मैं ग़ाज़ा हूं.... आप सभी को मेरी तरफ से ईद मुबारक

फिलस्तीन समेत तमाम अरब देशों में ईद का त्योहार मनाया जा चुका है. हालांकि भारत में ये जश्न आज मनाया जा रहा है. इस मौके पर गाज़ा आपको ईद मुबारक कह रहा है.

Tahir Kamran
Edited By: Tahir Kamran

मैं ग़ाज़ा हूं, वही ग़ाज़ा जिसका जिस्म खंडहर बन चुका है और लाशों की बदबू से सड़ने लगा है. परेशान मत हो, मैं टीवी चैनल्स की तरह अपना हजारों साल पुराना इतिहास नहीं बताउंगा. मैं जानता हूं आप सुन-सुनकर थक चुके हैं. मैं अपनी वर्तमान हालत के बारे आपको कुछ बताकर अपना मन हल्का करने आया हूं. वैसे भी मेरे हालात आपको कौन ही दिखा रहा है. कुछ लोग हैं जो जान हथेली पर रखकर लगे हुए हैं, पता नहीं उनकी सांसें भी कब तक चल रही हैं? शायद मेरी हालत अब दिखाने या देखने लायक रही भी नहीं है.

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मैं अब टूट चुका हूं, रमज़ान के बाद सारी दुनिया ईद का जश्न मना रही है और मेरी गोद में पलने वाले लोग इस दिन को याद कर अपनी हसरतों का गला घोट रहे हैं. हालांकि हसरतों ने तो कब की खुदकुशी कर ली लेकिन ये भी इंसान ही हैं. आसमान में नया चांद देखकर फिर से कुछ ख्वाहिशें जग उठीं हैं. ईद के मौके पर नए कपड़े और लजीज पकवानों की जिद करने वाले ये मासूम बच्चे नहीं जानते कि उन लोगों का ईद जैसी चीजों से क्या लेना जिनके जिस्म पर मांस ही ना बचा हो और जिनसे सारी दुनिया ने जीने का हक छीन लिया हो.

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मैं उन माओं की बेबसी नहीं देख पा रहा हूं जिनकी छातियां सूख चुकी हैं और गोद में लेटे बच्चे को बॉटल से दूध के नाम पर पानी पिलाकर धोखा दे रही हैं. ये जानकर दुख और बढ़ जाता है कि बच्चे के मुंह में जाने वाला पानी इंसानों के लायक तो था भी नहीं. मैं घुट-घुटकर रोने लगता हूं ऐसे हालात देखकर जब खाना चोरों की तरह छिपकर बनाना पड़ता है. क्योंकि अगर किसी को पता चल गया तो छीना-झपटी में फिर किसी की मौत हो जाएगी. बचे-कुचे जानवरों ने भी अब घास खाना छोड़ दी है. क्योंकि अब इंसानों ने भी पत्ते और घास खाना शुरू कर दी है और जल्द ही वो भी मिलनी बंद हो जाएगी. माएं अपने बच्चों को घास का सूप पिलाने को मजबूर हैं क्योंकि उनका जिस्म ककड़ी की तरह सूख गया है. जिस्म के अंदर की हड्डियां धारदार हो चुकी हैं.

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मेरी बदनसीबी देखिए कि बीमारों का इलाज भी नहीं हो पा रहा है. जंग से पहले 36 अस्पताल थे जिनमें से अब 26 मलबे में बदल चुके हैं. अब सिर्फ 10 बचे हैं, इनमें भी दवाइयां ही नहीं हैं. यहां बेड पर लेटे हर मरीज ने खुद को ऊपर वाले के भरोसे छोड़ा हुआ है. ऊपर वाले से याद आया कि मेरी पीठ पर पड़े मलबे में 227 मस्जिदें, 3 गिरजाघर और  90 फीसद स्कूल भी शामिल हैं. 

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पिछले 6 महीनों में मैंने 30-40 हजार लोगों की लाशें देखी हैं. इनमें 13 हजार से ज्यादा बच्चे शामिल हैं. इसके अलावा 700 से ज्यादा डॉक्टर और राहत कर्मी भी हैं. मेरा जिस्म लाशों से भरा पड़ा है. इन लाशों की हालत इतनी खराब है कि देखा नहीं जाता. किसी का हाथ, किसी का पांव तो किसी की गर्दन ही नहीं है. कुछ की आंखें बाहर निकली हुई हैं और कुछ लाशें तो इतने टुकड़ों में बंट चुकी हैं कि उन्हें इकट्ठा करके जोड़ने का मतलब खुद को तोड़ लेना है, बहुत सी लाशें इस तरह दबी हुई हैं जैसे वो मलबे का ही हिस्सा हों. अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कोई लाश महफ़ूज़ मिल जाए तो शुक्र जैसा एहसास होता है.

