संदीप दीक्षित, अलका लांबा हारे चुनाव...दिल्ली में कांग्रेस का फिर नहीं खुला खाता, छठी बार जीरो पर सिमटी पार्टी, जानें कहां हुई चूक
कांग्रेस को पिछले डेढ़ दशक से राष्ट्रीय राजधानी में अपनी प्रासंगिकता खोजने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ा है. 2013 में आम आदमी पार्टी के उभार के साथ दिल्ली में कांग्रेस का पतन शुरू हुआ था, जो अनवरत जारी है. दिल्ली में कांग्रेस की बात करें तो पिछले तीन लोकसभा चुनाव और करीब इतने ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी खाता खोलने में नाकाम रही है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं. बीजेपी 27 साल बाद सरकार बनाने जा रही है. आम आदमी पार्टी को करारा झटका लगा है. पिछले चुनाव में 62 सीटें पाने वाली AAP 22 सीटों पर सिमट गई. यानी 40 सीटों का नुकसान हुआ है. एक दशक पहले अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी को एक दशक बाद राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता गंवानी पड़ी है. बीजेपी जहां अपनी जीत का जश्न मना रही है, वहीं AAP में हार का मातम पसरा है. लेकिन कांग्रेस के लिए दिल्ली में लगातार तीसरी बार कुछ भी हाथ नहीं लगा है.
कांग्रेस को पिछले डेढ़ दशक से राष्ट्रीय राजधानी में अपनी प्रासंगिकता खोजने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ा है. 2013 में आम आदमी पार्टी के उभार के साथ दिल्ली में कांग्रेस का पतन शुरू हुआ था, जो अनवरत जारी है. यही वह साल था जब दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस की सीटों की संख्या 43 से घटकर 8 पर आ गई और उसके वोट शेयर में 15 फीसदी की गिरावट आई. अगले दो चुनावों- 2015 और 2020 में कांग्रेस 0 पर सिमट गई और उसका वोट शेयर 10 फीसदी से नीचे आ गया.
लोकसभा और विधानसभा चुनाव लगातार खराब प्रदर्शन
दिल्ली में कांग्रेस की बात करें तो पिछले तीन लोकसभा चुनाव और करीब इतने ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी खाता खोलने में नाकाम रही है. इस बार माना जा रहा था कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव में खाता खोल सकती है. लेकिन नतीजा फिर भी जीरो ही रहा है. आपको बता दें कि 2024 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस और AAP ने मिलकर लड़ा था. लेकिन फिर भी एक भी सीट पर जीत नहीं मिली.
कांग्रेस की 67 सीटों पर जमानत जब्त
एक समय दिल्ली के लोगों की पहली राजनीतिक पसंद रही कांग्रेस, लगातार तीसरी बार भी दिल्लीवासियों के दिलों में जगह बनाने में नाकाम रही है. दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की जब मतगणना शुरू हुई और पोस्टल बैलट के मत गिने जा रहे थे, तो देश की सबसे पुरानी पार्टी एक सीट पर आगे चल रही थी. लेकिन जैसे-जैसे मतगणना आगे बढ़ी और ईवीएम खुलने लगे, तो यह स्पष्ट हो गया कि दिल्ली में कांग्रेस का पुनरुत्थान इस बार भी नहीं हुआ. सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद, कांग्रेस के उम्मीदवारों ने 67 सीटों पर अपनी जमानत गंवा दी और जिन तीन सीटों पर पार्टी अपनी जमानत बचाने में कामयाब रही, वे हैं बादली, कस्तूरबा नगर और नांगलोई जाट.
दिल्ली में कांग्रेस के पास कोई चेहरा नहीं
दिल्ली में प्रतिनिधित्व करने के लिए कोई मजबूत नेता न होना कांग्रेस के लिए बहुत महंगा साबित हुआ है. शीला दीक्षित के बाद, कांग्रेस दिल्ली में कोई ऐसा चेहरा खोजने के लिए संघर्ष कर रही है, जो अरविंद केजरीवाल को मुकाबला दे सके. कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव 2025 के लिए मुख्यमंत्री उम्मीदवार की भी घोषणा नहीं की थी.
दिल्ली में अपने कार्यों को नहीं गिना पाना
इसमें कोई दो राय नहीं कि 1998 से 2013 तक जब शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं तब दिल्ली में बड़े पैमाने पर कार्य हुए. उन्होंने दिल्ली में मेट्रो नेटवर्क का तेजी से विस्तार किया और बड़े पैमाने पर सड़कें और फ्लाईओवर बनवाए. नए अस्पताल और शैक्षणिक संस्थान की नींव रखी. दिल्ली महिला आयोग की स्थापना की और महिलाओं के लिए 181 हेल्पलाइन नंबर भी शुरू किया. उन्होंने दिल्ली के पब्लिक ट्रांसपोर्ट में ग्रीन रिफॉर्म्स की भी सफलतापूर्वक शुरुआत की, जिससे डीटीसी की पूरी फ्लीट पेट्रोल और डीजल से सीएनजी पर शिफ्ट हुई. लेकिन, कांग्रेस अपनी सरकार के इन कार्यों को दिल्ली में शोकेस करने में पूरी तरह विफल रही है. पार्टी को राष्ट्रीय राजधानी में एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत है, जो पार्टी के कार्यों को गिना सके और जनता में अपील बढ़ा सके.