Success Story:डिलीवरी बॉय से जज तक का सफर: गरीबी को दी मात और हासिल की ऊंचाईयां!
आज आपको हम एक ऐसी कहानी सुनाते हैं जिसमें एक ऐशा करैक्टर है जिसने डिलीवरी मैन से जज बनने का सफर तय किया है. इस डिलीवरी बाय ने कठिनाइयों और संघर्ष को पार कर, अपनी मेहनत और आत्मविश्वास से समाज में ऊंचा स्थान हासिल किया है. वह शख्स जो कभी डिलीवरी बाय था, अब न्याजयपालिका में एक सम्मानित जज बन चुका है. यह कहानी हमें सिखाती है कि मुश्किलें केवल अस्थाई होती हैं, और यदि सही दिशा में मेहनत की जाए तो इंसान कोई भी लक्ष्य हासिल कर सकता है.
Success Story in Hindi: यसीन शाह मोहम्मद ने अपनी कठिन मेहन और जज्बे के बल पर केरल न्यायिक सेवा परीक्षा 2024 में दूसरा स्थान हासिल किया. अब वह सिविल जज बनने के लिए पूरी तरह से योग्य है. यह सफलता किसी फिल्म कहानी से कम नहीं है, जिसमें 'कभी न हार मानने' ਵਾਲਾ जज्बा उन्हें एक डिलीवरी बाय से मजिसट्रेट बनने के सफर तक ले आया. उनका जीवन बचपन से ही कड़ी चनौतियों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया.
कठिन बचपन और परिवार की जिम्मेदारी
यसीन का बचपन काफी संघर्षपूर्ण था। जब वह केवल तीन साल के थे, तो उनके पिता ने परिवार को छोड़ दिया। इस मुश्किल दौर में उनकी मां ने अपनी कड़ी मेहनत से यसीन और उनके छोटे भाई की परवरिश की। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी और वे एक टूटी-फूटी झुग्गी में रहते थे। हालांकि, राज्य सरकार की आवास योजना के तहत उन्हें एक छोटा सा घर मिला, फिर भी उनका जीवन हमेशा कठिनाइयों से भरा रहा।
यसीन का संघर्षपूर्ण सफर
यसीन के दिन बचपन में इस तरह गुजरते थे – वे सुबह चार बजे उठकर 10 किलोमीटर दूर अखबार बांटते थे, फिर 7 बजे से दूध का वितरण करते और उसके बाद स्कूल जाते। उनके लिए यह दिनचर्या बेहद कठिन थी, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। यसीन को याद है कि उनकी मां ने दो दुधारू गायें खरीदीं और पैदल कई किलोमीटर चलकर दूध बेचने का काम किया। यसीन ने भी बचपन से ही काम करना शुरू किया और मेहनत के साथ आगे बढ़ते गए।
विभिन्न छोटे-मोटे कामों से जीवन की राह में संघर्ष
यसीन ने जीवन यापन के लिए कई छोटे-मोटे काम किए जैसे – दूध बेचने वाले, पत्थर तोड़ने वाले मजदूर, अखबार वाले, पेंटर, केटरिंग स्टाफ, जोमैटो फूड डिलीवरी बॉय और कई अन्य छोटे कार्य। वे अपनी पुरानी किताबों से पढ़ाई करते और जो भी कपड़े या खाना मिलता, उसे इस्तेमाल कर लेते थे।
शिक्षा में संघर्ष और दृढ़ संकल्प
यसीन ने अपनी 12वीं कक्षा के बाद शोरानूर के एक पॉलिटेक्निक कॉलेज में इलेक्ट्रॉनिक्स डिप्लोमा कोर्स किया। जब उन्होंने राज्य विधि प्रवेश परीक्षा के बारे में सुना, तो उन्होंने एक साल गुजरात में काम करने के बाद इसे पास करने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने लोक प्रशासन में डिग्री कोर्स में दाखिला लिया।
लॉ कॉलेज में दाखिला और संघर्ष की नई शुरुआत
यसीन ने अपनी मेहनत से केरल के एर्नाकुलम के प्रतिष्ठित सरकारी लॉ कॉलेज में 46वीं रैंक के साथ दाखिला लिया। हालांकि, उनकी संघर्षों की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। कॉलेज खत्म होने के बाद वह देर रात तक फूड डिलीवरी ऐप्स के लिए डिलीवरी बॉय के रूप में काम करते थे, ताकि अपनी पढ़ाई का खर्च उठा सकें।
बचपन में उन्हें शिक्षा का महत्व नहीं आया समझ
यशीन के लिए असली चनौती उनकी शैक्षणिक विफलताओं को पार करना था. वह मानते हैं कि बचपन में उन्हें शिक्षा का महत्व समझ नहीं आया था. वह कहते हैं कि यह चमत्कारी बात थी कि एक औसत छात्र, जो गणित अंग्रेजी और हिंदी में बार-बार फेल होता था. 12वी में फेल होने के बाद पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर था. इसके बात भी वह लगातार मेहनत करके जज बन गया.