ओवैसी की याचिका: पूजा स्थल कानून पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, मस्जिदों को लेकर हो सकता है बड़ा कदम!

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 1991 के पूजा स्थल कानून को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनका कहना है कि केंद्र को इस कानून को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया जाए, ताकि धार्मिक स्थलों के स्वरूप को 15 अगस्त 1947 के मुताबिक रखा जा सके। ओवैसी का ये मामला खासकर मस्जिदों के बारे में विवादों के बीच उठाया गया है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 2 जनवरी को सुनवाई करेगा और इस मामले का क्या असर होगा, ये जानने के लिए सभी की नजरें टिकी हैं।

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Edited By: Aprajita

Owaisi Petition In Supreme Court: नए साल के पहले दिन, 2 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई होने जा रही है। यह मामला एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर की गई याचिका से जुड़ा है। ओवैसी ने अपनी याचिका में 1991 के पूजा स्थल कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग की है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी धार्मिक स्थल का धार्मिक स्वरूप 15 अगस्त 1947 के अनुसार ही रहना चाहिए।

ओवैसी की याचिका: केंद्र को प्रभावी क्रियान्वयन का निर्देश देने की मांग

ओवैसी के वकील ने बताया कि उनकी याचिका में केंद्र से आग्रह किया गया है कि वह पूजा स्थल कानून को पूरी तरह से लागू करने के लिए जरूरी कदम उठाए। ओवैसी का कहना है कि कुछ अदालतों ने मस्जिदों पर सर्वेक्षण का आदेश दिया था, जो कानून के खिलाफ जाता है। उनके वकील ने यह भी बताया कि ओवैसी ने इस मामले में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए 1991 के पूजा स्थल कानून को सख्ती से लागू करने की भी मांग की है।

क्या है पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991?
1991 का पूजा स्थल कानून किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन को रोकता है और यह सुनिश्चित करता है कि इन स्थलों का धार्मिक स्वरूप उसी रूप में बना रहे जैसा 15 अगस्त 1947 के समय था। इसका मतलब है कि इस कानून के तहत किसी भी धार्मिक स्थल का रूप बदलने की अनुमति नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और हिंदू पक्षों के दावे
इससे पहले, 12 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूजा स्थल कानून के खिलाफ दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सभी अदालतों को किसी भी नए मामले पर विचार करने और धार्मिक स्थलों, विशेषकर मस्जिदों, पर पुनः अधिकार की मांग करने वाले मामलों में कोई अंतरिम आदेश नहीं देने का निर्देश दिया था। यह आदेश खासकर उन हिंदू पक्षों के लिए था, जिन्होंने मस्जिदों के धार्मिक स्वरूप का सर्वेक्षण कराने की मांग की थी। इन याचिकाओं में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और अन्य मस्जिदों को लेकर विवाद था।

मुस्लिम पक्ष और हिंदू पक्ष के तर्क
मुस्लिम पक्ष इस कानून को सख्ती से लागू करने की मांग कर रहा है, ताकि मस्जिदों का वर्तमान स्वरूप बनाए रखा जा सके और कोई भी विवाद न हो। वहीं हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि ये मस्जिदें पहले मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं, और अब इन मस्जिदों को वापस मंदिरों के रूप में स्थापित करने की मांग कर रहे हैं।

ओवैसी की याचिका का क्या होगा परिणाम?
ओवैसी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 2 जनवरी को सुनवाई करेगा, और हो सकता है कि इसे लंबित मामलों के साथ जोड़ दिया जाए। इस फैसले का प्रभाव न केवल धार्मिक स्थलों के भविष्य पर पड़ेगा, बल्कि देश में धार्मिक सद्भाव और न्यायिक प्रक्रिया पर भी गहरा असर डालेगा।

न्यायिक प्रणाली पर सवाल और आगे का रास्ता
सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में फैसले के बाद, यह साफ हो जाएगा कि पूजा स्थल कानून पर आगे किस तरह से कार्यवाही होगी। इस समय देश में धार्मिक विवादों के बीच यह मामला महत्वपूर्ण हो गया है, और हर किसी की नजरें इस पर टिकी हुई हैं।

यह मामला केवल कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि समाज में धार्मिक सद्भाव को बनाए रखने के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस याचिका और फैसले के जरिए यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या हम अपने धार्मिक स्थलों की पहचान और रूप को पहले जैसा बनाए रख सकते हैं या बदलाव की जरूरत है?

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01 January 2025, 04:18 PM IST

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