BJP को चमकाने वाले आडवाणी की कौन सी इच्छा कभी नहीं हो पाई पूरी?
Lal Krishna Advani: सूत्रों ने बुधवार को बताया कि भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी को दिल्ली के AIIMS में अस्पताल में भर्ती कराया गया है. 96 साल के नेता आडवाणी को दिल्ली एम्स के यूरोलॉजी विभाग के डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है. अस्पताल ने उनके स्वास्थय का अपडेट देते हुए कहा कि वह स्थिर हैं और कड़ी निगरानी में हैं. आपको बता दें कि कुछ ही महीने पहले आडवाणी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है.
Lal Krishna Advani: लाल कृष्ण आडवाणी को भारतीय राजनीति में किसी पहचान की जरूरत नहीं है. आडवाणी को BJP को फिर से बनाने वाले शख्स के तौर पर जाना जाता है, साथ ही अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे को हवा देने वाले भी आडवाणी ही थे. कहा जाता है कि जिस वक्त बीजेपी अपना अस्तित्व खोती जा रही थी उस वक्त फिर से उसमें जान डालने वाले आडवाणी ही थे. आडवाणी की उम्र 96 साल है, जिसके चलते उनकी तबीयत भी अक्सर खराब रहती है. उनका स्वास्थय ठीक नहीं है जिसके चलते वो फिर से सुर्खियों में आ गए हैं.
लाल कृष्ण आडवाणी का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है, आज उनके जीवन से जुड़े कुछ किस्से आपके साथ साझा करेंगे. उन्होंने किस तरह से BJP को बनाने के लिए काम किया और उनकी वो कौन सी इच्छा थी जो कभी पूरी नहीं हो पाई.
आडवाणी का जन्म
लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को हुआ था. आडवाणी का जन्म कराची में हुआ था और भारत के विभाजन के दौरान वे भारत चले आए और मुंबई में बस गए जहां उन्होंने अपनी कॉलेज की शिक्षा पूरी की उन्होंने 2002 से 2004 तक भारत के 7वें उपप्रधानमंत्री के तौर पर अपनी सेवा दी.
वह भारतीय जनता पार्टी के सह-संस्थापकों में से एक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सदस्य हैं. वह 1998 से 2004 तक सबसे लंबे समय तक गृह मंत्री रहे. वह लोकसभा में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले विपक्ष के नेता भी हैं. 2009 के आम चुनाव के दौरान वह भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे.
रथ यात्रा से बीजेपी की बदली किस्मत
1990 में, आडवाणी ने राम रथ यात्रा शुरू की, जो राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए स्वयंसेवकों को संगठित करने के लिए एक रथ के साथ एक जुलूस था. जुलूस गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुआ और अयोध्या में सभी लोग इकट्ठा हुए. 1991 के आम चुनाव में, भाजपा कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई और आडवाणी गांधीनगर से दूसरी बार जीते और फिर से विपक्ष के नेता बने.
इसी के बीच 1992 में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था और आडवाणी पर विध्वंस से पहले भड़काऊ भाषण देने का आरोप था. आडवाणी विध्वंस मामले में आरोपियों में से थे, लेकिन 30 सितंबर 2020 को सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था. फैसले में कहा गया कि विध्वंस पूर्व नियोजित नहीं था और आडवाणी भीड़ को रोकने की कोशिश कर रहे थे न कि उन्हें उकसाने की.
आडवाणी का अधूरा सपना
आडवाणी ने जिस तरह से बीजेपी को चमकाने का काम किया उससे वो पार्टी के बड़े नेता बने. कहा जाता है कि उनकी इच्छा प्रधानमंत्री बनने की थी. 2009 के आम चुनाव के दौरान वह भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार भी रहे. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, आडवाणी और नरेन्द्र मोदी के बीच गुरु-शिष्य जैसा रिश्ता था.
एक बार जब नरेंद्र मोदी से पूछा गया कि ''गांधीनगर छोड़कर कभी दिल्ली का रुख करेंगे?'' तो इसपर मोदी का जवाब था कि ''बीजेपी में मेरे साथ-साथ हर किसी एक ही सपना है कि लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए.''
आडवाणी की नाराजगी जाहिर 2013 में हुई जब बीजेपी की मीटिंग होनी थी, जिसमें 2014 के आम चुनाव के लिए पीएम पद का उम्मीदवार बनाने की तैयारी की जा रही थी. लेकिन उस दिन आडवामी गोवा में पहुंचे ही नहीं. इसी के चलते मोदी के नाम का ऐलान भी नहीं हो सका.
आडवाणी की इच्छा नहीं हुई पूरी!
बीजेपी ने सितम्बर में मोदी को PM उम्मीदवार के तौर पर उतार दिया, जिस चुनाव में पार्टी को बड़ी जीत हासिल हुई. उस दौरान बीजेपी की पहली पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी. कहा जाता है कि उस वक्त भी आडवाणी को मोदी के साथ खड़ा होना मंजूर नहीं था. दोनों को गुरू शिष्य की जोड़ी कहा जाता था लेकिन आडवाणी अपने शिष्य की जीत के जश्न में शामिल नहीं हुए.
रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी समेत ज़्यादातर राजनीतिक दलों में कई नेताओं का यही मानना है कि पीएम पद के लिए आडवाणी से बेहतर कोई उम्मीदवार नहीं हो सकता था. शायद इसी नाराज़गी को मोदी भुला नहीं पाए और आडवाणी की रायसीना हिल की यात्रा अधूरी रह गई जिसके बाद वो राष्ट्रपति भी नहीं बन पाए. इसके साथ ही जो प्रधानमंत्री बनने का सपना था वो भी पूरा नहीं हो सका और बाद में प्रेसिडेंट बनने का सपना भी अधूरा रह गया.