शर्तों के साथ जेडीयू और टीडीपी ने दिया वक्फ बिल को समर्थन, पर्दे के पीछे की क्या है कहानी?
परंपरागत रूप से टीडीपी और जेडी(यू) मुस्लिम समर्थन पर बहुत अधिक निर्भर हैं. दोनों पार्टियों ने मुसलमानों से संबंधित मुद्दों पर भाजपा से अलग रुख अपनाया है, खासकर समान नागरिक संहिता जैसे मामलों पर. लेकिन पर्दे के पीछे की चर्चाओं ने भाजपा को इन दलों को विधेयक का समर्थन करने के लिए राजी कर लिया.

चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) जैसी सेक्युलर पार्टियों द्वारा विवादास्पद वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन करने के फैसले ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है. लेकिन सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे मुख्य कारण भाजपा द्वारा गठबंधन सहयोगियों से विवादास्पद मुद्दों पर समर्थन हासिल करने का प्रयास था.
परंपरागत रूप से टीडीपी और जेडी(यू) मुस्लिम समर्थन पर बहुत अधिक निर्भर हैं. दोनों पार्टियों ने मुसलमानों से संबंधित मुद्दों पर भाजपा से अलग रुख अपनाया है, खासकर समान नागरिक संहिता जैसे मामलों पर. लेकिन पर्दे के पीछे की चर्चाओं ने भाजपा को इन दलों को विधेयक का समर्थन करने के लिए राजी कर लिया है.
अमित शाह समेत सीनियर मंत्रियों ने संभाली कमान
अगस्त में विधेयक पेश करने से पहले वरिष्ठ मंत्रियों ने टीडीपी और जेडी(यू) नेतृत्व को इसके महत्व के बारे में बताया था. उन्होंने सहयोगी दलों चिराग पासवान की लोक जनशक्ति और जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल के नेताओं से भी सलाह ली, उन्हें इसकी आवश्यकता बताई और इस बात पर जोर दिया कि इसका उद्देश्य मुस्लिम हितों की रक्षा करना और महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करना है, न कि समुदायों का ध्रुवीकरण करना, जैसा कि विपक्ष ने आरोप लगाया है. सहयोगी दल व्यापक रूपरेखा से सहमत थे, फिर भी उन्हें कुछ प्रावधानों के बारे में चिंताएं थीं, विशेष रूप से मौजूदा वक्फ संपत्तियों पर प्रभाव और राज्य सरकारों के अधिकारों पर अतिक्रमण के संबंध में.
जेडीयू के संशोधन शामिल
इसके बाद विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया, जिसने 14 संशोधनों को स्वीकार कर लिया, जिनमें जेडी(यू) और टीडीपी के महत्वपूर्ण सुझाव भी शामिल थे. जेडी(यू) ने इस बात पर जोर दिया कि मौजूदा मस्जिदों, दरगाहों या अन्य मुस्लिम धार्मिक स्थलों में हस्तक्षेप से बचने के लिए नए कानून को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू नहीं किया जाना चाहिए.
जेडीयू ने वक्फ भूमि पर निर्णय लेने के लिए राज्यों से परामर्श करने पर भी जोर दिया, क्योंकि भूमि राज्य का विषय है. टीडीपी ने राज्यों की स्वायत्तता बनाए रखने की वकालत की और विवाद समाधान के लिए कलेक्टर स्तर से ऊपर के वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति और पोर्टल पर वक्फ से संबंधित दस्तावेज अपलोड करने की समयसीमा बढ़ाने का सुझाव दिया. संशोधित विधेयक में इन सुझावों को शामिल किया गया, जिसके फलस्वरूप इसे कैबिनेट द्वारा मंजूरी दे दी गई.
अमित शाह ने ललन सिंह और संजय झा से की बात
जेडी(यू) और टीडीपी के नेताओं ने इस विधेयक का समर्थन किया है और कहा है कि यह मुस्लिम महिलाओं और हाशिए पर पड़े समुदायों के हितों से जुड़ा है. एलजेपी और आरएलडी ने भी इस विधेयक का समर्थन किया है. विधेयक को लोकसभा में पेश किए जाने से पहले गृह मंत्री अमित शाह ने संसद भवन में जेडी(यू) नेता ललन सिंह और संजय झा से मुलाकात की और उन्हें बताया कि पार्टी के सुझावों को विधेयक में शामिल कर लिया गया है.
लोकसभा में बहस के दौरान ललन सिंह ने विधेयक का जोरदार समर्थन किया और इस बात को खारिज कर दिया कि यह मुस्लिम हितों के खिलाफ है. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा मुसलमानों के कल्याण के लिए उठाए गए कदमों पर प्रकाश डाला और आगामी बिहार चुनावों के मद्देनजर कई बार उनका जिक्र किया.
टीडीपी ने क्यों दिया साथ?
इसी तरह, टीडीपी के केपी तेनेटी ने इस बात पर जोर दिया कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मुसलमानों के लाभ के लिए कई फैसले लिए हैं. टीडीपी ने मुस्लिम महिलाओं, युवाओं और हाशिए पर पड़े समुदायों के हितों पर ध्यान केंद्रित करते हुए विधेयक का समर्थन किया.
अन्य सहयोगियों ने भी दिया समर्थन
एलजेपी, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और आरएलडी समेत बीजेपी के अन्य सहयोगी दलों ने भी इस रुख से सहमति जताई. सूत्रों ने बताया कि विधेयक पर सहयोगियों को साथ लेना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूसरे से तीसरे कार्यकाल तक की नेतृत्व शैली में निरंतरता को दर्शाता है.