Supreme Court News: कुछ समय पहले आई तुषार हीरानंदनी के निर्देशन में फिल्म 'श्रीकांत' आपने देखी होगी. इसमें कैसे राजकुमार राव दृष्टिहीन होने के बाद भी तरक्कियों का हासिल करते हैं लेकिन उनको इसके लिए समाज के कड़ी लड़ाई लड़नी पड़ती है. ये फिल्म दृष्टिबाधित उद्योगपति और बोलंट इंडस्ट्रीज के संस्थापक श्रीकांत बोला के जीवन पर आधारित है. हमारे देश में ये कोई नई बात नहीं है. यहां कई ऐसे प्रतिभा के धनी लोग समाज से किसी तरह लड़कर आगे बढ़ते हैं तो सरकार इन्हें किनारे रख देती है. ऐसे ही एक मामले में 9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है जिसमें 11 दृष्टिबाधित UPSC पास अभ्यर्थियों को 15 साल बाद न्याय दिया गया है.
11 दृष्टिबाधित UPSC पास अभ्यर्थियों की कहानी भले ही 'श्रीकांत' से कुछ हद तक अलग हो लेकिन, मोरल ऑफ स्टोरी इसका वहीं है कि कभी सरकार तो कभी समाज इन्हें किनारे रख देता है. अब कोर्ट के फैसले के बाद उनको न्याय मिला है. आइये जानें पूरा मामला क्या है?
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और पंकज मित्तल की पीठ ने अनुच्छेद 142 के तहत फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने संघ लोक सेवा आयोग यानी UPSC की परीक्षा पास करने के बावजूद 2009 से ही ‘दर-दर भटक रहे 11 दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के हक में फैसला दिया है. इसमें कहा गया है कि सरकार तीन महीने के भीतर 11 दृष्टिबाधित व्यक्तियों को आयकर विभाग में नियुक्त करे. क्योंकि, ये सभी दिव्यांगजन अधिनियम, 1995 के अंतर्गत नियुक्ति के लिए पात्र हैं.
100 प्रतिशत दृष्टिहीन पंकज कुमार श्रीवास्तव ने सिविल सेवा परीक्षा, 2008 उत्तीर्ण की थी. उन्होंने IAS, IRS, IRPS, IRS-CE का चुनाव किया था. इसके बाद भी उन्हें नियुक्ति नहीं दी गई. इसमें सरकार की ओर से विभिन्न आपत्तियां दी गईं थी. हालांकि, इसे कैट और दिल्ली उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था. इसके बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. इस केस में इसी तरह के अन्य मामले जुड़ गए थे.