जोकर आयोग से लेकर अध्यादेश विवाद तक, वो 4 मौके जब मनमोहन सिंह को सहना पड़ा अपमान

Manmohan Singh: मनमोहन सिंह, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री, 30 साल तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे. इस दौरान उन्हें कई कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. इस दौरान वो कई बार अपमानित हुए लेकिन इसके बावजूद, मनमोहन ने देशहित को सर्वोपरि रखा और अपने काम में लगे रहे.

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Manmohan Singh: मनमोहन सिंह, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और एक कुशल अर्थशास्त्री, करीब 30 साल तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे. इस दौरान उन्होंने देश की सेवा के लिए कई कठिन परिस्थितियों का सामना किया. उनके जीवन में चार ऐसे मौके आए, जब उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया, लेकिन उन्होंने देशहित को प्राथमिकता दी और अपने काम पर ध्यान केंद्रित रखा. आज हम आपको उन्ही किस्सों के बारे में बताने जा रहे हैं जब उन्हें अपमान सहे लेकिन बावजूद इसके वो देश के हित के लिए काम करते रहे.

राजीव गांधी ने कहा ‘जोकर आयोग’

साल 1986 में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और मनमोहन सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष. उस दौरान एक बैठक में, जब मनमोहन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर एक प्रेजेंटेशन दिया, तो राजीव गांधी ने योजना आयोग को 'जोकर आयोग' कह दिया. इस टिप्पणी से मनमोहन आहत हुए और इस्तीफा देने का विचार किया, लेकिन दोस्तों और देशहित की वजह से पद पर बने रहे. हालांकि, 1987 में उनका कार्यकाल समाप्त हो गया.

कांग्रेस सांसदों ने ही किया विरोध

1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया. देश की आर्थिक स्थिति उस वक्त बेहद खराब थी. मनमोहन ने आर्थिक उदारीकरण के तहत लाइसेंस राज खत्म करने और निवेश बढ़ाने के लिए कदम उठाए. लेकिन कांग्रेस के सांसदों ने उनका विरोध किया. संसदीय दल की बैठक में मनमोहन को खुलकर आलोचना का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद उन्होंने अपने फैसलों पर कायम रहते हुए देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम किया.  

प्रधानमंत्री बने, पर शक्तियां सीमित रहीं

2004 में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह को चुना. लेकिन सरकार में अहम मंत्रालयों के लिए कांग्रेस हाईकमान का दबाव झेलना पड़ा. वित्त मंत्रालय, जिसे मनमोहन अपने पास रखना चाहते थे, उन्हें पी. चिदंबरम को सौंपना पड़ा. मनमोहन ने इन परिस्थितियों में भी बिना शिकायत देशहित के लिए काम किया.

राहुल गांधी का अध्यादेश फाड़ने का विवाद

2013 में मनमोहन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश लाने का निर्णय लिया. लेकिन राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से इस अध्यादेश की आलोचना करते हुए इसे 'बकवास' कहकर फाड़ने की बात कही. इस घटना से मनमोहन सिंह आहत हुए और इस्तीफा देने का मन बना लिया, लेकिन देशहित और कांग्रेस की राजनीति को ध्यान में रखते हुए वे चुप रहे.

इतिहास ने दिया न्याय

मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद उन्होंने कहा था, इतिहास मेरे प्रति उदार होगा. उनका जीवन हमें सिखाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी देशहित को सर्वोपरि रखना चाहिए. First Updated : Friday, 27 December 2024