अगले साल 2024 में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं, जिसको लेकर देश में सियासी दलों ने तैयारी शुरू कर दी है. 2019 के चुनाव में मोदी लहर में बड़े-बड़े चेहरों को हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में राहुल गांधी, एक पूर्व प्रधानमंत्री समेत 12 पूर्व मुख्यमंत्री चुनाव हार गए थे, जिसमें अकेले 8 पूर्व सीएम कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार थे. लेकिन 2019 के चुनाव के पहले भी एक आम चुनाव हुआ था जिसमें बड़े-बड़े सुरमाओं को हार का सामना करना पड़ा था. करीब 40 साल पहले हुए लोकसभा चुनाव में भविष्य के 3 प्रधानमंत्रियों समेत कई दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा था.
हम बात कर रहे हैं 1984 के लोकसभा चुनाव की. यह चुनाव तत्कालीन प्रधानमंत्री की नृशंस हत्या के करीब 2 महीने बाद कराए गए थे. यह चुनाव 28 दिसंबर को खत्म हुए थे. तब देश में तीन चरणों 24, 27 और 28 दिसंबर को चुनाव संपन्न हुए थे. तब 515 लोकसभा सीटों के लिए वोटिंग कराई गई थी. जबकि हिंसा से ग्रस्त दोनों राज्यों पंजाब (जुलाई 1985) और असम (दिसंबर 1985) में शेष 27 सीटों के लिए बाद में वोटिंग कराई गई.
इस चुनाव में कांग्रेस को 543 सीटों में से कुल 414 सीटें मिली थीं. 13 नवंबर 1984 को चुनाव की तारीखों का ऐलान किया गया था. चुनाव में 46 रजिस्टर्ड पार्टियों ने अपने उम्मीदवार उतारे थे जिसमें 7 राष्ट्रीय दल शामिल थे. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कराए गए चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सहानुभूति का जबर्दस्त फायदा मिला और भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह सबसे बड़ी जीत के रूप में दर्ज हुई. कांग्रेस को पहली बार 50 फीसदी से अधिक वोट मिले और 543 सीटों में से 414 सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया.
कांग्रेस की इस रिकॉर्ड तोड़ जीत का असर यह हुआ कि चुनाव में कई विपक्षी धुंरधरों को हार का सामना करना पड़ा. हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस को सहानुभूति की लहर के बीच उनके एक धुरंधर नेता को भी हार मिली जो भविष्य में चलकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए. इस तरह से देखा जाए तो 1984 का यह लोकसभा चुनाव भविष्य के 3 प्रधानमंत्रियों के लिए बेहद निराशाजनक चुनाव साबित हुआ था क्योंकि इन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
इन तीन नेताओं में से 2 दिग्गज नेता विपक्षी दलों के थे और ये थे चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी. जबकि कांग्रेस की ओर से हार का सामना करने वाले भविष्य के पीएम पीवी नरसिम्हा राव थे. मजे की बात यह है कि 84 में हार के महज 12 सालों के अंदर एक के बाद एक करके लगातार देश के प्रधानमंत्री बने.
केंद्र में यह भारतीय जनता पार्टी के लिए यह पहला लोकसभा का चुनाव था और इस चुनाव में उसने 224 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिसमें सिर्फ 2 उम्मीदवारों को ही जीत मिली थी. यह जीत अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज या फिर मुरली मनोहर जोशी जैसे बड़े नामों को नहीं मिली थी. वाजपेयी और चंद्रशेखर के अलावा चौधरी देवीलाल, मुरली मनोहर जोशी, रामविलास पासवान और शरद यादव जैसे बड़े चेहरे चुनाव हार गए थे. वाजपेयी ने मध्य प्रदेश की ग्वालियर सीट से चुनाव लड़ा था और उन्हें कांग्रेस के माधवराव सिंधिया ने पौने दो लाख से भी अधिक मतों के अंतर से हराया था.
चंद्रशेखर इस चुनाव में अपनी परंपरागत सीट बलिया से मैदान में उतरे थे, वो चुनाव हार गए थे. कांग्रेस के जगन्नाथ चौधरी ने चंद्रशेखर को आसान मुकाबले में 53,940 मतों के अंतर से चुनाव हरा दिया. चंद्रशेखर जनता पार्टी के टिकट से चुनाव लड़े थे. इसी तरह बीजेपी के दिग्गज नेता और पूर्व अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी भी 1984 के चुनाव में हारे थे. वह तब अविभाजित उत्तर प्रदेश की अल्मोड़ा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के हरीश चंद्र सिंह से चुनाव हार गए. उन्हें हरीश चंद्र सिंह ने 1,40,332 मतों से हराया था.
विपक्षी दलों के दो बड़े नेताओं के अलावा कांग्रेस के दिग्गज नेता और इंदिरा गांधी सरकार में देश के गृह मंत्री रहे पीवी नरसिम्हा राव को भी हार का सामना करना पड़ा था. राव को चुनाव में बीजेपी के कम चर्चित नेता ने हराया था. बीजेपी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही थी और उसके प्रत्याशी सी जंगा रेड्डी ने राव को 54,198 मतों के अंतर से हराया था. रेड्डी को चुनाव में 2,63,762 वोट मिले तो राव के खाते में 2,09,564 वोट मिले. First Updated : Friday, 29 December 2023