Jammu Kashmir Assembly Election: जम्मू-कश्मीर में आखिरी चरण के लिए मतदान कल होना है. इससे पहले कांग्रेस पर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं. कहा जा रहा है कांग्रेस पार्टी का पिछड़े वर्गों के प्रति रवैया दशकों से दमनकारी रहा है. इंदिरा गांधी के मंडल आयोग की सिफारिशों को अनदेखा करने से लेकर राहुल गांधी की नीतियों तक. पार्टी ने लगातार पिछड़े के अधिकारों को नजरअंदाज किया है. राहुल गांधी ने जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) के घोषणापत्र का समर्थन किया है, जिसमें दलितों, गुज्जर, बकरवाल और पहाड़ी समुदायों के लिए आरक्षण समाप्त करने का प्रस्ताव है.
घोषणापत्र में यह भी कहा गया है कि अगर कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस सत्ता में आई, तो वे जम्मू-कश्मीर की आरक्षण नीति की समीक्षा करेंगे. इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जम्मू-कश्मीर के SC, ST और OBC वर्गों को दिए गए नए अधिकारों पर खतरा मंडरा सकता है.
कांग्रेस का पिछड़े वर्गों और दलितों के अधिकारों के प्रति उदासीनता कोई नई बात नहीं है. पार्टी ने हमेशा इन समुदायों के लिए जरूरी सुधारों को दबाने की कोशिश की है. नेहरू का डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रति विरोध और इंदिरा गांधी का मंडल आयोग को नकारना इस बात का प्रमाण है. कांग्रेस ने सामाजिक न्याय के मुद्दों पर हमेशा दोहरे मापदंड अपनाए हैं.
पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ. अंबेडकर के बीच दलित अधिकारों और आरक्षण पर गहरे मतभेद थे. 1952 और 1954 के चुनावों में नेहरू ने अंबेडकर के खिलाफ प्रचार किया, ताकि उन्हें हराया जा सके. इसके बावजूद, जनसंघ के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अंबेडकर को राज्यसभा में भेजा. 1956 में नेहरू ने काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को भी ठुकरा दिया, जो सामाजिक न्याय के प्रति उनके नकारात्मक रुख को दर्शाता है.
1980 में इंदिरा गांधी ने मंडल आयोग की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया. इस आयोग ने OBC को आरक्षण देने की बात कही थी, लेकिन इंदिरा और उनके बेटे राजीव गांधी ने इसे अनदेखा किया. 1990 में जब मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की जा रही थीं, तब भी कांग्रेस ने इसका विरोध किया. राजीव गांधी ने यह तक कहा कि आरक्षण से कामकाजी क्षमता में कमी आएगी.
2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद, जम्मू-कश्मीर के वाल्मीकि, गुज्जर-बकरवाल और पहाड़ी समुदायों के लिए एक नई आशा की किरण जगी. ये समुदाय सालों से अधिकारों से वंचित थे, लेकिन अब उन्हें सरकारी नौकरियों और अन्य अवसरों में भागीदारी मिली.
वाल्मीकि समुदाय के नेता घेलू राम ने कहा कि पांच अगस्त 2019 हमारे लिए नई सुबह लेकर आया. अब, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का घोषणापत्र इस प्रगति को खतरे में डाल रहा है. अगर अनुच्छेद 370 को फिर से लागू किया गया, तो इन समुदायों के अधिकार छिन सकते हैं. 26 वर्षीय अनीता कुमारी नेशनल कॉन्फ्रेंस के घोषणापत्र से चिंतित हैं.
राहुल गांधी खुद को संविधान के मूल्यों का रक्षक बताते हैं, आरक्षण के मुद्दे पर चुप हैं. उनकी चुप्पी कांग्रेस की असली मंशा पर सवाल उठाती है. यह पार्टी के पुराने इतिहास के साथ मेल खाता है. जब कांग्रेस ने दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के खिलाफ काम किया था. राहुल गांधी का विदेश में बड़े-बड़े बयान देना असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश हो सकती है.
आने वाले जम्मू-कश्मीर चुनाव 2024 में वाल्मीकि, गुज्जर-बकरवाल और अन्य पिछड़े समुदायों के अधिकारों का भविष्य तय करेंगे. अगर कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का घोषणापत्र लागू होता है तो यह समुदाय फिर से कठिनाइयों का सामना करेंगे. यह चुनाव सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के लिए एक निर्णायक लड़ाई है.