मुमताज और शाहजहां की ये कैसी मोहब्बत? मंगनी और शादी के बीच में किसी और से कर ली थी शादी

Mumtaz-Shahjahan Love Story: शाहजहां और मुमताज की मोहब्बत से हर कोई वाकिफ है, क्योंकि उनके जाने के बाद भी उन्होंने अपनी मोहब्बत की निशानी इस दुनिया में छोड़ी है.

Tahir Kamran
Edited By: Tahir Kamran

Mumtaz-Shahjahan Love Story: ताजमहल को देखते ही शाहजहां और मुमताज की बेमिसाल मोहब्बत ज़हन में दौड़ने लगती है. लोग मोहब्बत की निशानी के तौर पर एक दूसरे को ताजमहल भी तोहफे में देते हैं. कहा जाता है कि शाहजहां को मीना बाजार में मुमताज से पहली ही नजर में मोहब्बत हो गई थी. उस वक्त ना तो शाहजहां, शाहजहां थे और ना मुमताज ही मुमताज थीं. तब तक शाहजहां को खुर्रम और मुमताज को अर्जुमंद कहा जाता था. जानकारों के मुताबिक खुर्रम यानी शाहजहां अर्जुमंद को पहली ही झलक में दिल बैठे थे. हालांकि दोनों की शादी मंगनी के 5 साल बाद हुई थी. हैरानी तो तब होती है जब बेपनाह मोहब्बत होने के बावजूद मंगनी और शादी के बीच के समय में शाहजहा ने एक और शादी कर ली थी तो फिर ये कैसी मोहब्बत और आखिर क्या मजबूरी थी?

कैसे हुई पहली मुलाकात?

नवरोज का जश्न मनाया जा रहा था और मीना बाजार अपने उरूज पर था. बाजार में कपड़े, गहने, मसालों समेत एक से बढ़कर एक सामान बेचा जा रहा था. कहा जाता है कि खुर्रम यानी शाहजहां मीना बाजार से गुजर रहे थे एक दुकान पर अचानक रुक जाते हैं. वो देखते हैं कि पत्थर बेचने वाली एक लड़की शानदार कपड़ी की तह लगा रही है. खुर्रम यहां रुकते हैं और एक पत्थर हाथ में उठाकर उसके बारे में पुछने लगते हैं. जिसके बाद दुकान पर खड़ी लड़की जवाब देती है कि जनाब यह पत्थर नहीं हीरा है. क्या आपको इसकी चमक से अंदाजा नहीं हुआ?

इसके बाद खुर्रम इसकी कीमत पूछते हैं. जवाब में अर्जुमंद बताती हैं कि इसकी कीमत कई हजार रुपये बताती हैं. कीमत बहुत ज्यादा होने के बावजूद खुर्रम खरीदने को तैयार हो जाते हैं. खुर्रम खरीदते समय कहते हैं कि वो अगली मुलाकात तक इस पत्थर को अपने सीने के करीब रखेंगे. अर्जुमंद को सारा माजरा समझ आ जाता है और नजरें नीचे करते हुए पूछती हैं कि वो (अगली मुलाकात) कब होगी? जवाब खुर्रम कहते हैं कि जब दोनों के दिल मिल जाएंगे. 

बहुत जहीन और काबिल थी अर्जुमंद:

अर्जुमंद बानो सिर्फ खूबसूरत नहीं थीं बल्कि वो बहुत जहीन और दूरअंदेशी महिला थीं. अरबी और फारसी जैसी भाषाओं को मजबूत पकड़ होने के साथ साथ कविताएं भी लिखा करती थीं. अर्जुमंद की काबिलियत और जहान के काफी चर्चे भी थे. यही वजह है कि खुर्रम के पिता जहांगीर दोनों की मंगनी के लिए राजी हो गए थे. हालांकि अर्जुमंद कोई अनजान नहीं थीं, बल्कि अर्जुमंद की फूफी यानी बुआ मेहरुन्निसा की शादी जहांगीर से हुई थी जिन्हें नूरजहां के नाम से भी जाना जाता है. 

शाहजहां ने की थी 13 शादियां:

दोनों की मंगनी के बाद शादी होने में लगभग 5 वर्ष लगे थे. 1607 में मंगनी हुई थी और 1612 जाकर शादी हुई थी. कहा जाता है कि देर से शादी होने की वजह शुभ मुहूर्त था. दरअसल दरबार के ज्योतिषियों ने दोनों की शादी का शुभ मुहूर्त 5 साल बाद का बताया था. हालांकि इस मोहब्बत पर सवाल उठाना कितना मुनासिब ये तो नहीं पता लेकिन खुर्रम ने एक और शादी कर ली थी. कहा जाता है कि खुर्रम ने 1610 में शहज़ादी कंधारी बेगम से निकाह किया था. इतना ही नहीं उन्होंने मुमताज से शादी के बाद 1617 में तीसरी शादी अपने ही दरबारी के बीटी इज्जुन्निसा बेगम से की थी. कुछ जगहों पर दावा किया जाता है कि खुर्रम यानी शाहजहां ने लगभग 13 शादियां की थीं.मुमताज और शाहजहां की ये कैसी मोहब्बत? मंगनी और शादी के बीच में किसी और से कर ली थी शादी

