सीने पर हाथ रखना बलात्कार नहीं...' SC ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को ठहराया गलत
Supreme Court ने बुधवार को allahabad high court के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें एक serious crime को कमतर आंकने वाला फैसला दिया गया था। Supreme Court ने इस आदेश को असंवेदनशील करार देते हुए कहा कि यह न्याय की मूल भावना के खिलाफ है और महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान से समझौता करता है। Court ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और कानूनी गंभीरता बनाए रखना आवश्यक है।

देशभर में आलोचना झेल रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि "महिला के सीने पर हाथ रखना" और "पायजामे की डोरी खोलना" बलात्कार या बलात्कार की कोशिश नहीं मानी जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को असंवेदनशील करार देते हुए कहा कि यह न्याय की मूल भावना के खिलाफ है.
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह फैसला किसी त्वरित प्रतिक्रिया का हिस्सा नहीं था, बल्कि चार महीने तक विचार करने के बाद सुनाया गया था. कोर्ट ने इसे न्यायपालिका की संवेदनशीलता में कमी का उदाहरण बताया. "हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि इस फैसले में पूरी तरह से संवेदनशीलता की कमी दिखती है. यह कोई अचानक लिया गया निर्णय नहीं था, बल्कि इसे चार महीने तक विचार करने के बाद सुनाया गया. इसका मतलब है कि इसमें सोची-समझी मानसिकता लागू की गई थी,"
सुप्रीम कोर्ट ने की कड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर इस स्तर पर किसी आदेश पर रोक लगाना उचित नहीं समझा जाता, लेकिन इस मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणियां कानूनी सिद्धांतों के विपरीत और अमानवीय थी, इसलिए उन पर रोक लगाना जरूरी था. "आमतौर पर हम इस स्तर पर स्टे (रोक) नहीं लगाते, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 21, 24 और 26 में दिए गए तर्क न केवल कानून के खिलाफ हैं, बल्कि यह एक अमानवीय सोच को दर्शाते हैं."
केंद्र और यूपी सरकार से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले पर नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है. "हम केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और हाईकोर्ट में शामिल पक्षों को नोटिस जारी करते हैं. अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल इस मामले में अदालत की सहायता करेंगे," शीर्ष अदालत ने कहा. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने 24 मार्च को इस आदेश के खिलाफ दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था.
इलाहाबाद HCका विवादास्पद फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला उस याचिका पर आया था, जिसमें दो आरोपियों को बलात्कार के आरोपों में निचली अदालत द्वारा तलब किए जाने को चुनौती दी गई थी. इन आरोपियों में पवन और आकाश पर आरोप था कि उन्होंने 11 साल की बच्ची के सीने पर हाथ रखा, उसकी पायजामे की डोरी खोलने की कोशिश की और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया.
सवालों के घेरे में न्यायपालिका की संवेदनशीलता
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद न्यायपालिका की संवेदनशीलता पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है. देशभर में महिला अधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना की थी. अब सुप्रीम कोर्ट की इस कार्रवाई को न्याय की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है.