Explainer: प्राण प्रतिष्ठा कार्यकम का न्योता ठुकराना पार्टी के लिए फायदा या नुकसान, कांग्रेस पर क्या होगा फैसले का असर

Explainer: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 22 जनवरी को होने जा रहे राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के न्योते को कांग्रेस ने ससम्मान अस्वीकार कर दिया है. कांग्रेस पार्टी के आला नेताओं को दो सप्ताह पहले कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता मिला था.

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Congress On Ram Mandir Consecration Ceremony: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 22 जनवरी को होने जा रहे राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के न्योते को कांग्रेस ने ससम्मान अस्वीकार कर दिया है. कांग्रेस पार्टी के आला नेताओं को दो सप्ताह पहले कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता मिला था. कांग्रेस ने इस पर काफी सोच विचार के बाद कहा कि "एक अर्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है." हालांकि, कांग्रेस के इस फैसले को लेकर बीजेपी ने उसपर निशाना साधा है. बीजेपी के नेताओं ने कहा है कि प्राण प्रतिष्ठा के न्योते को ठुकराना कांग्रेस की हिंदू विरोधी मानसिकता को दिखाता है.

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण बीजेपी के चुनावी मेनिफेस्टो का हिस्सा रहा है. ऐसे में आगामी लोकसभा चुनावों से पहले इसके उद्घाटन को लेकर विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी इसका चुनावी लाभ ले सकती है.ऐसे में ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या अगले चुनावों में बीजेपी को इसका फायदा मिल सकता है और क्या कांग्रेस ने इस कार्यक्रम में शामिल न होने का खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है?

कांग्रेस ने 10 जनवरी को जारी किया बयान

एक तरफ 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर की भव्य प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देश में जश्न का माहौल है. देश के कोने-कोने में भगवान राम के नामों की गूंज शुरू हो चुकी है. इस बीच 10 जनवरी को एक बयान जारी करते हुए कांग्रस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में कांग्रेस चेयरपर्सन सोनिया गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता अधीर रंजन चौधरी शिरकत नहीं करेंगे. कांग्रेस द्वारा जारी बयान में इस बात का भी जिक्र किया गया कि बीते महीने उन्हें कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता दिया गया था. कार्यक्रम में शामिल होने, न होने को लेकर पार्टी की बैठक भी हुई थी जिसके बाद ये तय किया गया है.

कांग्रेस की इस फ़ैसले के साथ पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस और महाराष्ट्र की एनसीपी भी खड़ी दिखी. जहां एनसीपी ने कहा है कि किसी पार्टी का कार्यक्रम में शामिल होना उसका निजी फ़ैसला है वहीं टीएमसी ने कहा कि इस मुद्दे पर "बीजेपी राजनीति कर रही है." कांग्रेस ने अपने बयान में कहा, "धर्म व्यक्ति का निजी मसला है. लेकिन बीजेपी और आरएसएस लंबे वक्त से इस मुद्दे को राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाते रहे हैं. स्पष्ट है कि एक अर्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है." कांग्रेस ने आगे कहा कि 2019 के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को स्वीकार करते हुए लोगों की आस्था के सम्मान में मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी, भाजपा और आरएसएस के इस आयोजन के निमंत्रण को ससम्मान अस्वीकार करते हैं."

'कांग्रेस के फैसले को लेकर पार्टी में नहीं थी एकमत'

राजनीतिक जानकारों कहना है कि ये फ़ैसला चुनौतीपूर्ण था क्योंकि कांग्रेस पार्टी में कोई भी इसको लेकर एकमत नहीं था, और सोनिया गांधी ने भी फ़ैसला पार्टी पर छोड़ दिया था. वो कहते हैं, "दक्षिण के नेताओं की ये राय थी कि कांग्रेस की अधिकांश सीटें दक्षिणी राज्यों से आनेवाली हैं, कांग्रेस को वहां अपना जनाधार ख़त्म नहीं करना चाहिए. दूसरी तरफ उत्तर भारत में कांग्रेस को 2014 और 2019 में अधिक सीटें नहीं मिली हैं. इसलिए पार्टी ने गुणाभाग कर के फ़ैसला लिया है." First Updated : Friday, 12 January 2024