RSS को राजनीति से दूर क्यों रखना चाहते थे हेडगेवार? समझिए इसके पीछे की वजह
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 1925 में विजयदशमी के दिन की थी. उनका उद्देश्य हिन्दू समाज को संगठित और सशक्त बनाना था, न कि राजनीति में प्रवेश करना. हालांकि, समय के साथ यह संगठन भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया. उनकी जयंती के अवसर पर यह समझना जरूरी है कि RSS की स्थापना का मूल उद्देश्य क्या था और क्यों उन्होंने इसे राजनीति से दूर रखा.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) आज भारतीय राजनीति का एक अहम हिस्सा बन चुका है और सत्ता में इसकी गहरी पकड़ देखी जाती है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कई फैसलों में संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इसे राजनीति से दूर रखने की कोशिश की थी? उनकी जयंती के मौके पर जानते हैं इसके पीछे का कारण.
डॉ. हेडगेवार ने अपने जीवनकाल में अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलनों में हिस्सा लिया और कांग्रेस से भी जुड़े रहे, लेकिन बाद में उन्होंने एक अलग राह चुनी. उन्होंने महसूस किया कि केवल राजनीतिक लड़ाई लड़ने से राष्ट्र निर्माण संभव नहीं होगा. इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की, लेकिन इसे राजनीति से अलग रखा. तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी क्या है.
बचपन में ही माता-पिता को खोया
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. महज 13 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता को प्लेग की महामारी में खो दिया. इसके बाद उनके बड़े भाइयों महादेव पंत और सीताराम पंत ने उनकी देखभाल की. उन्होंने नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ली. लेकिन जब उन्होंने स्कूल में "वंदे मातरम्" का उद्घोष किया, तो उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया. इसके बाद उन्होंने यवतमाल और पुणे में पढ़ाई जारी रखी. 1910 में, हिन्दू महासभा के अध्यक्ष बीएस मुंज की सलाह पर, वे मेडिकल की पढ़ाई के लिए कलकत्ता (अब कोलकाता) चले गए.
क्रांतिकारी गतिविधियों से कांग्रेस तक का सफर
कलकत्ता में रहने के दौरान डॉ. हेडगेवार अनुशीलन समिति और युगांतर संगठन से जुड़े. रामप्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आने के बाद उन्होंने काकोरी कांड में भी भाग लिया. लेकिन जल्द ही उन्होंने महसूस किया कि सशस्त्र विद्रोह के जरिए अंग्रेजों को हराना आसान नहीं होगा. इसके बाद वे बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में कांग्रेस से जुड़े और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया. 1921 के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें एक साल जेल में भी रहना पड़ा. लेकिन 1923 के सांप्रदायिक दंगों ने उनके विचारों को पूरी तरह बदल दिया और वे पूरी तरह से हिन्दुत्व की विचारधारा की ओर बढ़ गए.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना
डॉ. हेडगेवार ने महसूस किया कि हिन्दू समाज को एकजुट किए बिना भारत की स्वतंत्रता और समृद्धि संभव नहीं होगी. इसी सोच के साथ उन्होंने 1925 में विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की. संघ का उद्देश्य हिन्दू समाज को मजबूत बनाना था, न कि राजनीति में प्रवेश करना. उन्होंने नागपुर में संघ की शाखाएं स्थापित कीं और बाबा साहेब आप्टे, भैय्याजी दाणी, बाला साहेब देवरस, और मधुकर राव भागवत जैसे समर्पित स्वयंसेवकों को अलग-अलग प्रदेशों में प्रचारक नियुक्त किया.
RSS को राजनीति से दूर क्यों रखा?
संघ की स्थापना के बाद भी डॉ. हेडगेवार ने इसे राजनीतिक गतिविधियों से दूर रखा. इसके पीछे उनका एक स्पष्ट कारण था—वह नहीं चाहते थे कि RSS शुरुआत में ही अंग्रेजों के निशाने पर आ जाए और इसका विस्तार रुक जाए. 1930 में महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उन्होंने संघ की सभी शाखाओं को स्पष्ट निर्देश दिया कि RSS इस आंदोलन में हिस्सा नहीं लेगा. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि कोई स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से इसमें भाग लेना चाहता है तो उसे रोका नहीं जाएगा. खुद डॉ. हेडगेवार ने भी व्यक्तिगत रूप से इसमें भाग लिया था.
राजनीति से दूरी RSS के लिए क्यों था जरूरी?
डॉ. हेडगेवार मानते थे कि अगर RSS राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हो गया, तो यह अपने मुख्य उद्देश्य से भटक जाएगा. वह चाहते थे कि संघ सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो, ताकि भारत को एक संगठित हिन्दू राष्ट्र के रूप में खड़ा किया जा सके.
क्या आज भी RSS राजनीति से दूर है?
आज RSS भारतीय राजनीति का एक मजबूत स्तंभ बन चुका है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) और RSS के संबंध बेहद गहरे हैं. हालांकि, संघ आज भी खुद को राजनीतिक संगठन नहीं मानता, बल्कि इसे एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन के रूप में प्रस्तुत करता है.