Karpoori Thakur: बिहार के वो जननायक जिनके शासन में पहली बार बिहार में हुई थी शराबबंदी, जानिए कर्पूरी ठाकुर से जुड़ी दिलस्प बातें
Karpoori Thakur 100th Birth Anniversary: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर एक ऐसे शख्स थे जिनका पूरा जीवन सादगी और सामाजिक न्याय के लिए समर्पित रहा. उनकी 100वीं जयंती से एक दिन पहले भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया है. तो चलिए इस मौके पर उनके बारे में कुछ रोचक बाते जानते हैं.
Karpoori Thakur 100th Birth Anniversary: बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर की आज 100वीं जयंती है. उनके जयंती से एक दिन पहले मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न देने की घोषना की है जो फिलहाल चर्चा का विषय बना हुआ है. सरकार के इस ऐलान के बाद बहुत से ऐसे लोग हैं जो उनके बारे में काफी कुछ जानना चाहता है तो चलिए आज हम आपको उनके बारे में कुछ अच्छी बातें बताते हैं.
कर्पूरी ठाकुर का व्यक्तिगत जीवन-
जननायक के नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर का जन्म ब्रिटिश शासन काल के दौरान 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था. उनके गांव को अब कर्पूरीग्राम के नाम से जाना जाता है. कर्पूरी जी के पिता का नाम गोकुल ठाकुर था और माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था. उनके पिता गांव के सीमान्त किसान थे साथ ही अपने पारंपरिक पेशा बाल काटने का काम भी करते थे. साल 1940 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी.
कर्पूरी ठाकुर के शासन काल में पहली बार बिहार में बंद हुआ था शराब-
बता दें कि, बिहार में पहली बार शराब बंद करने का ऐलान कर्पूरी ठाकुर ने ही किया था. उन्होंने साल 1977 में मुख्यमंत्री के रूप में बिहार में पूर्ण रूप से शराबबंदी लागू की थी. कहा जाता है कि, एक बार जब उनके घर बनवाने के लिए 50 हजार ईंटे भेजी गई थी लेकिन उन्होंने इन ईंटो से अपना घर बनवाने की बजाय स्कूल बनवा दिया. उनके बारे में ऐसे कई किस्से हैं जो उनकी छवि को एक जननायक के तौर पर स्थापित किया गया.
रिक्शे से सफर करते थे कर्पूरी ठाकुर
पूरा जीवन सादगी और समाज को समर्पित करने वाले कर्पूरी ठाकुर को बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है. बिहार के एक साधारण परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर अपनी अंतिम सांस तक सरल जीवनशैली और विनम्र स्वभाव के चलते आम लोगों से गहराई से जुड़े रहे. उन्हें 2 बार बिहार के मुख्यमंत्री और 1 बार उपमुख्यमंत्री बनने का मौका मिला था. हालांकि वे कभी भी अपने पद का घमंड नहीं किए वे हमेशा जमीन से जुड़े रहे. कहा जाता है कि, तीन दशक तक लगातार चुनाव जीतने के बाद भी वे रिक्शे से चला करते थे.