जानिए कौन थी शाह बानो जिसके चलते 1985 में चर्चा में आया था UCC

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा

calender

केंद्र सरकार (Central Government) ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को बढ़ाने के लिए एक और कदम आगे बढ़ाया है. इसके बाद से ही इस मुद्दे यानी UCC को लेकर पुरे भारत में लगातार बहस चल रहीं है, समान नागरिक संहिता का कोई विरोध कर रहा है तो कोई समर्थन करता दिख रहा हैं. कायश लगये जा रहे हैं कि मानसून सत्र में सरकार इस पर कोई बड़ा फैसला ले सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल में हुई जनसभा में UCC का जिक्र किया था. इसके बाद से ही एक बार फिर से ये चर्चाओं में आ गया है. अब संसद की कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय समिति ने 3 जुलाई को इस पर परामर्श के लिए बैठक बुलाई है. ये पहला मौका नहीं है जब यूसीसी को लेकर देश भर में बहस हो, समान नागरिक संहिता को लेकर कई दफा चर्चा हो चुकी है, हालांकि सबसे पहले इसका जिक्र 38 साल पहले शाहबानो केस के दौरान हुआ था. तब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ ने समान नागरिक संहिता लागू न होने पर अफसोस भी जताया था.

क्या है समान नागरिक संहिता ?

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा. यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है.

क्या था शाहबानो केस?

मध्यप्रदेश के इंदौर शहर की रहने वाली शाहबानो का निकाह इंदौर के मोहम्मद अहमद खान से हुआ था जो उस समय के जाने माने वकील थे। दोनों के 5 बच्चे भी हुए. फिर कुछ दिन बाद खान ने दूसरा निकाह कर लिया. जिसके बाद घर में ताना-तानी का माहौल हो गया. जिसके चलते अहमद खान ने शाहबानो को घर से निकाल दिया. शुरुआत में अहमद खान अपनी पहली बेगम को गुजरे के लिए कुछ पैसे दिया करता था. बाद में शाहबानो ने नियमित गुजारे भत्ते के लिए केस दायर कर दिया.

इसके बाद अहमद ने शाहबानो को तलाक दे दिया और मेहर की रकम देकर गुजारा भत्ता देने से मना कर दिया. बाद में शाहबानो ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में बानो के पक्ष में निर्णय दिया, लेकिन रकम महज 20 रुपये तय की. बाद में यह मामला मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जा पहुंचा जिसके जहां गुजारे की रकम 179 रुपये तय की गई. इसके बाद अहमद खान ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. मामला संविधान पीठ तक पहुंचा, जिसकी अगुवाई तत्कालीन सीजेआई वाई वी चंद्रचूड़ कर रहे थे उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले पर मोहर लगाते हुए समान नागरिक संहिता का जिक्र किया था. First Updated : Saturday, 01 July 2023