पंजाब को ना सिर्फ कृषि प्रधान राज्य कहा जाता है बल्कि कृषि एक ऐसा पेशा है जो इस क्षेत्र में प्रमुखता रखता है. चाहे वह अर्थव्यवस्था हो या राजनीति. यहां के खेतों में न सिर्फ फसलों के बीज बोए जाते हैं, बल्कि राजनीति के बीज भी यहीं उगते हैं. राज्य की अर्थव्यवस्था के अलावा मालवा की कृषि योग्य भूमि पंजाब की राजनीतिक छवि भी तय करती है. इन्हीं खेतों में फसलें उगती हैं और इन्हीं खेतों से राजनीतिक लहरें उठती हैं. पंजाब की खेती और राजनीति का गहरा रिश्ता है. पंजाब ने अच्छे और बुरे दौर देखे हैं, लेकिन हर दौर में, यह पंजाब का किसान और कृषि ही था जिसने न केवल पंजाब का पेट भरा बल्कि पंजाब के लोगों की जेब में पैसा भी डाला. राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया. कोरोना के दौरान जब उद्योग घाटे में चल रहे थे, तब भी कृषि किसानों का हौसला बढ़ा रही थी.
कृषि विशेषज्ञों के कुछ अनुमानों के मुताबिक इस बार गेहूं की फसल ने किसानों को मालामाल कर दिया है. ऐसे में उम्मीद है कि मालवा की जनता लोकतंत्र मेले के मौके पर सबसे ज्यादा वोट कर पिछला रिकॉर्ड जरूर तोड़ेगी. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब फसल अच्छी होती है तो किसान खुश होते हैं और अधिक मतदान करते हैं.
पंजाब को तीन भागों माझा दोआबा और मालवा में बांटा गया है. इस बार मौसम अनुकूल रहने से मालवा क्षेत्र में गेहूं की बंपर पैदावार हुई है. लंबी सर्दी के कारण पंजाब कृषि विभाग ने अनुमान लगाया था कि राज्य में गेहूं का कुल उत्पादन 162 लाख टन होगा. इन्हीं अनुमानों के आधार पर राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग ने 132 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इस बार गेहूं का उत्पादन 182.57 लाख टन के साथ अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच सकता है. हालांकि बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से कुछ क्षेत्रों में नुकसान हुआ है, लेकिन औसत फसल उपज में वृद्धि हुई है. संगरूर जिले के किसानों ने कहा कि गेहूं की गुणवत्ता भी उच्च स्तर की है और निजी खरीदार भी गेहूं खरीद रहे हैं. लेकिन दूसरी ओर बीकेयू उगराहां के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां का कहना है कि राजनीति से किसानों की हालत सुधरने की बजाय बिगड़ती जा रही है. लेकिन पंजाब के किसान राजनीति और खेती की दिशा बदलने से पीछे नहीं हटेंगे.
राज्य निर्वाचन पदाधिकारी सिबन सी से लेकर जिले के पदाधिकारियों द्वारा मतदान के समय मतदाताओं के लिए विशेष सुविधाओं की व्यवस्था की गयी है. वहीं दूसरी ओर चुनाव आयोग लगातार मतदाताओं को जागरूक कर रहा है. पहले दो राउंड में कम मतदान के कारण चुनाव आयोग चिंतित है, लेकिन इस बार पंजाब में वोट शेयर बढ़ने की संभावना है. संगरूर संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में सिर्फ 45.3 फीसदी वोटिंग हुई. यहां सबसे कम मतदान 1991 में हुआ था, जब राज्य में काला दौर था और केवल 11% मतदाताओं ने मतदान किया था. 7 आम चुनावों और उसके बाद के उप-चुनावों में मतदान प्रतिशत 62.5% से 77.2% तक रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 72.4% वोटिंग हुई थी. उस समय इस सीट से आम आदमी पार्टी के भगवंत मान ने चुनाव जीता था और अब वह पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं. First Updated : Tuesday, 30 April 2024