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आप बोर हो रहे?.... अगर ऐसा है तो प्लीज आप भी चले जाइए, मैं अकेला ही बड़बड़ करने के बाद खामोश हो जाऊंगा. सारी दुनिया ने मुझे इग्नोर किया है अगर आप भी कर देंगे तो कोई बात नहीं, मुझे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगेगा.... अरे..... ये क्या आप अभी तक यहीं हैं... गए नहीं? इसका मतलब है कि आपके अंदर थोड़ी बहुत इंसानियत बाकी है. अगर ऐसा है तो प्लीज मेरा एक काम कर दोगे क्या? परेशान मत हो...., बहुत बड़ा काम नहीं है... अगर नहीं भी करोगे तो कोई बात नहीं, कम से कम सुन ही लो. दरअसल मैं तो अपाहिज हो चुका हूं, हो सके तो तुम संयुक्त राष्ट्र नाम की उस चिड़िया से पूछना कि उसका गठन किस लिए हुआ था? मैंने जहां तक सुना है अन्तर्राष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने , आर्थिक विकास करने, सामाजिक प्रगति करने, मानव अधिकार दिलाने और दुनिया में शांति के लिए इसको पैदा किया गया था. क्या कहा... तुम इस चिड़िया को नहीं जानते? अरे... ये वही है जिसने 1947 में मेरे देश के कई टुकड़े कर इजरायल नाम का देश बनाने को हरी झंडी दी थी.

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हां , अब पहचान गए शायद... तो इस चिड़िया से पूछना कि तुम्हारी अब कोई सुनता भी है? या बस अपना और लोगों का समय बर्बाद कर रही हो. इसको बताना कि अब तुम्हारी कोई इज्ज़त नहीं रही है. कोई भी देश तुमको पिंजरे में बंद कर देता है और तुम्हें सिर्फ निंदा करने लायक ही छोड़ता है. चाहो तो इसको एक मशवरा भी दे देना कि थोड़ी निंदा अपनी हालत पर भी कर ले. वैसे छोड़ो, कुछ मत कहना इस बेचारी को..., मुझे तो ऐसा लग रहा है कि अब इसकी हालत मुझसे भी बदतर हो चुकी है. कम से कम मेरी गोद में पलने वाले लोग अपाहिज और बेबस होने के बावजूद इसकी तरह झुक तो नहीं रहे. (मैं जानता हूं कुछ लोग इस सब के लिए मुझे भी जिम्मेदार मान रहे होंगे लेकिन ये एक लंबी और अलग बहस है).

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वैसे एक OIC नाम का बगुला भी है. जो खुद को इस्लामिक देशों का ठेकेदार बताता है. कहीं मिले तो इससे भी पूछना कि उसने किबला-ए-अव्वल के लिए क्या किया? और हां अगर उसका जवाब ये हो कि हमने हंगामी मीटिंगें बुलाकर निंदा की तो है? तो उसको मेरी तरफ से शुक्रिया कह देना और कहना कि मेरी कोख में पलने वाले यतीम बच्चे कयामत के दिन उसकी निंदा का कर्ज़ चुकाने की पूरी कोशिश करेंगे. फिलहाल मैं सब्र कर रहा हूं. एक ज़ख्म के ऊपर दूसरा ज़ख्म सह रहा हूं. अपने लोगों को रोता देखने की अब मुझे आदत सी हो गई है. कुछ दिनों बाद ये लोग रोने लायक भी नहीं बचेंगे, क्योंकि खाने के लिए इनके पास घास-फूंस और पत्ते ही हैं. कितने दिन जी लेंगे ये सब खाकर? खैर... मैंने आपका काफी समय ले लिया, आपका बहुत शुक्रिया और मेरी तरफ से ईद मुबारक. चाहता तो हूं कि तुम्हें गले मिलकर ईद मुबारक कहूं लेकिन मेरी हालत उठने लायक नहीं है और तुम्हारे कपड़ों पर भी खून के धब्बे लग जाएंगे. 

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10 April 2024, 10:35 PM IST

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