एक देश, एक चुनाव को मोदी कैबिनेट से मिली मंजूरी, इसी सत्र में हो सकता है पेश
मोदी कैबिनेट ने एक देश एक चुनाव को मंजूरी दे दी है. मोदी सरकार इसी सत्र में इस बिल को संसद में पेश कर सकती है. रामनाथ कोविंद समिति ने अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले मार्च में सरकार को अपनी सिफारिश सौंपी थी.
एक देश, एक चुनाव के विधेयक को गुरुवार को मोदी सरकार ने कैबिनेट बैठक में मंजूरी दे दी है. सूत्रों के मुताबिक इसी सत्र में यह बिल पेश हो सकता है. एक देश एक चुनाव बिल को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. सूत्रों के मुताबिक इसी शीतकालीन सत्र में यह बिल पेश हो सकता है.
सबसे पहले जेपीसी की कमेटी का गठन किया जाएगा. इस बिल को लेकर सभी राजनीतिक दलों के सुझाव लिए जाएंगे। बाद में इसे संसद से पास कराया जाएगा. मोदी सरकार इस बिल को लेकर लगातार सक्रिय रही है. सरकार ने सितंबर 2023 में इस महत्वाकांक्षी योजना पर आगे बढ़ने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में एक समिति का गठन किया था.
रामनाथ कोविंद समिति ने अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले मार्च में सरकार को अपनी सिफारिश सौंपी थी. केंद्र सरकार ने कुछ समय पहले समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था. रिपोर्ट में 2 चरणों में चुनाव कराने की सिफारिश की गई थी. समिति ने पहले चरण के तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की सिफारिश की है. जबकि दूसरे चरण में स्थानीय निकाय के लिए चुनाव कराए जाने की सिफारिश की गई है.
18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट
191 दिनों तक विशेषज्ञों और स्टेकहोल्डर्स से विचार के बाद 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट दी गई. इसमें सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाकर 2029 तक करने का सुझाव दिया गया है, ताकि लोकसभा के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए जा सकें. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नो कॉन्फिडेंस मोशन या हंग असेंबली की स्थिति में 5 साल में से बचे समय के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं. पहले चरण में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं. वहीं, दूसरे चरण में 100 दिनों के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव हो सकते हैं. इन चुनावों के लिए चुनाव आयोग, लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के लिए वोटर लिस्ट तैयार कर सकता है. इसके अलावा सुरक्षा बलों के साथ प्रशासनिक अफसरों, कर्मचारियों और मशीन के लिए एडवांस में योजना बनाने की सिफारिश की गई है.
कोविंद समिति में कुल 8 सदस्य
इस कमेटी में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समेत आठ सदस्य थे. कोविंद के अलावा इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, डीपीए नेता नेता गुलाब नबी आजाद, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे शामिल थे. इनके अलावा 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी भी इस कमेटी का हिस्सा थे.
एक देश एक चुनाव का मकसद
एक देश एक चुनाव (वन नेशन, वन इलेक्शन) एक ऐसा प्रस्ताव है, जिसके तहत भारत में लोकसभा और राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की बात की गई है. यह बीजेपी के मेनिफेस्टो के कुछ जरूरी लक्ष्यों में भी शामिल है. चुनावों को एक साथ कराने का प्रस्ताव रखने का यह कारण है कि इससे चुनावों में होने वाले खर्च में कमी हो सकती है.
राजनीतिक दलों से चर्चा करेगी जेपीसी
सूत्रों का कहना है कि लंबी चर्चा और आम सहमति बनाने के लिए सरकार इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजने की योजना बना रही है. जेपीसी सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ विस्तृत चर्चा करेगी और इस प्रस्ताव पर सामूहिक सहमति की जरूरत पर जोर देगी.
1951 से 1967 तक देश में हुए थे एक साथ चुनाव
दरअसल, देश में 1951 से लेकर 1967 के बीच एक साथ ही चुनाव होते थे और लोग केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के लिए एक समय पर ही वोटिंग करते थे. बाद में, देश के कुछ पुराने प्रदेशों का वापस गठन होने के साथ-साथ बहुत से नए राज्यों की स्थापना भी हुई. इसके चलते 1968-69 में इस सिस्टम को रोक दिया गया था. बीते कुछ सालों से इसे वापस शुरू करने पर विचार हो रहा है.
क्या है सरकार की तैयारी?
सूत्रों ने बताया कि सभी राज्य विधानसभाओं के अध्यक्षों को बुद्धिजीवियों, विशेषज्ञों और सिविल सोसायटी के सदस्यों के साथ अपने विचार साझा करने के लिए कहा जाएगा. इसके अतिरिक्त, आम जनता से भी सुझाव मांगे जाएंगे, जो निर्णय लेने की प्रक्रिया में समावेशिता और पारदर्शिता को बढ़ाएंगे. विधेयक के प्रमुख पहलुओं में इसके लाभ और देशभर में एक साथ चुनाव कराने के लिए जरूरी कार्यप्रणाली पर विचार-विमर्श किया जाएगा.
संभावित चुनौतियों का समाधान किया जाएगा और विविध दृष्टिकोणों को एकत्रित किया जाएगा. 'एक देश, एक चुनाव' को बार-बार होने वाले चुनावों से जुड़ी लागत और व्यवधानों को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण सुधार के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि सरकार चाहती है कि इस विधेयक को लेकर व्यापक समर्थन हासिल किया जाए. हालांकि, इस प्रस्ताव पर राजनीतिक बहस भी बढ़ सकती है. विपक्षी दल इसकी व्यवहार्यता के बारे में सवाल उठा सकते हैं.