Knowledge : ब्रिटेन की महरानी ने आज ही रखी थी भारत की गुलामी की नींव, तब मुगलिया सल्तनत हुई थी खत्म

साल 1600 में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के पंजीकरण का शाही फरमान जारी किया था. आज ही तय हो गया था कि यह कंपनी पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया और भारत के साथ व्यापार करेगी.

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साल 2023 का आज आखिरी दिन है. भारत समेत पूरी दुनिया नए साल के स्वागत के लिए तैयार है. इसके लिए कई तरह की तैयारियां की जा रही हैं. भारत के इतिहास में 31 दिसंबर का दिन बहुत महत्वपूर्ण है. आज के दिन ही भारत को लेकर अंग्रेजों की गुलामी की बुनियाद पड़ी थी. साल 1600 में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के पंजीकरण का शाही फरमान जारी किया था.

आज ही तय हो गया था कि यह कंपनी पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया और भारत के साथ व्यापार करेगी. 16वीं सदी में पूरी दुनिया का एक चौथाई माल भारत में बनता था और ब्रिटेन में दुनिया के कुल उत्पादन का सिर्फ 3 फीसदी माल बनता था. व्यापार करने के लिए अंग्रेज जब भारत में आए तो उन्होंने यहां के मुगल शासकों और उनकी ताकत को देखकर चतुराई दिखाते हुए मुगलों से व्यापार करने की इजाजत मांगना सही समझा. हालांकि औरंगजेब की मौत के बाद अंग्रेजों को फूट डालने का मौका मिल गया. इसके बाद तो पूरे भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चला गया.

भारत का वैभव बना मुसीबत 

क्या आपने कभी सोचा है कि किसी देश का वैभव ही उसके लिए मुसीबत बन सकता है? भारत के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था. अपनी समृद्धि के कारण भारत अंग्रेजों के आकर्षण का केंद्र बना. फिर हालात ऐसे बने कि अंग्रेजों का गुलाम बनना पड़ा. मुगल बादशाह अकबर के जमाने में अंग्रेजों के पास वास्तव में करने-खाने के लिए कुछ नहीं था. भारत को तब सोने की चिड़िया कहा जाता था. भारत के वैभव को के बारे में सुनकर अंग्रेजों ने 31 दिसंबर 1600 को ईस्ट इंडिया कंपनी बनाई, जिसे हम ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से भी जानते हैं. ब्रिटेन की तब की महारानी एलिजाबेथ प्रथम से पूर्वी एशिया में बिजनेस करने का अधिकार लेकर यह कंपनी निकली तो इतिहास रच दिया.

प्रतीकात्मक फोटो.

 

ब्रिटेन में गृह युद्ध चल रहा था 

16वीं सदी में दिल्ली के बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर दुनिया के सबसे अमीर बादशाहों में से एक थे. तब केवल चीन का मिंग राजवंश ही अकबर की बराबरी करने में सक्षम था. पूरी दुनिया का एक चौथाई माल तब भारत में ही बनता था. तब ब्रिटेन में गृह युद्ध चल रहा था और उसकी अर्थव्यवस्था भी खेती पर आश्रित थी. वहां दुनिया के कुल उत्पादन का केलव 3 फीसदी माल बनता था. पुर्तगाल और स्पेन जैसे देश ब्रिटेन को पीछे छोड़कर व्यापार में आगे निकल गए थे.

1608 में सूरत पहुंचा अंग्रेजों का जहाज

ब्रिटेन में व्यापार की खराब हालत देख घुमंतू अंग्रेज सर जेम्स लैंस्टर के साथ ब्रिटेन के 200 से भी ज्यादा व्यापारियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के बैनर तले भारत का रुख किया. अगस्त 1608 में अंग्रेजों का एक जहाज भारत पहुंचा, जिसका नाम था हेक्टर. इसकी अगुवाई कर रहा था अंग्रेज कैप्टन विलियम हॉकिंस. इसने सूरत के बंदरगाह पर लंगर डाल दिया. तब तक अकबर की मौत हो चुकी थी और जहांगीर बादशाह बन चुका था. हालांकि, तब किसको अंदाजा था कि छोटी सी एक कंपनी दुनिया के सबसे रईस देशों में से एक और अपने देश से 20 गुना बड़े देश पर राज करेगी.

जहांगीर को मनाने में तीन साल लगे

हॉकिंस को भारत पहुंचते ही अहसास हो गया था कि यहां युद्ध से कोई बात नहीं बनने वाली है, क्योंकि मुगलों की सेना में तब 40 लाख लोग थे. इसलिए व्यापार के लिए जहांगीर की इजाजत और सहायता मांगने के लिए सूरत से चलकर साल भर में मुगलों की राजधानी आगरा पहुंचा. अपनी लाख कोशिशों के बावजूद हॉकिंस जहांगीर को मना नहीं पाया तो ब्रिटेन से सांसद सर थॉमस रो को शाही दूत बनाकर जहांगीर के पास भेजा गया, जो 1615 में पहुंचा. लगातार तीन साल की कोशिशों के बाद थॉमस रो को कामयाबी मिल गई. जहांगीर ने कंपनी के साथ एक समझौता कर लिया, जिसके अनुसार ब्रिटेन के व्यापारियों को भारत के हर बंदरगाह के इस्तेमाल और खरीद-बिक्री की अनुमति मिल गई. बदले में उन्होंने भारत को ब्रिटेन में बने सामान देने का वादा किया पर जब वहां कुछ बनता ही नहीं था तो देते क्या?

