Parliament Monsoon Session 2023: लोकसभा में मंगलवार से अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होनी है. आठ से 10 जुलाई तक सदन में इस पर बहस होगी. विपक्षी पार्टी मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई है. इससे पहले 2018 में केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. अब सवाल उठता है कि आखिर ये अविश्वास प्रस्ताव होता क्या है?
देश के संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का कोई जिक्र नहीं है. केवल अनुच्छेद-75 में कहा गया है कि प्रधानमंत्री (सरकार) और उनका मंत्रिमंडल लोकसभा के प्रति जवाबदेह होता है. बता दें कि लोकसभा में जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि बैठके हैं. इसलिए सरकार के पास सदन का विश्वास होना बहुत जरूरी है. सदन का बहुमत होने के बाद ही सरकार सत्ता में बनी रह सकती है.
लोकसभा के नियम 198 में अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र किया गया है. एक तरह से अविश्वास प्रस्ताव इस बात का पता लगाने के लिए है कि क्या लोकसभा में सरकार के पास बहुमत है या नहीं. बता दें कि लोकसभा एक अस्थाई सदन है जिसे भंग किया जा सकता है. जबकि राज्यसभा स्थाई सदन है जिसे भंग नहीं किया जा सकता है. इसलिए लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है.
विपक्ष मानसून सत्र की शुरूआत से ही सदन में मणिपुर मुद्दे पर चर्चा करने और पीएम मोदी को सदन में मणिपुर की स्थिति पर बोलने की मांग कर रहा है. यही वजह है कि विपक्ष सदन में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है. ताकि सरकार पर आरोप लगाए जा सके और पीएम उनका जवाब दे. विपक्ष की रणनीति मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरने पर रहेगी.
लोकसभा में कोई भी सांसद अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है, लेकिन सांसद के पास 50 या उससे अधिक सांसदों का समर्थन होना बेहद जरूरी है. लोकसभा के नियम 198 में अविश्वास प्रस्ताव की प्रकिया का जिक्र किया गया है. लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर कितनी देर चर्चा होगी. इसका कोई फिक्स समय नहीं है. बता दें कि अलग-अलग मामलों में इसमें बदलाव होता आया है. लोकसभा अध्यक्ष बहस की समय सीमा तय करते है. साल 1963 में जब नेहरू सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया तो लगभग 40 घंटे तक बहस हुई थी. जबकि 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 12 घंटे तक चर्चा हुई थी.
अविश्वास प्रस्ताव पर कौन सा सांसद कितनी देर तक बोलेगा इसका फैसला लोकसभा अध्यक्ष करते है. आमतौर पर देखा गया है कि लोकसभा में जिस पार्टी के ज्यादा सांसद होते है उसे अधिक समय दिया जाता है. वहीं सरकार को भी विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए पूरा समय दिया जाता है.
भारत के इतिहास में अब तक 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है, लेकिन ये अविश्वास प्रस्ताव सफल नहीं हुए. केवल एक बार मोरारजी देसाई सरकार को बहुमत पेश करना था, लेकिन बहुमत नहीं होने की वजह से उन्होंने वोटिंग से पहले इस्तीफा दे दिया था. अविश्वास प्रस्ताव की वजह से पहली बार मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई थी. अब सवाल है कि जब अविश्वास प्रस्ताव सफल नहीं होते है तो विपक्ष क्यों लाता है.
अविश्वास प्रस्ताव पेश करने से पहले विपक्ष को भी पता होता है कि ये सफल नहीं हो पाएगा. लेकिन फिर भी विपक्ष लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश करता है. दरअसल, इसके पीछे विपक्ष की मंशा होती है कि वो सरकार की कमियों को संसद के सामने रखे और देश की जनता तक बात पहुंचे. इस दौरान प्रधानमंत्री को विपक्ष के आरोपों का जवाब देना होता है.
साल 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी तो वो अविश्वास प्रस्ताव की वजह से नहीं बल्कि विश्वास प्रस्ताव की वजह से गिरी थी. बता दें कि विश्वास प्रस्ताव सरकार की ओर से पेश किया जाता है कि उसके पास सदन का भरोसा है. अप्रैल 1999 में वाजपेयी सरकार ने विश्वास प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन अंतिम समय में AIADMK ने अपना समर्थन वापस ले लिया था. इसके बाद अलट जी को इस्तीफा देना पड़ा था. विश्वास प्रस्ताव के कुल तीन बार सरकार गिर चुकी है. नवंबर, 1990 में वीपी सिंह की सरकार और अप्रैल, 1997 में एचडी देवगौड़ा की सरकार गिरी थी. First Updated : Tuesday, 08 August 2023