गढ़ीमाई मंदिर में खूनी परंपरा: लाखों जानवरों की दी जाती है बलि जानें इसके पीछे की कहानी

नेपाल के गढ़ीमाई मंदिर में होने वाले कुख्यात रक्त महोत्सव से पहले, बिहार और नेपाल की सीमा पर 400 जानवरों को बचाने की एक महत्वपूर्ण पहल की गई. शस्त्र सीमा बल (एसएसबी), बिहार पुलिस, पीपल फॉर एनिमल्स (पीएफए) और ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल (एचएसआई) के संयुक्त प्रयासों से इन जानवरों को बलि के लिए सीमा पार ले जाने से रोका गया. इस कार्रवाई ने गढ़ीमाई महोत्सव के दौरान होने वाली जानवरों की निर्मम बलि पर एक बार फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं.

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Gadhimai Temple Nepal Blood Festival: नेपाल के गढ़ीमाई मंदिर में हर 5 साल में होने वाला बलि महोत्सव, जिसे 'ब्लड फेस्टिवल' भी कहा जाता है, दुनियाभर में चर्चा और विवाद का विषय बना हुआ है. इस त्यौहार में लाखों जानवरों की बलि दी जाती है. हाल ही में, नेपाल की सीमा पर बिहार पुलिस, शस्त्र सीमा बल (SSB), पीपल फॉर एनिमल्स (PFA) और ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल (HSI) ने मिलकर 400 जानवरों को सीमा पार करने से बचाया.

क्या है गढ़ीमाई उत्सव?

आपको बता दें कि गढ़ीमाई उत्सव नेपाल के बरियापुर गांव में हर 5 साल पर मनाया जाता है. यह गांव काठमांडू से करीब 160 किलोमीटर दूर स्थित है. गढ़ीमाई माता के मंदिर में लाखों श्रद्धालु अपनी मन्नतें पूरी करने के लिए बलि चढ़ाते हैं. इस त्यौहार की शुरुआत 1759 में हुई थी, जब मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी ने सपने में गढ़ीमाई माता को बलि की मांग करते देखा था. उन्होंने इंसानों की जगह जानवरों की बलि देने का निर्णय लिया और तब से यह परंपरा चली आ रही है.

बलि की संख्या और प्रक्रिया

वहीं आपको बता दें कि गढ़ीमाई उत्सव के दौरान जानवरों की बलि का आंकड़ा चौंकाने वाला है. 2009 में इस महोत्सव में 5 लाख से ज्यादा जानवरों की बलि दी गई थी. 2014 और 2019 में यह संख्या घटकर 2.5 लाख रह गई. इस साल भी 16 नवंबर से शुरू होकर 15 दिसंबर तक चलने वाले उत्सव में लाखों जानवरों की बलि दी गई. बलि चढ़ाने की शुरुआत पुजारी अपने खून चढ़ाकर करते हैं.

जानवरों को बचाने की कोशिश

इस बार बिहार-नेपाल सीमा पर 74 भैंस और 326 बकरियों को बलि से बचाया गया. इन जानवरों को नेपाल ले जाया जा रहा था, जहां गढ़ीमाई उत्सव में उनकी बलि दी जानी थी. जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों ने इस त्योहार की कड़ी निंदा की है.

विश्वव्यापी आलोचना और समर्थन

बता दें कि गढ़ीमाई महोत्सव को लेकर दुनिया भर में आलोचना होती रही है. चीन, अमेरिका और यूरोप जैसे देशों से भी लोग इस महोत्सव में भाग लेने आते हैं. वहीं, कई अंतरराष्ट्रीय संगठन और स्वास्थ्य कार्यकर्ता इसे रोकने की मांग कर रहे हैं.

गढ़ीमाई मंदिर का धार्मिक महत्व

इसके अलावा आपको बता दें कि गढ़ीमाई मंदिर को नेपाल के शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. मान्यता है कि यहां बलि चढ़ाने से मन्नतें पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है. First Updated : Monday, 16 December 2024