1670 में मिली उपनिवेश बनाने की इजाजत

ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंदरगाहों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, जिसके दम पर भारत से खूब माल कमाने लगी. यहां के सामान दूसरे देशों में बेचती और भारी मुनाफा कमाती. यह सिलसिला लंबा चला. फिर 1670 में ब्रिटेन के सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने कंपनी को युद्ध लड़ने और अपना उपनिवेश बनाने की इजाजत दे दी. फिर क्या था अंग्रेजों ने पहले से ही भारत में आधिपत्य जमाने की कोशिश कर रहे फ्रांसीसियों, पुर्तगालियों और डच लोगों को हराकर बंगाल के तटों को अपने कब्जे में ले लिया.

अंग्रेजों ने छेड़ा युद्ध, सम्राट को मांगनी पड़ी माफी

अंग्रेजों का मनोबल बढ़ता ही जा रहा था. इसी बीच 1681 में कंपनी के निदेशक सर चाइल्ड से कर्मचारियों ने शिकायत कर दी कि तत्कालीन बादशाह औरंगजेब आलमगीर के भांजे नवाब शाइस्ता खान के अधिकारी टैक्स के लिए उन्हें परेशान करते हैं. इसकी गुहार सर चाइल्ड ने ब्रिटेन में अपने सम्राट से लगाई तो वहां से 19 लड़ाकू जहाज, 100 तोपें और 600 नौसैनिक बंगाल रवाना कर दिए गए. यहां मुगल सेना भी तैयार थी और अंग्रेजों को बड़ी आसानी से कुचल दिया. कंपनी के पांच कारखाने बर्बाद कर दिए और बंगाल से अंग्रेजों को खदेड़ दिया. सूरत और बंबई में भी उनका यही हाल हुआ. इस पर ब्रिटिश सम्राट ने खुद मुगल बादशाह से गिड़गिड़ाकर आधिकारिक रूप से माफी मांगी, जो उसे 1690 में मिल भी गई.

हाथ से निकल गए कलकत्ता के किले

औरंगजेब की 1707 ईस्वी में मौत के बाद देश के कई इलाकों में लोग एक-दूसरे का विरोध करने लगे और अंग्रेजों को फूट डालने का मौका मिल गया. अंग्रेज अपनी सेना में स्थानीय लोगों को भर्ती करने लगे. इसमें मुगल, मराठा, सिख और स्थानीय नवाबों को हार का सामना करना पड़ा. साल 1756 में भारत के सबसे धनी राज्य बंगाल की गद्दी पर नवाब सिराजुद्दौला बैठा था. बंगाल की उत्पादन क्षमता को देखते हुए कंपनी इसी बीच अपने किलों का विस्तार करने लगी और सैनिक भी बढ़ाने लगी. नवाब ने इससे मना कर दिया तब भी कंपनी नहीं मानी तो नवाब ने कलकत्ता पर हमला कर दिया. अंग्रेजों को कैदी बना लिया. किलों पर कब्जा कर लिया.

मीर जाफ़र ने दिया दगा तो अंग्रेज पूरे देश पर काबिज हो गए

अब अंग्रेजों ने नई चाल चलकर नवाब के सेनापति मीर जाफर को अपनी ओर मिला लिया. इसके बाद बंगाल के प्लासी में नवाब और कंपनी के बीच 23 जून 1757 को हुए युद्ध में मीर जाफर के दगा देने की वजह से अंग्रेजों की जीत हुई. उन्होंने मीर जाफर को बंगाल की गद्दी पर बैठा दिया और मनमानी करने लगे. अंग्रेज मीर जाफर से टैक्स लेने लगे. खजाना खाली होने पर मीर जाफर को भूल का अहसास हुआ तो डच सेना की मदद से अंग्रेजों को भगाने की कोशिश की. हालांकि, इस कोशिश में 1759 और 1764 में अंग्रेज जीत गए और बंगाल पर शासन करने लगे. ताकत बढ़ने पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने अगस्त 1765 में मुगल बादशाह शाह आलम को हरा दिया. तब लॉर्ड क्लाइव ने उड़ीसा, बंगाल और बिहार में राजस्व वसूलने के साथ ही वहां की जनता को नियंत्रण में करने का हक ले लिया. इसके बाद तो पूरे भारत का शासन कंपनी के हाथों में चला गया. First Updated : Sunday, 31 December 2023

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