मुसलमानों की विरासत को बचाने की कोशिश या धार्मिक हस्तक्षेप? जानिए वक्फ अधिनियम 2025 में क्या है सच्चाई?
हाल ही में पेश किया गया वक्फ अधिनियम 2025 का संशोधन देशभर में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. जहां कुछ लोग इसे धार्मिक हस्तक्षेप मान रहे हैं, वहीं कई इसे पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक जरूरी कदम बता रहे हैं. यह संशोधन न सिर्फ वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि मुस्लिम समुदाय को एक उपेक्षित विरासत को सशक्त संसाधन में बदलने का अवसर भी देता है.

हाल ही में पेश किया गया वक्फ अधिनियम 2025 का संशोधन देशभर में तीखी बहस और गहमागहमी का कारण बन गया है. कुछ लोग इसे मुसलमानों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप और सांप्रदायिक स्वतंत्रता पर खतरा बता रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर, कुछ इसे वक्फ संपत्तियों के सुधार और पारदर्शिता की दिशा में एक अहम कदम मान रहे हैं. खासतौर पर पंजाब, जहां देश की 9% वक्फ संपत्तियां स्थित हैं, वहां इस संशोधन को लेकर सबसे ज्यादा हलचल देखी जा रही है.
लेकिन जब इन आशंकाओं की परतों को हटाकर देखा जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि यह संशोधन न तो किसी षड्यंत्र का हिस्सा है और न ही धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला, बल्कि यह मुसलमानों को उनकी ऐतिहासिक विरासत को व्यवस्थित और पारदर्शी ढंग से प्रबंधित करने का अवसर देता है.
क्या है वक्फ अधिनियम संशोधन 2025?
इस संशोधन का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को अधिक पारदर्शी, डिजिटलीकृत और भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है. भारत में 38 लाख एकड़ में फैली वक्फ संपत्तियां हैं, जिनसे अनुमानित तौर पर हर साल 12,000 करोड़ रुपये की आय हो सकती है, लेकिन वास्तविक आय सिर्फ 166 करोड़ तक सिमटी रहती है. यह न केवल संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि गरीबों और जरूरतमंदों को मिलने वाले लाभ से भी उन्हें वंचित करता है.
वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन एक धर्मनिरपेक्ष कार्य
अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि वक्फ संपत्तियां एक पवित्र धार्मिक मामला हैं और सरकार या किसी बाहरी एजेंसी की निगरानी इसमें उचित नहीं है. लेकिन 1964 में सुप्रीम कोर्ट ने इस भ्रम को तोड़ते हुए साफ किया था कि वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन एक धर्मनिरपेक्ष कार्य है. इसलिए, इनका पारदर्शी और उत्तरदायी संचालन जरूरी है.
डिजिटलीकरण और पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम
इस अधिनियम में वक्फ संपत्तियों की डिजिटली रिकॉर्डिंग, ऑडिट, और कुशासन पर नकेल कसने जैसे प्रावधान शामिल किए गए हैं. इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इन संपत्तियों का लाभ सही मायनों में गरीब, जरूरतमंद और अल्पसंख्यक समुदाय तक पहुंचे.
हमला नहीं, समाधान है
विरोध का एक और कारण है वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति. लेकिन यह कोई नई बात नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1965 में साफ कहा था कि वक्फ का प्रबंधन धर्मनिरपेक्ष प्रकृति का होता है और गैर-मुस्लिम भी इसमें भूमिका निभा सकते हैं. पंजाब जैसे राज्यों में जहां वक्फ भूमि विवादों में फंसी हुई है, वहां कानूनी विशेषज्ञता वक्फ की संपत्तियों को पुनः प्राप्त करने में सहायक हो सकती है.
वक्फ अधिनियम 2025 का उद्देश्य
गैर-मुस्लिम विशेषज्ञों की भागीदारी कोई हस्तक्षेप नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रोफेशनल व्यवस्था है जो पारदर्शिता और उत्तरदायित्व लाती है. यह जरूरी इसलिए भी है क्योंकि कई वक्फ मुतवल्ली ऑडिट और जवाबदेही से बचते आए हैं. वक्फ अधिनियम 2025 का संशोधन मुसलमानों को कमजोर करने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें एक उपेक्षित और बर्बाद हो रही विरासत को नई दिशा देने का अवसर देता है. यह कानून अगर सही तरीके से लागू होता है, तो यह वक्फ संपत्तियों को विकास और सामाजिक सेवा का मजबूत जरिया बना सकता है.


