महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले जयंती 2023: बेटियों और महिलाओं के लिए खोला था पहला बालिका स्कूल, जानिए महात्मा ज्योतिबा फुले के योगदान के बारे में

समाज में चल रहे जातिवाद , छुआछूत जैसी तकयानुसी सोच को बदलने के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले ने समाज को एक नई दिशा दिखाई। उन्होंने और पत्नी सावित्री बाई फुले ने महिलाओं और बेटियों की शिक्षा के लिए पहला बालिका स्कूल खोला और उन्हने शिक्षित करवाया।

Poonam Chaudhary
Poonam Chaudhary

हाइलाइट

  • महाराष्ट्र के पुणे में खोला पहला बालिका स्कूल, पहले पत्नी को किया था शिक्षित उसके बाद स्कूल में पढ़ाने भेजा। ब्रिटिश सरकार ने किया था सावित्री बाई फुले को समाजसेवी महिला के तौर पर सम्मानित।

आजकल के जमाने से परे था ज्योतिबा फुले का समाज, संघर्ष और कठियों से भरे सामाजिक रीती - रिवाज, लोगों का जीना मुश्किल कर रहे थे। ऐसे में सबसे ज़्यादा जो अत्याचार हुआ करता था वह होता था अनुसूचित जाति और महिलाओं के ऊपर। देश में स्त्री की शिक्षा, विधवा महिलाओं का पुनर्विवाह, अनुसूचित जाति का अपमान करना, छुआछूत और भेदभाव जैसी तकियानुसी बातों को लेकर समाज से लड़ने को तैयार थे 'ज्योतिबा फुले' इन्होंने लोगों को नई राह दिखाई। 

महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले का जन्म महाराष्ट्र के एक माली परिवार में 11 अप्रैल 1827 में हुआ था। जिसके बाद वह पुणे जाकर फूलों का व्यवसाय करने लगे थे, जिसके लिए उनका नाम 'फूले' सरनेम पड़ा था। 'ज्योतिबा फुले' का समाज को सशक्त बनाने में काफी बड़ा योगदान रहा है। सबसे पहले उन्होंने महाराष्ट्र में सभी लकड़ियों और महिलाओं की शिक्षा को लेकर और जातिवाद , छुआछूत को लेकर आंदोलन शुरू किया था। 

 बेटियों और महिलाओं की शिक्षा के लिए खोला पहला स्कूल, पत्नी को बनाया टीचर 

महात्मा ज्योतिबा फुले मानते थे की हमारा देश जभी आगे बढ़ सकता है जब यहाँ की महिलाएं और बेटियां भी शिक्षित होंगी।  उस समय शिक्षा के लिए किसी भी स्कूल की सुविधा नहीं थी। इसलिए उन्होंने महाराष्ट्र के पुणे में सन् 1848 में बालिकाओं के लिए पहला स्कूल खोला था। लेकिन कमी थी बच्चों को पढ़ाने वाले अध्यापक की। कहते हैं ना समाज में बदलाव जभी आता है उससे पहले खुद के घर में बदलाव करना पड़ता है। ज्योतिबा फुले की पत्नी सावित्री बाई पढ़ी - लिखी नहीं थी। जिसके बाद सबसे पहले उन्होंने अपनी पत्नी को खुद पढ़ाकर उन्हें एक शिक्षक बनाया था। इसके बाद सावित्री बाई स्कूल में बच्चियों को महिलाओं को शिक्षा देने लगीं।   

दोनों को करना पड़ा कई चुनौतियों का सामना

जब कुछ अच्छा करने जाते है और वहां कोई कठनाई न आए ऐसा कभी हो सकता है क्या। ऐसा ही फुले दंपत्ति के साथ भी हुआ। जब उन्होंने पहला बालिका स्कूल की स्थापना की तो लोगों और समाज ने उनके काम में कई बाधाएं डाली। यही नहीं उनके परिवार वालों ने भी काफी दवाब बनाया जिसके परिणाम स्वरूप ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई को घर छोड़ना पड़ा। लेकिन हार नहीं मानी और लड़कियों को पढ़ाया - लिखाया और सभी कठनाइयों को दोनों ने साथ मिलकर पार किया। जिसके बाद उन्होंने इसके बाद 3 और  स्कूल खोल दिए। 


सावित्री बाई को किया ब्रिटिश सरकार ने सम्मानित 

हर कामियाब पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ जरूर होता है। यह बात ज्योतिबा फुले के साथ एकदम सही बैठती है। ज्योतिबा फुले के हर काम में उनकी धर्मपत्नी सावित्री बाई फुले ने हमेशा साथ दिया। जिसके लिए वह एक समाजसेवी महिला कहलाईं। महिलाओं और बेटियों की शिक्षा को लेकर उनके इस कार्य को देख ब्रिटिश सरकार ने सावित्री बाई फुले को 1883 में सम्मानित किया था। 

यह थे महात्मा ज्योतिबा फुले के विचार - 

* राष्ट्रीयता की भावना भारत में जब तक विकसित नहीं हो सकती, जब तक खान - पान को लेकर वैवाहिक संबंध पर जातिवाद चलता रहेगा। सभी जीवों में मानव सबसे श्रेष्ठ होता है और सभी मनुष्यों में नारी। पुरुष और स्त्री दोनों को ही जन्म से ही हर कार्य के लिए स्वतंत्र है। 

* विद्या बिन गई मति, मति बिन गई गति, 
गति बिन गई नीति, नीति बिन गया वित्त,
 वित्त बिन चरमराए शूद्र, एक अविद्या ने किए कितने अनर्थ.

* समाज के विकास के लिए बेहद ही जरूरी है की इसके सभी सदस्यों को आज़ादी और बराबर का अधिकार मिले और साथ ही साथ उनके बीच भाईचारा बना रहे। 

* चाहे स्त्री हो या पुरुष वह जन्म से सभी समान होते हैं इनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव करना मानवता और नैतिकता के खिलाफ माना जाता है। 


 

calender
11 April 2023, 12:59 PM IST

जरूरी खबरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो