Who Is Marcos Commando : भारतीय सेना के जवान दुश्मनों को मुंह तोड़ जवाब देते हैं. किसी भी युद्ध में जवान डटकर दुश्मनों का सामना करते हैं. देश में आए दिन सेना की बहादुरी के किस्से देखने-सुनने को मिलते हैं. लेकिन क्या आप सेना के मार्कोस कमांडो के बारे में जानते हैं? इनकी ताकत का लोहा दुनिया भी मानती है. हजारों लोगों में से सिर्फ एक का ही ट्रेनिंग में सिलेक्शन होता है. उनकी ट्रेनिंग बहुत टफ होती है और कड़ी मेहनत करके ट्रेनिंग पूरी होती है. आज हम मार्कोस कमांडो के बारे में विस्तार से जानेंगे.
भारतीय सेना की मरीन कमांडो इकाई को मार्कोस के नाम से जाना जाता है. जिसका ऑफिशियल नाम मरीन कमांडो फोर्स (MCF) है. यह इंडियन नेवी की स्पेशल फोर्स है और ये पल भर में किसी भी मिशन को पूरा सकती है. मार्कोस को अमेरिकी नेवी सील की तर्ज पर बनाया गया है. ये दुश्मन के खिलाफ जल, थल और वायु में मोर्चा संभालने की ताकत रखती है. मूल रूप से मार्कोस को भारतीय समुद्री विशेष बल कहा जाता है. बाद में इसका शॉर्ट नाम मार्कोस रख दिया गया.
मार्कोस फोर्स यूनिट की स्थापना फरवरी, 1987 में हुई थी. यह फोर्स सभी प्रकार के वातावरण में काम करने के लिए सक्षम है. इस फोर्स ने अनुभव और व्यावसायिकता के लिए इंटरनेशनल प्रतिष्ठा हासिल कर ली है. यह फोर्स नियमित रूप से झेलम नदी और वूलर झील में ऑपरेट करते हैं. इस झील के जरिए मार्कोस जम्मू और कश्मीर में विशेष समुद्री और आतंकवाद विरोधी अभियान चलाते हैं. वहीं कुछ मार्कोस सशस्त्र बल विशेष अभियान प्रभाग का एक हिस्सा भी है.
मार्कोस कमांडो की ट्रेनिंग सबसे कठिन होती है. जवानों को 24 घंटे में सिर्फ 4 घंटे के लिए सोना होता है और हर रोज सुबह 4 बजे उठना पड़ता है. इनकी ट्रेनिंग इतनी टफ होती है कि हर कोई इसे पूरा नहीं कर पाता है. इस फोर्स में शामिल होने के लिए जवानों को 3 साल तक कड़ी ट्रेनिंग करनी पड़ती है. जवानों को 25 से 30 किलो तक का वेट उठाकर कमर तक कीचड़ में धंसते हुए 800 मीटर की कठिन दौड़ लगानी पड़ती है.
इन्हें समुद्र और हड्डी जमा देने वाली बर्फ में भी ट्रेनिंग दी जाती है. जवानों को 8 से 10 हजार मीटर की ऊंचाई से पैराशूट के साथ नीचे कूदने की ट्रेनिंग मिलती है. फिर आखिर में अमेरिका में नेवी सेल के साथ ट्रेनिंग और का दूसरा पार्ट पूरा करने के लिए भेजा जाता है. जो इस ट्रेनिंग को पूरा कर लेता है वह मार्कोस कमांडो बन जाता है.
सभी मार्कोस को भारतीय नौसेना से चुना जाता है, जब वे अपनी शुरुआती 20 दशक में होते हैं. उन्हें कड़ी चयल प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है. ये सेलेक्शन प्रशिक्षण व्यवस्था में एयरबोर्न ऑपरेशन, काउंटर-टेररिज्म, कॉम्बैट डाइविंग कोर्स, एंटी-हाइजैकिंग, एंटी-पायरेसी ऑपरेशन, सीधी कार्रवाई, घुसपैठ और घुसपैठ की रणनीति, विशेष टोही और अपरंपरागत युद्ध शामिल हैं. अधिकतर प्रशिक्षण INS अभिमन्यु पर आयोजित किया जाता है. First Updated : Saturday, 06 January 2024