नॉलेज : ईसाइयों का गीत भारत में कैसे बना बीटिंग रिट्रीट का हिस्सा? बाद में यह विवादों में क्यों पड़ गया
Beating Retreat: अबाइड विद मी यह गीत, महात्मा गांधी के साथ ही ब्रिटेन के मोनार्क जॉर्ज पंचम को खूब पसंद था. इस गीत को ईसाइयों का प्रार्थना गीत भी कहा जाता है. दशकों तक यह बीटिंग रीट्रीट का प्रतीक रहा है. इसी गीत को लेकर साल 2020 में एक खबर आई, जिसके बाद विवाद शुरू हो गया. फिर साल 2022 में इसको लेकर कंट्रोवर्सी हुई.
Beating Retreat: दिल्ली के ऐतिहासिक विजय चौक आज 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट समारोह के दौरान 31 भारतीय धुनों का गवाह बनेगा. 75 वें गणतंत्र दिवस समारोह के समापन के अवसर पर यह समारोह आयोजित किया जाएगा. देश बीटिंग रिट्रीट की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी. दोपहर 2.30 से रात में 9.30 बजे तक विजय चौक के आसपास की सड़कों पर वाहनों की आवाजाही पर रोक रहेगी. बीटिग द रिट्रीट में एक समय ईसाइयों के प्रार्थना गीत की धुन बजाई जाती थी. अबाइड विद मी यह गीत, महात्मा गांधी के साथ ही ब्रिटेन के मोनार्क जॉर्ज पंचम को खूब पसंद था. इस गीत को ईसाइयों का प्रार्थना गीत भी कहा जाता है. दशकों तक यह बीटिंग रीट्रीट का प्रतीक रहा है. इसी गीत को लेकर साल 2020 में एक खबर आई, जिसके बाद विवाद शुरू हो गया. फिर साल 2022 में इसको लेकर कंट्रोवर्सी हुई. आइए जान लेते हैं कि आखिर यह पूरा मामला क्या था.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सबसे पसंदीदा धुन और भजन तो हम सबको पता है. यह है-रघुपति राघव राजाराम…हालांकि, उन्हें एक और गीत काफी पसंद था, जो दुनिया भर में प्रसिद्ध है. दूसरी भाषा का यह गीत है अबाइड विद मी, जो केवल बापू को ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन के मोनार्क जॉर्ज पंचम को भी काफी पसंद था. इस गीत को ईसाइयों का प्रार्थना गीत भी कहा जाता है. पांच पैरा के गीत का पहला पैरा इस प्रकार...
Abide with me!
fast falls the eventide;
The darkness deepens;
इसी गीत को लेकर साल 2020 में एक खबर आई, जिससे विवाद शुरू हो गया. आइए जान लेते हैं कि आखिर पूरा मामला क्या था.
बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी क्या होती
सेना में एक परंपरा रही है, कि जब युद्ध चलता हो और शाम हो जाती है तो एक खास धुन बजाई जाती है, जिससे सैनिक अपने-अपने हथियार रखकर युद्ध के मैदान से हट जाते हैं. इस पूरी प्रक्रिया को बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी कहा जाता है. यह परंपरा भारत में अंग्रेजों ने डाली थी जो आज भी बरकरार है. फिलहाल यह परंपरा भारत में गणतंत्र दिवस समारोहों का आखिरी हिस्सा है. इसमें भारत की तीनों सेनाएं हिस्सा लेती हैं और पारंपरिक धुन बजाते बैंड के साथ मार्च पास्ट करती हैं. इसी के जरिए एक तरह से यह संदेश दिया जाता है कि गणतंत्र दिवस समारोह अब समाप्त हो गया है. साथ ही सेनाओं को बैरक में वापस भेजने का भी यह आधिकारिक मैसेज होता है.
29 जनवरी को होती है बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी
गणतंत्र दिवस समारोह के समापन पर हर साल 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी दिल्ली में होती है. शाम को यह सेरेमनी विजय चौक पर आयोजित होती है. इसमें अबाइड विद मी गीत की धुन पहले बजाई जाती थी. साल 2020 में ऐसी रिपोर्ट आई कि केंद्र सरकार इस गीत को बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी से हटाने जा रही है. इसकी जगह पर वंदेमातरम बजाने की जानकारी बात कही गई थी. बस, इसी पर विवाद शुरू हुआ था.
2022 में सेरेमनी से हट गया गीत
कांग्रेस पार्टी का कहना था कि सरकार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विरासत को मिटाने का प्रयास कर रही है. विवाद बढ़ने पर 2020 में इस गीत को सेरेमनी से नहीं हटाया गया, बल्कि 2021 में भी यह गीत बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का हिस्सा बना रहा. 2022 से इस गीत को सेरेमनी से हटा दिया गया. इसके स्थान पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में दूसरे गीतों को जगह दी गई है, जो अब 29 जनवरी को मार्चपास्ट के दौरान बजाए जाते हैं.
किसने लिखा था, 'अबाइड विद मी'
अबाइड विद मी वास्तव में ईसाइयों का प्रार्थना या भजन है. इसे स्कॉटलैंड के हेनरी फ्रांसिस ने लिखा था. हेनरी का जन्म 1 जून 1793 को हुआ था. वह बड़े होकर कवि के साथ चर्च के ऐसे वर्ग के पादरी बने, जिन्हें एंगलिकन डिवाइन कहते हैं. वैसे तो हेनरी ने अपनी पहली कविता 1826 ईस्वी में लिमिंग्टन शहर में लिखी थी. लेकिन 1847 में लिखा उनका यह भजन सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ.
अंग्रेजों ने गीत को दिया बढ़ावा
इस गीत का क्रेज अपने जमाने में इतना अधिक बढ़ा कि देखते ही देखते जॉर्ज पंचम तक इसकी धुन पहुंची और उनकी पसंदीदा धुन बन गई. यही नहीं, फील्ड मार्शल हर्बर्ट किचनेर को तो यह मुंहजबानी याद हो गया. पहले विश्व युद्ध के दौरान हर ओर की सेनाओं के सैनिकों की सेवा करने वाली प्रसिद्ध नर्स एडिथ कावेल को भी यह भजन याद था और वह इसे गुनगुनाती रहती थीं.
महात्मा गांधी भजन से हुए प्रभावित
महात्मा गांधी ने जब यह भजन सुना तो उनको यह काफी पसंद आया. अंग्रेज अपने देश में तो इस गीत का हर अवसर पर इस्तेमाल करते ही थे, जहां-जहां उनके उपनिवेश थे, उन देशों में भी इसकी परंपरा पड़ती चली गई. तब रग्बी का लीग हो या फुटबॉल का मैच, सब में यह भजन बजाया जाता था. साल 1950 में संविधान लागू होने के बाद गणतंत्र दिवस समारोह शुरू हुआ तो उसमें भी यह बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का हिस्सा बन गया था.