Bhopal Gas Tragedy: 39 साल पहले की वो भयानक रात, जानें उस रात क्या हुआ था?

दो दिसंबर 1984 में भोपाल गैस त्रासदी ने जहां हजारों की जान ली थी वहीं लाखों लोग प्रभावित भी हुए थे.

JBT Desk
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हाइलाइट

  • भोपाल गैस पीड़ितों के लिए समर्पित है सतीनाथ का जीवन
  • आज भी भोपाल के लोग नहीं भूल पाए हैं वो भयानक मंजर

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 39 साल पहले आई वो भयानक रात जिसने एक ही झटके में हजारों जिंदगी लील ली. 1984 में 2 और 3 दिसंबर को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) से निकली जहरीली गैस  के रिसाव ने सो रहे हजारों की जान ले ली.  लाखों लोग इस त्रासदी से प्रभावित हुए थे. 

भोपाल गैस कांड के 39 साल बित गए हैं बावजूद इसके त्रासदी के पीड़ितों के जख्म आज भी हरे हैं. यह हादसा पत्थर दिल इंसान को भी इस कदर विचलित करने वाला था, हादसे में मारे गए लोगों को सामूहिक रूप से दफनाया गया था और उनका अंतिम संस्कार किया गया वहीं लगभग दो हजार जानवरों के शवों को पानी में बहाना पड़ा साथ ही पास के सभी पेड़ बंजर हो गए थे. 

क्या हुआ था 2 दिसंबर की रात को

American Factory 'यूनियन कार्बाइड' नाम को इंसेक्टिसाइड बनाने के लिए भोपाल में प्लांट किया गया था. इस फैक्ट्री के शुरू होने के बाद भोपाल के जनता को लग रहा था कि अब उनके अच्छे दिन आएंगे और उनको फैक्ट्री की कारण रोजगार मिलेगा. लेकिन 2 और 3 दिसंबर की दौरान हुए रात एक ज़बरदस्त धमाके ने पूरे भोपाल में हाहाकार मचा दिया. धमाके ने ऐसे घाव दिए जिनका इलाज आज भी हज़ारों परिवार तलाश रहे हैं, जिनके जले हुए दामन आज भी इस बात के गवाह हैं. उस भयानक रात ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली करीब 40 टन ज़हरीली एम.आई.सी गैस ने एक भयानक हादसे को अंजाम दिया था. 

भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के रियल हीरो कौन?

भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों  रियल हीरो डॉक्टर सतीनाथ सनरंगी ने अपना पूरा जीवन पीड़ितों के नाम कर दिया. अपने जीवन के चार दशक गैस प्रभावितों के हक की आवाज बुलंद करने व सेवा में बीता दिया. ऐसे में, चक्रधरपुर की धरती को सतीनाथ पर फक्र होना लाजिमी है. सतीनाथ का जन्म झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम के चक्रधरपुर में हुआ था. सतीनाथ 25 सितंबर 1954 में जन्म हुआ था वो सतीनाम के परिजन चक्रधरपुर शहरी क्षेत्र के पुरानी बस्ती में रहते हैं. सतीनाथ का ननिहाल पुरानी बस्ती है.  विजय कुमार पाणि ऑडिशा के बड़े congress नेता रहे उनके मामा एवं कान्हू कुमार पाणि नाना हैं.

सतीनाथ के पिता फणीभूषण पाणि RPF में इंस्पेक्टर थे. हमेशा उनका तबादला हो जाया करता था. यही वजह है कि उनकी शिक्षा दीक्षा कई शिक्षण संस्थानों में हुई. वहीं उनके ममेरे भाई डा. बीके पाणि जमशेदपुर में जाने माने नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं. 

बचपन से ही बेहद मेधावी रहे सतीनाथ ने 1980 में इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में एम.टेक किया. 

पीड़ितों के सेवा को संगठन बनाकर उनके लिया किया आंदोलन 

भोपाल में हुए त्रासदी के बाद दिसंबर 1984 में ही सतीनाथ में यूनियन कार्बाइड विकटिम्म के लिए जहरीली गैस कांड संघर्ष मोर्चा का गठन किया. 1986 में बड़े स्तर पर मोर्चा संभालने के लिए भोपाल पुष फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन नाम के संगठन की स्थापना की गई.1989 में भोपाल गैस पीड़ितों की आवाज  को और तेज  करने व हक दिलाने को विदेशों में कैपेन ने राह पकड़ी. यूनाईटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, यूनाईटेड किंगडम, आयरलैंड एवं नीदरलैंड में कैपेन कर प्रभावितों के हक में आवाज उठाई.

आगे भी में आदोलन जारी रखते हुए वर्ष 2006 एवं 2008 में दिल्ली में भूख हड़ताल पर बैठे. 2009 में एक बार फिर दुनिया को गैस पीड़ितों की भयावहता से समक्ष लाने के लिए सतीनाथ ने भोपाल-यूरोप बस टूर किया. 

रॉयल्टी से बनाया गया स्त्री रोग केंद्र


डॉक्टर सतीनाथ की मौसेरी बहन श्रीमती शिखा त्रिपाठी बताती हैं कि चमकदार कैरियर त्याग कर जहरीली गैस पीड़ितों की मदद के लिए सतीनाथ को बहुत मेहनत करनी पड़ी. बीबीसी लंदन के ब्रिटिश पत्रकार यह साहित्यकार डोमिनिक लेपिअर सतीनाथ की खास उद्देश्य से काफी प्रभावित हुए. 

सतीनाथ की गैस पीड़ितों की मदद के लिए ब्रिटिश पत्रकार ने आर्थिक मदद की.  उन्होंने अपनी सुप्रसिद्ध रचना सिटी ऑफ जॉय की रॉयल्टी पीड़ितों की मदद को दे दी. सिटी ऑफ जॉय की रॉयल्टी से ही आगे चलकर गायनाकोलॉजी सेंटर का निर्माण हुआ, जहां प्रभावित महिलाओं का इलाज व रिसर्च किया जा रहा है. 

आज भी खौफनाक मंजर का दिखता है असर 
दुनिया के खौफनाक औद्योगिक त्रासदी में से एक भोपाल गैस त्रासदी का असर आज भी दिखाई देता है. उस इलाके में आज भी काफी सख्या में लोग आज भी किसी न किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं. गुजरते वक़्त के साथ आज भी दर्द कमने  के बजाय और बढ़ गया है. लगभग साढ़े तीन दशकों से राज्य और केंद्र में सरकारें बदलती रही बावजूद पीड़ितों की किस्मत न बदली. जहां एक ओर मदद के लिए लोग भटक रहे हैं आज भी वहीं कुछ लोग आस लगाए दुनिया से चले गए.
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02 December 2023, 03:27 PM IST

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