मदरसों की पढ़ाई और स्कूलों का सिस्टम, जानिए क्या है दोनों में फर्क!
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के मदरसों को संवैधानिक मान्यता दे दी है, जिससे मदरसा शिक्षा प्रणाली पर नया सवाल खड़ा हो गया है. मदरसों में पढ़ाई कैसे होती है, वहां क्या विषय पढ़ाए जाते हैं और स्कूलों से उनका तरीका किस हद तक अलग है? जानिए मदरसों के सिस्टम, फीस और पाठ्यक्रम के बारे में और यह समझिए कि इस फैसले के बाद मदरसों की शिक्षा पर क्या असर पड़ेगा!
Supreme Court Decision: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मदरसों को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया था, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को असंवैधानिक बताया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि मदरसों को संवैधानिक मान्यता दी जाती है और यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता.
इस फैसले के बाद, अब लोगों के मन में सवाल उठने लगे हैं कि मदरसों में पढ़ाई का तरीका आखिर स्कूलों से कैसे अलग होता है और वहां क्या पढ़ाया जाता है?
मदरसों का प्रकार और शिक्षा प्रणाली
मदरसा शिक्षा प्रणाली भारत में दो तरह से काम करती है. एक वर्ग वो है जो चंदे से चलता है, जबकि दूसरा वर्ग वह है जो सरकार की आर्थिक मदद से संचालित होता है. सरकार द्वारा संचालित मदरसों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को लागू किया गया है, जिससे अब इन मदरसों में आधुनिक शिक्षा का भी समावेश किया गया है. मदरसों में आमतौर पर प्राइमरी से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक शिक्षा दी जाती है लेकिन इसका तरीका और विषय स्कूलों से थोड़ा अलग होता है.
मदरसों में कैसे होती है शिक्षा?
मदरसों में शिक्षा के स्तर को तीन प्रमुख भागों में बांटा जाता है:
➢ तहतानिया (प्राथमिक शिक्षा)
➢ फौकानिया (जूनियर हाई स्कूल स्तर)
➢ आलिया (हाई स्कूल और उच्च शिक्षा)
इन स्तरों में पढ़ाई की जाती है, जहां 'मुंशी-मौलवी', 'आलिम', 'कामिल' और 'फाजिल' जैसी डिग्रियां दी जाती हैं. मदरसों में सामान्यत: धार्मिक शिक्षा के अलावा अन्य सामान्य विषयों की भी पढ़ाई होती है लेकिन यह पाठ्यक्रम उर्दू में होता है.
मदरसों में पढ़ाए जाने वाले विषय
मदरसों में पढ़ाई का तरीका काफी विशिष्ट होता है, जिसमें केवल धार्मिक अध्ययन के साथ-साथ कुछ अन्य विषय भी शामिल होते हैं. उदाहरण के लिए, मुंशी से लेकर फाजिल तक के स्तर पर हिंदी, विज्ञान, गृह विज्ञान, सामान्य हिंदी, मुताल-ए-हदीस (हदीस का अध्ययन), फिक्ह इस्लामी (इस्लामी कानून) और अन्य इस्लामी धार्मिक विषयों का अध्ययन कराया जाता है. यह शिक्षा सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है.
मदरसों में फीस का सिस्टम
मदरसों में पढ़ाई के लिए फीस राज्य के अनुसार अलग-अलग होती है. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में मुंशी डिग्री के लिए 170 रुपये, आलिम डिग्री के लिए 230 रुपये, कामिल के लिए 290 रुपये और फाजिल डिग्री के लिए 350 रुपये फीस ली जाती है. खास बात यह है कि लड़कियों के लिए फीस में छूट दी जाती है. इस फीस की संरचना को देखकर यह भी समझा जा सकता है कि शिक्षा का स्तर सरकारी सहायता से मिलता है, जो आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के बच्चों के लिए भी सुलभ है.
क्या मदरसे और स्कूल में कोई अंतर है?
मदरसों की शिक्षा और स्कूलों की शिक्षा में कुछ अंतर होता है. जहां स्कूलों में बच्चों को मुख्य रूप से एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के तहत आधुनिक शिक्षा दी जाती है, वहीं मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ कुछ सामान्य विषय भी पढ़ाए जाते हैं, जो मुस्लिम समाज के बच्चों को धार्मिक दृष्टिकोण से भी सशक्त बनाते हैं. हालांकि, अब सरकार ने मदरसों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को लागू किया है जिससे मदरसों की शिक्षा प्रणाली को और अधिक समग्र और व्यापक बनाया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह साफ करता है कि मदरसों को भी संविधान के तहत मान्यता प्राप्त है और उनका उद्देश्य धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता. मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा का तरीका और विषय भले ही स्कूलों से अलग हो, लेकिन यह बच्चों को एक मजबूत धार्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा प्रदान करता है. इसके अलावा, अब सरकारी मदद और एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के माध्यम से मदरसों में आधुनिक शिक्षा भी दी जा रही है, जिससे बच्चों का समग्र विकास हो सके.