New Parliament: 900 कारीगर.. लगातार 10 लाख घंटे की मेहनत, जानिए कैसे तैयार हुआ नई संसद में लगा शानदार कालीन?

New Parliament: नए संसद भवन के लोकसभा और राज्यसभा के कालीनों में राष्ट्रीय पक्षी मोर और राष्ट्रीय पुष्प कमल को दर्शाया गया है. इन सभी कालीन को 100 साल से ज्यादा पुरानी भारतीय कंपनी ‘ओबीटी कार्पेट’ ने तैयार किया है.

Manoj Aarya
Edited By: Manoj Aarya

New Parliament Building Inauguration: इस साल 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित नए संसद भवन का उद्घाटन किया. इस खास मौके पर नए संसद भवन से जुड़ी हर एक चीज चर्चा का विषय बनी हुई है. वहीं लोकसभा और राज्यसभा के फर्श की शोभा बढ़ाने वाले कालीन भी इसमें शामिल है.

नए संसद भवन के लोकसभा और राज्यसभा के कालीनों में राष्ट्रीय पक्षी मोर और राष्ट्रीय पुष्प कमल को दर्शाया गया है. इन सभी कालीन को 100 साल से ज्यादा पुरानी भारतीय कंपनी ‘ओबीटी कार्पेट’ ने तैयार किया है. कंपनी ने बताया कि संसद के नए भवन के लिए बुनकरों ने 150 से ज्यादा कालीन तैयार किए और फिर उनकी 35,000 वर्ग फुट क्षेत्र में फैले दोनों सदनों की वास्तुकला के अनुरूप अर्ध-वृत्त के आकार में सिलाई की गई.

ओबीटी कार्पेट के अध्यक्ष ने दी जानकारी

नए संसद भवन के लिए कालीन तैयार करने वाली कंपनीन ‘ओबीटी कार्पेट’ के अध्यक्ष रुद्र चटर्जी ने बताया कि, ‘‘बुनकरों को 17,500 वर्ग फुट में फैले सदन कक्षों के लिए कालीन तैयार करने थे. डिजाइन टीम के लिए यह बेहद चुनौतीपूर्ण था क्योंकि उन्हें कालीन को अलग-अलग टुकड़ों में सावधानी से तैयार करना था और उन्हें यह सुनिश्चित करते हुए एक साथ जोड़ना था कि बुनकरों की रचनात्मक महारत कालीन को जोड़ने के बाद भी कायम रहे और कालीन ज्यादा लोगों की आवाजाही के बावजूद खराब न हो.’’

10 लाख घंटे की मेहनत से तैयार हुआ कालीन

आपको बता दें कि राज्यसभा में के लिए  उपयोग किए गए कालीन का रंग मुख्य रूप से कोकम लाल रंग से प्रेरित हैं और लोकसभा में हरे रंग का इस्तेमाल किया गया है जो भारतीय मोर के पंखों से प्रेरित है. कारीगरों के सामने आए चुनौतियों का जिक्र करते हुए रूद्र चटर्जी ने कहा कि कालीन बनाने के लिए प्रति वर्ग इंच पर 120 गांठों को बुना गया, यानी कुल 60 करोड़ से ज्यादा गांठें बुनी गईं. नए संसद भवन के ऊपरी और निचले सदनों के कालीन तैयार करने के लिए उत्तर प्रदेश के भदोही और मिर्जापुर जिलों के रहने वाले बुनकरों ने कुल 10 लाख घंटे तक मेहनत की.

ओबीटी कार्पेट कंपनी के अध्यक्ष ने आगे कहा कि, ‘‘हमने कोरोना महामारी के बीच 2020 में काम शुरू कर दिया था. सितंबर 2021 में शुरू हुई बुनाई की प्रक्रिया जो कि मई 2022 तक समाप्त हो गई थी और नवंबर 2022 में इसे बिछाए जाने का काम शुरू हुआ. इस काम को पूरा करने में सात महीने का समय लगा.’’

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18 September 2023, 09:26 PM IST

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