नकदी मामले में जांच के बीज जस्टिस यशवंत वर्मा ने ली इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज की शपथ, अभी नहीं करेंगे काम
इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के बाद जस्टिस वर्मा वरिष्ठता में छठे स्थान पर हैं. सार्वजनिक कार्यक्रम की बजाय जस्टिस वर्मा ने एक कमरे में शपथ ली. जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर का इलाहाबाद बार एसोसिएशन ने विरोध किया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट से आश्वासन मिलने के बाद एसोसिएशन ने अपनी हड़ताल रोक दी. आपको बता दें कि 14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के घर के बाहरी हिस्से में आग लग गई. इस दौरान उनके घर पर नकदी मिली.

अपने आवास पर भारी मात्रा में नकदी पाए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच का सामना कर रहे जस्टिस यशवंत वर्मा ने शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के रूप में शपथ ली. हालांकि, जस्टिस वर्मा को तब तक कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा जाएगा, जब तक उनके खिलाफ आंतरिक जांच जारी रहेगी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के बाद जस्टिस वर्मा वरिष्ठता में छठे स्थान पर हैं. सार्वजनिक कार्यक्रम की बजाय जस्टिस वर्मा ने एक कमरे में शपथ ली.
जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर पर इलाहाबाद बार एसोसिएशन द्वारा विरोध के बावजूद केंद्र ने 28 मार्च को दिल्ली से इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनके ट्रांसफर की अधिसूचना जारी कर दी. यह अधिसूचना सर्वोच्च अदालत कॉलेजियम की सिफारिश पर आधारित थी. बार एसोसिएशन ने कहा था कि वह भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे जजों को बर्दाश्त नहीं करेगा और अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी थी. हालांकि, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा संस्था को आश्वासन दिए जाने के बाद कि उनकी मांग पर विचार किया जाएगा, उन्होंने हड़ताल स्थगित कर दी.
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए इसे समय से पहले बताया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन सदस्यीय पैनल मामले की जांच कर रहा है और जांच पूरी होने के बाद एफआईआर दर्ज करने पर फैसला लिया जाएगा. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि 20 मार्च को घोटाला सामने आने के बाद कोई गिरफ्तारी या जब्ती नहीं की गई.
आपको बता दें कि 14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के घर के बाहरी हिस्से में आग लग गई. जस्टिस वर्मा उस समय शहर में नहीं थे. जब फायर डिपार्टमेंट विभाग और पुलिस मौके पर पहुंची तो उन्होंने स्टोर रूम में आंशिक रूप से जली हुई नकदी का ढेर पाया. इस घटना ने कानूनी हलकों में हलचल मचा दी, जिसके बाद सीजेआई ने घटना की विस्तृत जांच के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया. जस्टिस वर्मा ने आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया कि उन्हें प्रेस में बदनाम किया जा रहा है.