Karnataka: पत्नी को 25,000 रुपये भत्ता ना देने पर अड़ा व्यक्ति, अदालत ने पढ़ाया कुरान-हदीस का पाठ
कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस ने एक मुस्लिम व्यक्ति की सुनवाई के दौरान कुरान और हदीस की सीख का जिक्र किया.
एक मामले की सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा,”पवित्र कुरान और हदीस में कहा गया है कि अपने पत्नी और बच्चों की देखभाल करना पति का कर्तव्य है, खासकर जब वे विकलांग हों. ” एक मुस्लिम व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल न्यायाधीश पीठ ने ये बातें कहीं.
जस्टिस दीक्षित ने मुस्लिम व्यक्ति द्वारा दाखिल की गई उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने अपनी पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता देने के आदेश को चुनौती दी थी. दरअसल मुस्लिम व्यक्ति का नाम मोहम्मद अमजद पाशा है जिसे 16 दिसंबर, 2019 को बेंगलुरु के फैमिली कोर्ट ने उसकी पत्नी और बच्चों को 25,000 हजार रुपए मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था.
पाशा ने इसी आदेश के खिलाफ कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उसने कहा कि प्रतिमाह 25,000 रुपए देने के लिए उसके पास पर्याप्त साधन नहीं है. उसने कोर्ट से ये भी कहा कि ये धनराशि बहुत ज्यादा है. मोहम्मद अमजद की इस दलील पर जस्टिस दीक्षित ने कहा कि इन महंगे दिनों में जब रोटी खून से भी महंगी हो गई है तो इसे स्वीकार करना उचित नहीं है. कोर्ट ने अमजद की इस याचिका को खारिज कर दिया.
इसी दौरान जस्टिस दीक्षित ने ये भी कहा कि पवित्र कुरान और हदीस कहते हैं कि यह पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी और बच्चों की देखभाल करे, खासकर जब वे विकलांग हों. यह दिखाने के लिए कोई सामग्री प्रस्तुत नहीं की गई है कि प्रतिवादी-पत्नी लाभकारी रूप से कार्यरत है या उसके पास आय का कोई स्रोत है.