मोदी युग में जम्मू-कश्मीर का नवउदय, कल्चर के तड़के से इकोनॉमी बूम

Jammu Kashmir New Rise: लंबे समय में तक आतंक और अलगाव के साए में रहे जम्मू-कश्मीर का अब नवउदय हो रहा है. देश में साल मोदी युग आने के बाद 2019 में धारा 370 हटाई गई. इसके बाद से प्रदेश के द्वार विकास के लिए खुल गए. इसके साथ ही कश्मीरी कल्चर के विकास के लिए मोदी सरकार ने कदम उठाए. इसी का परिणाम है कि प्रदेश की इकोनॉमी में बूम आया है.

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Jammu Kashmir New Rise: जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान में 2019 के बाद एक नया दौर देखने को मिला है. केंद्र सरकार के प्रयासों से जम्मू के कई उत्पादों को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग प्राप्त हुआ है. इससे न केवल स्थानीय धरोहर को वैश्विक पहचान मिली है, बल्कि आर्थिक प्रगति को भी बढ़ावा मिला है. इन उत्पादों ने अपनी विशिष्टता बनाए रखी है और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी लोकप्रियता हासिल की है.

जीआई टैग ने जम्मू के उत्पादों को न केवल स्थानीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है. इन टैग्स ने धरोहरों को संरक्षित करने के साथ-साथ आर्थिक उन्नति को भी बढ़ावा दिया है, जिससे क्षेत्र की सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है.

कठुआ-बसोहली पेंटिंग और पश्मीना: शिल्प की पुनरुद्धार

कठुआ की बसोहली पेंटिंग और पश्मीना कला ने पुराने समय की कला को फिर से जीवन में लाया है. बसोहली पेंटिंग की जटिल डिजाइन और रंगों की विशेषता ने इसे जीआई टैग मिलने के बाद देशभर में नई पहचान दिलाई है. पश्मीना, अपनी मुलायमता और बारीकी के लिए मशहूर है, और इसे 2023 में जीआई टैग प्राप्त हुआ. इस कला को बढ़ावा देने के लिए उद्योग और वाणिज्य विभाग, नाबार्ड जम्मू, और मानव कल्याण संघ का सहयोग रहा है.

भद्रवाह-राजमा: खेती की नयी पहचान

भद्रवाह का राजमा, जिसे 2023 में जीआई टैग मिला, एक विशेष प्रकार की लाल किडनी बीन्स है। यह अब न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी पहचान बना रही है. किसानों को इससे अधिक लाभ मिल रहा है, और जीआई टैग ने इस क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारा है.

राजौरी-चिकरी लकड़ी की कला: धरोहर की पुनः खोज

राजौरी की चिकरी लकड़ी की कला, जो वर्षों से उपेक्षित थी, अब जीआई टैग की बदौलत फिर से जीवंत हो रही है. इस पारंपरिक शिल्प को 2021 में जीआई टैग प्राप्त हुआ, जिससे इसका निर्यात बढ़ा है और कारीगरों को नया जीवन मिला है.

रामबन-सुलाई हनी: प्रकृति की मिठास

रामबन का शहद, जिसे सुलाई हनी भी कहा जाता है, अपने खास स्वाद और पौष्टिक गुणों के लिए प्रसिद्ध है. इसे 2021 में जीआई टैग मिला और इसके बाद इस शहद की गुणवत्ता और प्रमाणिकता की पुष्टि हुई. अब यह शहद बड़े बाजारों तक पहुंच रहा है और मधुमक्खी पालकों को अधिक मुनाफा हो रहा है.

आरएस पुरा-बासमती चावल: गर्व और समृद्धि

आरएस पुरा का बासमती चावल, जो अपनी सुगंध और लंबे दानों के लिए प्रसिद्ध है, को जनवरी 2024 में जीआई टैग मिला. इससे न केवल किसानों को अधिक लाभ हुआ है, बल्कि इस क्षेत्र की वैश्विक पहचान भी बढ़ी है.

उधमपुर-कलाड़ी: डोगरा चीज़ का उदय

उधमपुर की प्रसिद्ध "कलाड़ी" अब सिर्फ स्ट्रीट फूड नहीं रही, बल्कि इसे डोगरा संस्कृति की पहचान के रूप में देखा जा रहा है. 2023 में इसे जीआई टैग प्राप्त हुआ और अब यह देशभर में मशहूर हो रही है.

किश्तवाड़-केसर: सोने जैसी कीमत

किश्तवाड़ का केसर, जो पहले कश्मीर के केसर के मुकाबले में था, अब अपनी अलग पहचान बना चुका है. हालांकि इसे अभी तक जीआई टैग नहीं मिला है, लेकिन इसकी बढ़ती मांग और गुणवत्ता इसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी प्रसिद्ध बना रही है.

भद्रवाह-लैवेंडर: पर्पल क्रांति की सफलता

भद्रवाह में लैवेंडर की खेती ने क्षेत्र में आर्थिक उन्नति के नए रास्ते खोले हैं. हालांकि इसे अभी तक जीआई टैग नहीं मिला है, लेकिन सरकार इसे जल्द ही टैग देने की योजना बना रही है. लैवेंडर के उत्पाद अब अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी लोकप्रिय हो रहे हैं.

First Updated : Tuesday, 17 September 2024