Genetic Hospital Ranchi: झारखंड के रांची बरियातू-बूटी रोड में स्थित जेनेटिक अस्पताल की करतूत सामने आया है. पूरा बिल नहीं जमा करने पर अस्पताल प्रबंधन ने एक मां को उसके बेटे से अलग कर दिया. अस्पताल प्रबंधन ने करीब 23 दिन तक महिला को उसके नवजात बच्चे से अलग बंधक बना कर रखा और बच्चे को पिता के साथ घर भेज दिया. इसके बाद गुरुवार को पति मंगलू सिंह की शिकायत पर सीआईडी टीम अस्पताल पहुंची और प्रबंधन को खूब फटकार लगाते हुए महिला को बंधक से छुड़ाया. महिला को 28 मई को प्रसव पीड़ा होने पर खूंटी सदर अस्पताल ले जाया गया था.
झारखंड हाई कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए मामले में संज्ञान लिया है और अस्पताल के प्रधान सचिव से जवाब मांगा है. कोर्ट ने मामले में रांची सिविल सर्जन को उक्त अस्पताल के रजिस्ट्रेशन की जांच करने का आदेश दिया है. कोर्ट में मौजूद स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने आश्वस्त किया है कि जांच कर जेनेटिक अस्पताल प्रबंधन पर कार्रवाई की जाएगी.
यह मामला रांची के रनिया के बनाबीरा नावटोली की है. यहां सुनीता कुमारी नाम की महिला को 28 मई को प्रसव पीड़ा होने पर खूंटी सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. महिला के हालत नाजुक थे जिसकी वजह से उन्हें रिम्स रेफर कर दिया गया. यहां आते ही आटो चालत महिला के पति मंगलू को झांसा देकर जेनेटिक अस्पताल ले गया जहां महिला ने बच्चे को जन्म दिया. पति मंगलू ने बताया कि, अस्पताल ने इलाज के चार लाख रुपये मांगे थे. उसने जमीन बेचकर 2 लाख रुपये दे दिए लेकिन बाकी दो लाख देने में वो असमर्थ था. इसके बाद अस्पताल ने सुनीता को बंधक बना लिया और बच्चे को मंगलू के साथ घर जाने दिया.
मंगलू ने आरोप लगाया था कि स्थिति गंभीर होने की बात कहने पर इलाज के लिए हमारी भर दी. पहले ईलाज के लिए 1.20 लाख रुपये मांगे थे जो उसने जमीन बेचकर भर दिए थे. बाद में दो लाख और मांगे लेकिन वो नहीं दे पाया. मामले पर सफाई देते हुए अस्पताल के निदेशक मनोज अग्रवाल ने कहा कि, बंधक नहीं बनाया गया था परिजन अपनी स्थिति बताते तो मरीज को पहले छोड़ दिया जाता. सारा बिल माफ कर देते. उन्होंने कहा कि, जब भी किसी मरीज का बिल ज्यादा होता है तो ऐसी ही स्थिति बन जाती है.
मंगलू ने बताया कि, जब उसे अस्पताल प्रबंधन ने नवजात के साथ घर भेज दिया तो उसे बकरी का दुध पिलाकर जिंदा रखा. उसने बताया कि, अस्पताल प्रबंधन ने 23 दिन बात उसकी पत्नी को मुक्त किया. जब वह घर आई तो अपने बच्चों को अपना दुध पिलाई. सुनिता के घर आने के बाद आसपास की सभी महिलाएं उससे मिलने आई और अस्पताल प्रबंधन को खूब कोस रही थी. महिलाओं का कहना था कि ऐसे अस्पताल के संचालकों के खिलाफ सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.
CWC ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया है. शुक्रवार को CWC ने अस्पताल प्रबंधन को नोटिस जारी किया और पूछा कि आखिर किन परिस्थितियों में एक दुध पीते बच्चे को 23 दिनों तक मां से अलग रखा गया. इसके अलावा CWC ने ये भी पूछा कि आखिर सिजिरियन में साढ़े तीन लाख रुपए कैसे लगे और पैसा नहीं दे पानी पर नवजात बच्चे को मां से कैसे अलग कर दिया गया. जस्टिस आर मुखोपाध्याय व जस्टिस दीपक रोशन की अदालत ने संज्ञान लेते हुए स्वास्थ्य सचिव को मामले की जांच कर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. अदालत ने रांची के सिविल सर्जन को अस्पताल के निबंधन की जांच करने का भी निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को तय की गई है. First Updated : Saturday, 29 June 2024