Khushwant Singh: कौन थे खुशवंत सिंह? जिन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में लौटा दिया था पद्म भूषण

Khushwant Singh: खुशवंत सिंह उम्र का शतक पूरा नहीं कर सके। उनका 99 बरसों का सफर सौ से ज्यादा किताबों में समाया हुआ है. इस दौरान उनका दिल्ली और विवादों से नाता कभी भी नहीं टूटा.

Manoj Aarya
Edited By: Manoj Aarya

Khushwant Singh Birth Anniversary: प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार खुशवंत सिंह देश के जाने-माने शख्सियत थे. उनका जन्म 2 फरवरी 1915 को पंजाब के हदाली (वर्तमान में पाकिस्तान में) में हुआ था. खुशवंत सिंह को ऐसे इंसान के रूप में जाना जाता है जिसने जिंदगी को हमेशा ही अपने ही शर्तों पर जी. जो भी किया पूरी शिद्दत से किया. उम्र इनके हौसले, उम्मीद और लक्ष्य हासिल करने की सक्रियता के आड़े कभी भी नहीं आई. इनके पिता सर शोभा सिंह की गवाही पर आजादी के नायक सरदार भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी.खुशवंत सिंह भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी रचनाएं जिंदा हैं. ट्रेन टू पाकिस्तान और द कंपनी ऑफ वूमन जैसी बेस्टसेलर किताब देने वाले सिंह ने 80 किताबें लिखीं. 

अपने कॉलम और किताबों में संता-बंता के चरित्र से लोगों को गुदगुदाया भी.उन्हें आज भी ऐसे शख्स के तौर पर पहचाना जाता है, जो लोगों को चेहरे पर मुस्कान ला दें. वो अपने अंतिम दिनों में कहा करते थे कि जिस्म बूढ़ा हो चुका है लेकिन आंखों में बदमाशी आज भी मौजूद है. हम आपको उनके जीवन की कुछ अनछुए पहलुओं से रूबरू कराएंगे.

तीन चीज़ों से प्यार करते थे खुशवंत सिंह 

खुशवंत सिंह तीन चीजों से प्यार करते थे. जिसमें उनका पहला प्यार दिल्ली था, वहीं दूसरा प्यार ‘लेखन’ और उनका तीसरा प्यार खूबसूरत महिलाएं थीं. वो खुद को दिल्ली का सबसे यारबाज और दिलफेंक बूढ़ा मानते थे. अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा. वह 99 साल की उम्र तक भी सुबह चार बजे उठ कर लिखना पंसद करते थे.

महिलाओं को समझते थे वासना के वस्तु

मशहूर लेखक खुशवंत सिंह अपनी किताब द लेसंस ऑफ लाइफ में उन्होंने दुख जताया था कि उन्होंने अपने शुरुआती जीवन में कई बुरे काम किए जैसे गोरैया, बत्तख और पहाड़ी कबूतरों को मारना. उन्होंने लिखा है कि मुझे इस बात का भी दुख है कि मैं हमेशा अय्याश व्यक्ति रहा. वो लिखते हैं कि मैंने कभी भी इन भारतीय सिद्धांतों में विश्वास नहीं किया कि मैं महिलाओं को अपनी मां, बहन या बेटी के रूप में सम्मान दूं. उनकी जो भी उम्र हो मेरे लिए वे वासना की वस्तु थीं और हैं. अगर वो जिंदा होते तो जीवन के 103 बसंत देख चुके होते.

बचपन से ही रहा राजनीति से नाता 

खुशवंत सिंह का बचपन से ही राजनीति से नाता था. उनके चाचा सरदार उज्जवल सिंह पंजाब और तमिलनाडु के राज्यपाल रहे थे. राजनीतिक पृष्ठभूमि की वजह से खुशवंत सिंह भी राजनीति के मैदान में उतरे. खुशवंत सिंह 1980 से 1986 तक राज्यसभा के सदस्य रहे. इस दौरान उन्होंने अपनी बात को हमेशा संसद में रखा. उन्हें 2007 में पद्म विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

सरकार को लौटाए पद्म भूषण

खुशवंत सिंह ने अपने करियर की शुरुआत में ही धर्म से दूरी बना ली थी. लेकिन उन्हें सिख धार्मिक संगीत, सबद और कीर्तन सुनने का बहुत शौक था. एक बार उन्होंने कहा था कि वो सिख धर्म के बाहरी प्रतीकों को इसलिए धारण करते हैं क्योंकि इससे उनमें उससे जुड़ा होने का भाव आता है.

सिख कट्टरता के सबसे ख़राब दौर में भी उन्होंने भिंडरावाले के ख़िलाफ़ खुल कर लिखा, लेकिन जब इंदिरा गाँधी ने स्वर्ण मंदिर में भारतीय सेना को भेजा तो उन्होंने विरोध - स्वरूप अपना पद्म -भूषण सरकार को लौटा दिया था.

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01 February 2024, 11:45 PM IST

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