One Nation, One Election पर रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में बैठक आज, राजनीतिक दलों की प्रतिक्रयाओं पर होगी चर्चा
One Nation, One Election: रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में बनी समिति ने सबसे पहले राजनैतिक दलों से उनकी राय लेने का फैसला लिया था, साथ ही उनसे लिखित पत्र के माध्यम से विचार मांगे थे.
हाइलाइट
- वन नेशन, वन इलेक्शन पर मीटिंग आज
- राजनैतिक दलों की प्रतिक्रियाओं पर होगी चर्चा
One Nation, One Election: एक देश, एक चुनाव के लिए देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व उच्च स्तरीय बैठक सोमवार होने की संभावना है. पिछली बैठकों में आए सुझावों पर समीक्षा की जाएगी. साथ ही राजनीतिक दलों से मिली प्रतिक्रियाओं पर विचार किया जाएगा. सूत्रों के हवाले से मिली सूचना के अनुसार इस अनौपचारिक बैठक के लिए लिखित एजेंडा नहीं दिया गया है. लेकिन कहा जा रहा है कि राजनैतिक दलों से मिली प्रतिक्रियाओं पर विचार-विमर्श किया जा सकता है.
राजनीतिक दलों से मिली प्रतिक्रियाओं पर होगी चर्चा
रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में बनी समिति ने सबसे पहले राजनैतिक दलों से उनकी राय लेने का फैसला लिया था, साथ ही उनसे लिखित पत्र के माध्यम से विचार मांगे थे. आपसी सहमति के साथ किसी तारीख को पक्की कर बातचीत के लिए भी किया गया था. इसी के साथ समिति ने विधि आयोग के विचारों पर भी प्रकाश डाला है. अब बताया जा रहा है कि इस मुद्दे पर विधि आयोग को बुलाया जा सकता है.
कैसे होगा लागू कानून?
'वन नेशन, वन इलेक्शन' के लिए टीम बनी है, लेकिन इसको लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन करना पड़ेगा. साथ ही जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और अन्य संसदीय प्रक्रियाओं में भी संशोधन करना होगा. इस बिल को लाने के लिए सबसे पहले 16 विधानसभाओं का सपोर्ट चाहिए होगा, इसका मतलब पहले देश के 16 रियासतों की विधानसभा में इसके प्रपोज़ल को पास कराना होगा. इस बिल को 'जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951' के तहत ही लाया जा सकता है. उसमें बदलाव करना होगा. संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में 2 तिहाई बहुमत के साथ अमेंडमेंट करना होगा.
एक साथ चुनाव कराने से क्या होंगे फायदे
इस बिल को पास कराने का सबसे अच्छा जो तर्क दिया गया है वो है, अलग-अलग इलेक्शन्स में जो पैसे खर्च होते हैं उनमें कमी आएगी. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इसमें चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों और केंद्रीय चुनाव आयोग की तरफ से खर्च की गई राशि शामिल है. इसका दूसरा तर्क दिया गया है कि इससे प्रशासनिक व्यवस्था ठीक होगी. इलेक्शन के दौरान अधिकारी चुनाव ड्यूटी में लगे होते हैं, इससे एडमिनिस्ट्रेशन के काम पर भी असर पड़ता है.