ताजमहल को देखते ही शाहजहां और मुमताज की बेमिसाल मोहब्बत ज़हन में दौड़ने लगती है. लोग मोहब्बत की निशानी के तौर पर एक दूसरे को ताजमहल भी तोहफे में देते हैं. कहा जाता है कि शाहजहां को मीना बाजार में मुमताज से पहली ही नजर में मोहब्बत हो गई थी. उस वक्त ना तो शाहजहां, शाहजहां थे और ना मुमताज ही मुमताज थीं. तब तक शाहजहां को खुर्रम और मुमताज को अर्जुमंद कहा जाता था. जानकारों के मुताबिक खुर्रम यानी शाहजहां अर्जुमंद को पहली ही झलक में दिल बैठे थे. हालांकि दोनों की शादी मंगनी के 5 साल बाद हुई थी. हैरानी तो तब होती है जब बेपनाह मोहब्बत होने के बावजूद मंगनी और शादी के बीच के समय में शाहजहा ने एक और शादी कर ली थी तो फिर ये कैसी मोहब्बत और आखिर क्या मजबूरी थी?

कैसे हुई पहली मुलाकात?

नवरोज का जश्न मनाया जा रहा था और मीना बाजार अपने उरूज पर था. बाजार में कपड़े, गहने, मसालों समेत एक से बढ़कर एक सामान बेचा जा रहा था. कहा जाता है कि खुर्रम यानी शाहजहां मीना बाजार से गुजर रहे थे एक दुकान पर अचानक रुक जाते हैं. वो देखते हैं कि पत्थर बेचने वाली एक लड़की शानदार कपड़ी की तह लगा रही है. खुर्रम यहां रुकते हैं और एक पत्थर हाथ में उठाकर उसके बारे में पुछने लगते हैं. जिसके बाद दुकान पर खड़ी लड़की जवाब देती है कि जनाब यह पत्थर नहीं हीरा है. क्या आपको इसकी चमक से अंदाजा नहीं हुआ?

इसके बाद खुर्रम इसकी कीमत पूछते हैं. जवाब में अर्जुमंद बताती हैं कि इसकी कीमत कई हजार रुपये बताती हैं. कीमत बहुत ज्यादा होने के बावजूद खुर्रम खरीदने को तैयार हो जाते हैं. खुर्रम खरीदते समय कहते हैं कि वो अगली मुलाकात तक इस पत्थर को अपने सीने के करीब रखेंगे. अर्जुमंद को सारा माजरा समझ आ जाता है और नजरें नीचे करते हुए पूछती हैं कि वो (अगली मुलाकात) कब होगी? जवाब खुर्रम कहते हैं कि जब दोनों के दिल मिल जाएंगे. 

बहुत जहीन और काबिल थी अर्जुमंद:

अर्जुमंद बानो सिर्फ खूबसूरत नहीं थीं बल्कि वो बहुत जहीन और दूरअंदेशी महिला थीं. अरबी और फारसी जैसी भाषाओं को मजबूत पकड़ होने के साथ साथ कविताएं भी लिखा करती थीं. अर्जुमंद की काबिलियत और जहान के काफी चर्चे भी थे. यही वजह है कि खुर्रम के पिता जहांगीर दोनों की मंगनी के लिए राजी हो गए थे. हालांकि अर्जुमंद कोई अनजान नहीं थीं, बल्कि अर्जुमंद की फूफी यानी बुआ मेहरुन्निसा की शादी जहांगीर से हुई थी जिन्हें नूरजहां के नाम से भी जाना जाता है. 

शाहजहां ने की थी 13 शादियां:

दोनों की मंगनी के बाद शादी होने में लगभग 5 वर्ष लगे थे. 1607 में मंगनी हुई थी और 1612 जाकर शादी हुई थी. कहा जाता है कि देर से शादी होने की वजह शुभ मुहूर्त था. दरअसल दरबार के ज्योतिषियों ने दोनों की शादी का शुभ मुहूर्त 5 साल बाद का बताया था. हालांकि इस मोहब्बत पर सवाल उठाना कितना मुनासिब ये तो नहीं पता लेकिन खुर्रम ने एक और शादी कर ली थी. कहा जाता है कि खुर्रम ने 1610 में शहज़ादी कंधारी बेगम से निकाह किया था. इतना ही नहीं उन्होंने मुमताज से शादी के बाद 1617 में तीसरी शादी अपने ही दरबारी के बीटी इज्जुन्निसा बेगम से की थी. कुछ जगहों पर दावा किया जाता है कि खुर्रम यानी शाहजहां ने लगभग 13 शादियां की थीं.

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06 April 2024, 12:24 PM IST

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