नॉलेज : रूस में इस क्रांतिकारी नेता की आज भी संरक्षित है ममी, हर साल इस पर लगाया जाता है खास लेप
दुनिया में आज भी एक ऐसा देश है, जहां ममी का चलन न होते हुए भी यहां ममी संरक्षित है और हर साल इस पर लेप लगाया जाता है. इसे संरक्षित करने पर वह देश हर साल भारी-भरकम रकम खर्च करता है.
ममी का जिक्र होते ही हमारे दिमाग में संरक्षित शव की तस्वीर बन जाती है. सबसे पहले हमारे जेहन में मिस्र का नाम आता है, क्योंकि यहां आज भी ममी का चलन है. लेकिन दुनिया में आज भी एक ऐसा देश है, जहां ममी का चलन न होते हुए भी यहां ममी संरक्षित है और हर साल इस पर लेप लगाया जाता है. इसे संरक्षित करने पर वह देश हर साल भारी-भरकम रकम खर्च करता है. उस देश का नाम है रूस और जिनकी ममी रखी है, वह थे रूसी क्रांति के जनक व्लादिमीर लेनिन. 21 जनवरी 1924 को सुबह 6:50 बजे लेनिन की मौत हुई थी. मतलब कि 100 साल से उनकी ममी यहां संरक्षित है. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि परंपरा न होने के बावजूद दफनाने के बजाय लेनिन की ममी क्यों संरक्षित की गई है. आज 21 जनवरी को लेनिन की पुण्यतिथि पर इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करेंगे.
लेनिन के चलते हुआ था सोवियत संघ का गठन
22 अप्रैल 1870 को व्लादिमीर इलिच उल्यानोव उर्फ व्लादिमीर लेनिन का जन्म हुआ था. उन्होंने रूस में 1917 में हुई क्रांति की अगुआई की. इसे बोल्शेविक क्रांति के नाम से जाना जाता है. इसके साथ ही तत्कालीन जार के शासन से रूस आजाद हुआ. लेनिन के ही नेतृत्व में वर्ष 1922 में सोवियत संघ का गठन भी किया गया.
जानलेवा हमले में बचे लेनिन, सेहत बिगड़ती गई
साल 1918 में लेनिन पर जानलेवा हमला किया गया, जिसमें वह बाल-बाल बच गए. हालांकि, तब वह गंभीर रूप से घायल हो गए. इसका असर उनकी सेहत पर पड़ा. उनकी सेहत लगातार बिगड़ती चली गई. 1922 में सोवियत संघ के गठन के साल ही उन्हें जबरदस्त स्ट्रोक का सामना करना पड़ा. इसके बाद उनकी सेहत में सुधार नहीं हो पाया. रूस के गोर्की शहर में अपनी पत्नी के साथ एकांत में रह रहे लेनिन के आधे शरीर ने लकवे के चलते काम करना बंद कर दिया. तब लेनिन आसानी से बोल भी नहीं पाते थे. इसी हालत में 21 जनवरी 1924 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
दो महीने तक श्रद्धांजलि देने वालों की लगी रही कतार
मौत के दो दिन बाद उनका शव खास ट्रेन से गोर्की से मॉस्को लाया गया. वहां के रेड स्क्वायर पर लकड़ी का एक अस्थायी ढांचा बनाकर ताबूत में शव को लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया. लेनिन की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रूस की भीषण सर्दी में भी लेनिन को श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया.
लाखों लोग ठिठुरते हुए लेनिन को अंतिम विदाई देने के लिए उमड़ पड़े. हालात ये हो गए कि लेनिन को श्रद्धांजलि देने वालों की लाइन दो महीने लगी रही. ऐसे हालात को देखते हुए सोवियत संघ के तत्कालीन नेताओं ने फैसला किया कि कुछ समय के लिए लेनिन के पार्थिव शरीर को संरक्षित कर दिया जाए, जिससे लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकें.
1923 में हुई थी गोपनीय बैठक
कहा ऐसा भी जाता है कि लेनिन की मौत से पहले ही तय कर लिया गया था कि उनके शव को संरक्षित किया जाएगा. दरअसल, 1923 में सोवियत संघ में एक बैठक हुई थी, जिसे काफी गोपनीय रखा गया था. इसी बैठक में तय होना था कि अगर लेनिन की मौत होती है तो उनके शव का क्या किया जाएगा. सोवियत संघ की सत्ता तब जोजेफ स्टालिन के पास थी. उन्होंने प्रस्ताव रखा कि लेनिन का शव संरक्षित किया जाए, जिससे आने वाली पीढ़ियों को उनके बारे में जानकारी मिल सके.
कुछ समय के लिए किया गया था संरक्षित
हालांकि लेनिन इतने लोकप्रिय थे कि उनकी मौत के बाद शव को कुछ समय के लिए संरक्षित करने का फैसला लेना ही पड़ा. वैसे तब लेनिन की पत्नी नेज्दका क्रुप्सकाया इस फैसले के खिलाफ थीं और वह चाहती थीं कि शव को दफन कर दिया जाए. स्टालिन ने उनकी बात अनसुनी कर दी और शव को संरक्षित करवा दिया. शुरुआत में तो यह कुछ समय के लिए ही संरक्षित किया गया था. इसका जिम्मा रूस के दो शरीर संरचना विशेषज्ञों व्लादीमीर वोरोबीव और बॉयोकेमिस्ट बोरिस जबरस्की को दिया गया था.
साल में लगता है एक बार लेप
इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स के इन दोनों वैज्ञानिकों ने मिलकर मार्च 1924 में लेनिन के पार्थिव शरीर पर एक लेप लगाया. इससे उस साल जुलाई तक शव संरक्षित रहा और स्टालिन का शासन चलता रहा. फिर नए-नए तरीकों की खोज कर शव को बचाया जाता रहा और स्टालिन के पूरे शासन में वह वैसे ही संरक्षित रहा. इसके बाद किसी ने भी दफनाने के बारे में नहीं सोचा और अब हर साल लेनिन के शरीर पर एक बार लेप लगाया जाता है. इसकी पूरी प्रक्रिया 15 से 30 दिनों तक चलती है. इससे शव साल भर सुरक्षित रहता है. साथ ही लेनिन के शरीर के लिए बेहद बारीक रबर का एक सूट भी बनाया गया है.
म्यूजियम में लोग करते हैं लेनिन के दर्शन
अब तो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स के वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है कि लेनिन के शरीर की त्वचा की रंगत निखर आई है. हर साल भारी भरकम रकम खर्च कर रूस अपने इस महान नेता के पार्थिव शरीर को संरक्षित किए हुए है. मॉस्को के उसी रेड स्क्वायर पर लेनिन म्यूजियम में शव रखा गया है, जहां पहली बार लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था. यहां शव की देखरेख का जिम्मा मॉस्को के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स के पांच-छह वैज्ञानिकों के एक समूह के पास है.