नॉलेज : फरवरी का महीना सबसे छोटा 28 और 29 दिन का क्यों होता है? क्या है इसके पीछे की वजह
महीने में दिनों की संख्या कम या ज्यादा होने के पीछे खगोलीय घटनाएं जिम्मेदार हैं. पृथ्वी को सूर्य का चक्कर लगाने में 365 दिन और 6 घंटे लगते हैं. इसलिए हर 4 साल में फरवरी के महीने में एक दिन अधिक जोड़कर इसका संतुलन बनाया जाता है.
साल 2024 का दूसरा महीना फरवरी शुरू हो चुका है. इसके चार दिन बीत भी तुके हैं. फरवरी 28 या फिर 29 दिन का महीना होता है. हालांकि इस साल फरवरी 29 दिन की है. आपके मन में कई बार यह सवाल आता होगा कि 11 महीने तो 30 या फिर 31 दिन के होते हैं, लेकिन फरवरी का महीना 28 या फिर 29 दिन का क्यों होता है.
इसकी कहानी जूलियन कैलेंडर से सफर करती हुई गैगोरियन कैलेंडर तक जाती है. इन दोनों के बीच कई महीनों को जोड़ा गया है. इसके हिसाब से दिनों को भी घटाया और बढ़ाया गया है. फरवरी महीना 28 या फिर 29 दिनों का क्यों होता है आज हम आपको इसी सवाल का जवाब देने जा रहे हैं.
फरवरी में क्यों होते हैं 28 दिन?
महीने में दिनों की संख्या कम या ज्यादा होने के पीछे खगोलीय घटनाएं जिम्मेदार हैं. पृथ्वी को सूर्य का चक्कर लगाने में 365 दिन और 6 घंटे लगते हैं. इसलिए हर 4 साल में फरवरी के महीने में एक दिन अधिक जोड़कर इसका संतुलन बनाया जाता है. इस साल को लीप ईयर कहते हैं. यह पृथ्वी के सूर्य के चक्कर लगाने पर निर्भर करता है और बाकी महीनों में 30 या 31 दिन होने के बाद फरवरी में एडजस्ट करने के लिए सिर्फ 28 दिन और कुछ घंटे ही बचते हैं इसलिए फरवरी में इसे एडजस्ट कर दिया गया है. इसी कारण फरवरी में 28 दिन होते हैं और चार साल बाद 29 दिन हो जाते हैं.
फरवरी में ही क्यों एडजस्ट होते हैं दिन
अब सवाल यह भी उठता है कि फरवरी में ही ये 28 दिन क्यों एडजस्ट होते हैं. इन दिनों को दिसबंर जनवरी, या फिर मार्च अप्रैल में क्यों नहीं एडजस्ट किया जाता. फरवरी में दिन एडजस्ट होने के पीछे भी कारण है. इसकी वजह है कि पहले एक साल में सिर्फ 10 ही महीने होते थे और साल की शुरुआत मार्च से होती थी. वहीं, अभी की तरह साल का आखिरी महीना दिसंबर ही था और दिसंबर के बाद मार्च आता था. हालांकि, बाद में जनवरी और फरवरी महीने जोड़े गए. 153 बीसी में जनवरी की शुरुआत हुई थी, लेकिन इससे पहले 1 मार्च साल का पहला दिन होता था.
इसके पहले साल में 10 महीने होते थे तब महीने के दिन ऊपर-नीचे होते रहते थे. बाद में जब साल में दो महीने जोड़े गए तो दिन को भी उसी हिसाब से विभाजित कर दिया गया. इसके बाद फरवरी में 28 दिन हो गए और 4 साल के हिसाब से 29 दिन आने लगे. तब से यही कैलेंडर चलता आ रहा है, जबकि पहले यह कैलेंडर कई बार बदल चुका था.
अगर एक दिन और नहीं बढ़ाते तो क्या होता
ऐसा कहा जाता है कि अगर फरवरी के महीने में एक दिन नहीं बढ़ता तो हम हर साल कैलेंडर से लगभग 6 घंटे आगे निकल जाएंगे. मतलब 100 साल में 24 दिन आगे निकल जाएंगे. जिसके चलते मौसम को महीने से जोड़ कर रखना मुश्किल हो जाएगा. अगर ऐसा नहीं किया जाए तो साल के मई- जून के महीने में गर्मी न होकर 500 साल बाद दिसंबर में आएगी. दरअसल सर्दी खत्म होने और मार्च से पहले रोमन में एक फेस्टिवल मनाया जाता है, जिसका नाम है फ़ब्रुआ. इस फेस्टिवल रोमन पादरी उन महिलाओं को पीटते थे, जिनके बच्चे नहीं होते थे.
हिंदू कैलेंडर में अधिक मास की व्यवस्था
अंग्रेजी कैलेंडर में लीप ईयर की व्यवस्था की गई है, वैसे ही हिंदू कैलेंडर में भी अधिक महीनों की व्यवस्था है. हिंदू कैलेंडर में पांच प्रमुख अंग हैं, जिनमें वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण शामिल है. इनके कारण ही इसे पंचांग कहा जाता है. हिंदू कैलेंडर चंद्र वर्ष पर आधारित होता है. एक चंद्र वर्ष में 354 से 360 दिन होते हैं. तिथियों के घटने और बढ़ने की वजह से महीने में और साल में दिन कम और ज्यादा होते हैं. आमतौर पर हर साल करीब 5 से 11 दिनों का अंतर आता है और हर तीन साल में ये अंतर करीब एक महीने के बराबर हो जाता है. ऐसे में साल में एक महीना बढ़ जाता है. अतिरिक्त माह को अधिकमास, मलमास या पुरुषोत्तममास के नाम से भी जाना जाता है. 2023 में हिंदू कैलेंडर में अधिक मास जुड़ने के कारण साल 12 की बजाय 13 महीने का रहा. अधिक मास के कारण इस साल सावन का महीना 60 दिनों का रहा.