जाति, संस्कृति के आधार पर विभाजन पैदा करने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ने की जरुरत, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किया आगाह
Vice President Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जाति, पंथ और संस्कृति के आधार पर समाज में विभाजन पैदा करने वाली ताकतों के खिलाफ आगाह किया है. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग संकीर्ण हितों के कारण ऐसे खतरों को नजरअंदाज कर रहे हैं, जबकि यह सामाजिक एकता के लिए घातक साबित हो सकता है.

Vice President Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जाति, पंथ, वर्ग और संस्कृति के आधार पर समाज में विभाजन पैदा करने वाली ताकतों के खिलाफ सचेत किया है. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई लोग, जो इन खतरों को समझते हैं, संकीर्ण हितों के कारण इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं.
शनिवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि किसी भी धर्म में आस्था रखना स्वैच्छिक होता है और जबरन धर्म परिवर्तन या हेरफेर से पैदा हुआ धार्मिक विश्वास, मानव शोषण का सबसे बुरा रूप है.
सांप्रदायिक विभाजन को रोकने की जरूरत
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि समाज को जाति और धर्म के नाम पर विभाजित करने वाली ताकतों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "यह चिंता का विषय है कि कुछ लोग जनसांख्यिकीय प्रभुत्व के माध्यम से दूसरों पर वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं."
पुस्तक विमोचन के अवसर पर बोले उपराष्ट्रपति
धनखड़ शनिवार को उद्योगपति गोपीचंद पी. हिंदुजा द्वारा संकलित पुस्तक 'आई एम?' के विमोचन समारोह में बोल रहे थे. उन्होंने इस पुस्तक को भारतीयता की सार्वभौमिक प्रासंगिकता को दर्शाने वाला बताया और कहा कि यह विभिन्न धर्मों में मौजूद सद्गुणों को उजागर करती है.
भारतीयता का मूल तत्व: विविधता में एकता
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीयता विविधता में एकता का प्रतीक है और इसे बनाए रखना आवश्यक है. उन्होंने कहा, "हम धर्मांतरण के प्रलोभन से बचते हुए भी दूसरों के सत्य का सम्मान और सराहना कर सकते हैं. एकता का अर्थ एकरूपता नहीं है, बल्कि विविधता में सामंजस्य स्थापित करना है. भारतीय संस्कृति इसका आदर्श उदाहरण है."