Major Ashish Dhonchak: कश्मीर के अनंतनाग जिले में बुधवार को आतंकियों से मुठभेड़ में सेना के कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष धौंचक और जम्मू कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं भट्ट ने वतन के लिए कुर्बान हो गए है. इसके बाद सेना और पुलिस ने पूरे इलाके में आतंकियों के खात्मे के लिए खोज अभियान को और तेज कर दिया गया है. जवानों की शहदत के बाद देश भर में गुस्से का माहौल है. बताया जा रहा है कि आज शहीद मेजर आशीष धौंचक का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव बिंझौल में होगा. 

हरियाणा के पानीपत जिले के बिंझौल गांव के लिए बुधवार का दिन किसी सदमे से कम नहीं था... जब पानीपत के लाल मेजर आशीष धौंचक अनंतनाग में आतंकियों से लोहा लेते हुए देश के लिए शहीद हो गया था. आशीष की शहादत की खबर गांव में आग की तरह फैली. इसके बाद चारों तरफ मातम मौहाल छा गया. लोग आशीष की बहादुरी और उनके बचपन के किस्सों की चर्चा करने लगे. आशीष के पहले ही प्रयास में लेफ्टिनेंट बनने और बचपन में चोर-पुलिस के खेल से पैदा हुई देश सेवा की भावना...की कहानी दिलचस्प है. 

दरअसल, पानीपत के बिंझौला गांव में रहने वाले शहीद मेजर आशीष तीन बहनों के इकलौते भाई थे. उनकी एक चार साल की बेटी है. जब छह महीने पहले साले की शादी में छुट्टी लेकर घर आ थे, तब उन्होंने फिर से वापस लौटने का वादा किया था. उनके माता-पिता पानीपत के सेक्टर-7 में एक किराए के मकान में रहते है. शहीद आशीष का दो साल पहले मेरठ से जम्मू कश्मीर में तबादला हुआ था. जानकारी के मुताबित, शहीद मेजर आशीष धौंचक का पार्थिव शरीर आज उनके पैतृक गांव लाया जा सकता है.

पहले ही प्रयास में बने लेफ्टिनेंट 

शहीद मेजर आशीष धौंचक बचपन में अपने दोस्तों के साथ चोर-पुलिस का खेल खेलते थे. जिसमें वे हर बार पुलिस का रोल करते थे. इस दौरान ही उनके मन में देशसेवा करने का जज्बा पैदा हुआ. साल 2013 में उन्होंने पहले ही प्रयास में एसएसबी की परीक्षा पास की और लेफ्टिनेंट बनकर देशसेवा करने में लग गए.

गृह प्रवेश में शामिल होने वाले थे शहीद मेजर आशीष

ग्रामीणों ने बताया कि शहीद मेजर आशीष धौंचक के पिता लालचंद पानीपत स्थित नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड में नौकरी करते थे. लालचंद ने दो साल पहले रिटायर होने के बाद पानीपत के सेक्टर-7 में किराये के मकान में रहने लगे. इस बीच उन्होंने टीडीआई में अपना प्लॉट ले लिया और मकान बनाया. जब आशीष घर आए थे तो उन्होंने अपनी बेटी वामिका का शहर के एक बड़े स्कूल में दाखिला कराया था. 23 अक्तूबर को शहीद मेजर के जन्मदिन पर परिवार के सदस्य गृह प्रवेश तैयारी कर रहे थे. अक्टूबर में आशीष घर आने वाले थे. शहीद आशीष की मां कमला देवी, पत्नी ज्योति और तीनों बहनों का रो रोकर बुरा हाल है.

काबिलियत के दम पर मिला प्रमोशन

जानकारी के मुताबिक, मेजर आशीष सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर भर्ती हुए थे. परिजनों का कहना है कि आशीष पढ़ाई लिखाई में काफी आगे थे. साथ ही इतने बहादुर थे कि बिना किसी परवाह के वो दुश्मनों से भिड़ जाते थे. यहीं वजह थी कि उन्हें सेना में प्रमोशन मिलता रहा. शहीद आशीष सेना मेडल के लिए नामित भी हुए थे. स्थानीय प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों ने शहीद के घर पहुंचकर उनके परिजनों को सांत्वना दी.