ रही है. यहां एक उम्मीद बनकर शगुन परिहार आई हैं. आइये जानें 90 के दौर से यहां क्या और कैसे हुआ. फिर अब नई रोशनी कैसे जली है.

Shyamdatt Chaturvedi
Shyamdatt Chaturvedi

Jammu Kashmir Assembly Election: घाटी की जान चिनाब और किश्तवाड़ जो सालों से संघर्ष और हिंसा का सामना कर रहे थे. अब विकास की राह में आगे बढ़ चले हैं. 90 के दौरे में जारी हिंदुओं की हत्या अब यहां थम गई है. लोगों को अपने धर्म और अनुष्ठान के लिए आजादी मिल गई है. अब दुखों के पहाड़ से उतरकर घाटी की नई उम्मीद बनकर उभरी हैं शगुन परिहार जिन्होंने कट्टरपंथी हिंसा में अपने पिता को खो दिया था. आइये जानते हैं कैसे किश्तवाड़ अब अपनी नई पहचान और उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहे हैं.

बता दें किश्तवाड़ में 1990 के दशक से हिंसा का सिलसिला शुरू हुआ था. 1993 में मुस्लिम चरमपंथियों ने 17 हिंदू यात्रियों की हत्या कर दी. इसके बाद 2001, 2008 और 2013 में कई हिंदुओं की हत्या की गई थी. इलाके को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब 2018 परिहार समुदाय की उम्मीद अनिल परिहार की हत्या कर दी गई. अब उनकी बेटी ही क्षेत्र को नई रोशनी के साथ आगे बढ़ाने को तैयार हैं.

घाटी की नई उम्मीद 'शगुन'

घाटी के मुश्किल दौर में परिवार के कई लोगों को खोने के बाद शगुन परिहार के रूप में उम्मीद की किरण का उदय हुआ. 23 साल उम्र में असहनीय दुख का सामना करना पड़ा. पिता, चाचा की मौत से उनको बड़ा झटका लगा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने दुखों को ताकत में बदल लिया. अब जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें किश्तवाड़ से एकमात्र महिला उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारा है.

शगुन परिहार की पढ़ाई से राजनीति तक का सफर उनकी मेहनत और ताकत को बखूबी दिखाता है. अपने पिता की विरासत और क्षेत्र के शहीदों के सम्मान के लिए वो सियासी गलियों में कदम रख चुकी हैं. क्योंकि, अब किश्तवाड़ अपनी नई पहचान के साथ खड़ा है. शगुन के साथ वो भी अपने धैर्य और बदलाव के प्रतीक को जाहिर कर रहा है.

90 के दशक से शुरू हुईं हिंसात्मक घटनाएं

1993- मुस्लिम चरमपंथियों ने किश्तवाड़ के सारथल इलाके में 17 हिंदू बस यात्रियों की हत्या कर दी
2001- लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने किश्तवाड़ के पास डोडा के लैडर गांव में 17 हिंदू ग्रामीणों की हत्या कर दी
2008- टारगेट अटैक में कई हिंदुओं की जान चली गई
2013- अलग-अलग घटनाओं में कई हिंदुओं का मारी गया
2018- कश्मीर में भाजपा के एक प्रमुख नेता परिहार समुदाय के अनिल परिहार और उनके भाई को हिज़्बुल मुजाहिदीन ने मार डाला

2019 के बाद से हो रहा बदलाव

2019 के बाद से इस क्षेत्र में कई बड़े बदलाव आए हैं. सबसे बड़ा ये कि यहां अब हिंसा की घटनाएं कम हो गई हैं. आतंकवाद से तबाह हुए हिंदू मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया जा रहा है. क्षेत्र के पवित्र स्थल गौरी शंकर मंदिर, अष्टभुजा मां दुर्गा मंदिर, सर्कूट अब एक प्रमुख तीर्थ स्थल और उत्सवों का केंद्र बन चुके हैं. यहां अब बिना डर के जन्माष्टमी, रामनवमी मनाई जाती है. इसके साथ बिना भय के मचैल यात्रा और सारथल यात्रा भी निकाली जाती है.

लोगों की चर्चाओं को जानिए

स्थानीय हनुमान मंदिर के पंडित बताते हैं कि वो बर्बाद हो गया था. अब प्रेम और स्नेह के साथ पुनर्निर्मित हुआ है. ये हमारे समुदाय की आस्था और शक्ति के प्रतीक है. आर्टिकल 370 हटने के बाद हमने नए युग में कदम रखा है. बटोट-किश्तवाड़ राष्ट्रीय राजमार्ग बन गई है. इसमें हमारी जीवन रेखा को नई गती दी है. किश्तवाड़ के राजू श्याम की मानें तो श्रीनगर और जम्मू तक का सफर अब तेज हो गया है. इसने बाजार के साथ रोजगार भी दिया है.

सुरक्षित महसूस कर रहे हैं लोग

स्थानीय निवासियों ने भारत सरकार को इस बदलाव के लिए धन्यवाद दिया है. अब वो सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. उनको अपने धर्म का पालन करने के लिए अब पूरी स्वतंत्रता मिल गई है. खेलेनी टनल जैसी अन्य बुनियादी परियोजनाओं ने इलाके में नई ऊर्जा भर दी है. कनेक्टिविटी में सुधार स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ा रही है. कुछ ऐसी ही है किश्तवाड़ की हिंसा से अहिंसा और विकास के पथ की यात्रा.

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04 September 2024, 11:44 AM IST

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