Maharashtra Assembly Election: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अपनी स्वार्थी और अवसरवादी निर्णयों के कारण अपने राजनीतिक करियर में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. 2019 विधानसभा चुनावों में, शिवसेना और बीजेपी गठबंधन ने 161 सीटों के साथ बहुमत प्राप्त किया, जिसमें बीजेपी ने 105 और शिवसेना ने 56 सीटें जीतीं लेकिन जब बीजेपी को बिना उद्धव के समर्थन के सरकार बनाने में असमर्थता हुई, तब उन्होंने कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बनने का निर्णय लिया.
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर लगातार सवाल उठते रहे. सरकार को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में उन्हें कठिनाई हुई और वे संसदीय प्रक्रियाओं का पर्याप्त ज्ञान नहीं रखते थे. मुख्यमंत्री कार्यालय में उनकी दुर्लभ उपस्थिति और विपक्ष के सवालों का संतोषजनक उत्तर न दे पाने से उनकी अक्षमताएं और भी उजागर हुईं. इसके साथ ही, पार्टी के अंदर भी असहमति दिखने लगी, जहां कई मंत्री और विधायक उनके समर्थन में नहीं थे.
यह साफ है कि कांग्रेस और एनसीपी ने उद्धव का उपयोग अपने चुनावी लाभ के लिए किया. हालांकि, उद्धव ने उनके समर्थकों से वोट प्राप्त किए, लेकिन शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी से उसी प्रकार का समर्थन नहीं मिला. मुख्यमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा ने शिवसेना और उसके संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की छवि को नुकसान पहुंचाया.
कांग्रेस के नेताओं और शरद पवार ने उद्धव को कमजोर कड़ी के रूप में निशाना बनाना शुरू कर दिया. कांग्रेस की सलाह लिए बिना सांगली लोकसभा सीट के लिए उम्मीदवार घोषित करने पर उद्धव के खिलाफ बगावत शुरू हो गई. शरद पवार भी तब नाराज हुए जब उद्धव ने अपने निजी सचिव के लिए विधान परिषद चुनाव में नामांकन दायर किया.
कांग्रेस और शरद पवार की रणनीति उद्धव की स्थिति को कमजोर करने और आगामी चुनावों में अपनी सीटों को सुरक्षित करने की है. उद्धव के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है, वे इस योजना के सामने झुकते नजर आ रहे हैं. उनकी पार्टी पहले ही टूट चुकी है और कई समर्थक कांग्रेस और एनसीपी की ओर खिसक गए हैं.
हाल ही में मनोज जरांगे पाटिल ने उद्धव ठाकरे पर उन्हें एक मामले में फंसाने की कोशिश का आरोप लगाया है. ऐसा माना जा रहा है कि यह बयान शरद पवार के प्रभाव में दिया गया, जिससे गठबंधन में दरार और बढ़ गई है.
यह स्पष्ट है कि कांग्रेस और एनसीपी दोनों शिवसेना (यूबीटी) को कमजोर कड़ी मानकर उद्धव ठाकरे की छवि को धूमिल कर रही हैं. जबकि उनसे अपने राजनीतिक लाभ प्राप्त कर रही हैं. ये रणनीतियां दिखाती हैं कि कैसे वे अपने सहयोग से चुनावी लाभ उठाते हुए उनके नेतृत्व को कमजोर कर रहे हैं. First Updated : Wednesday, 11 September 2024